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कशमकश। संदीप।

14 जून 2022

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कशमकश मे हू मै,,
दिल की सुनवाई से,,।
कहता है जो  वो ,,वो कर नही पाता ,,
जो करता हू वो,,  बेचारा सह नही पाता,,

होकर अनमना सा ,,
नाराज  रहता है संग मेरे,,
जैसे लिए  हो इक लड़की ने ,,
बिन मन मेरे  संग फेरे,,

यह कहू तो सच है ,,
सिर्फ काव्य नही है,,
हकीकत  भी बनती है ,,फिर,,
कविता क्यू ,, ये ,,स्वीकार्य  नही है ?

मै तो लिखूगा,,यह सच ,,
मुझे जो  लगता है सही है ,,
कविता का,,
फाइनल  सा टच,,
इसमे कोई बनावट तो नही है,,।

जो सीधे जज्बात,,बोलती है ,,
कविता फिर  जिंदा हो उठती है,,
तब रूह की ,,
आवाज  बोलती है।

तो लोग नाहक ही डरते है ,,न,,
नादान  है बहुत,,
उसकी ही है वो बात ,,
जो बदल कर  नाम बोलती है।

पढने वाले,, पढते नही है कविता,,
वो दिल के हालात  पढ लेते है,,
तभी तो ,,फिल्म मे चलने वाला संगीत,,
सिर्फ  महबूब ही  फिर क्यू समझते  है।

यह कशमकश,,क्या आप  ,कुछ  समझे ?
कि बिन मन ,,संग कैसे ,, वो मेरे हॅस दे।
यही है ,,असल की ,,जिद्द उसकी,,
कि न बनूगी,,इसकी,,
जो मुझे बनाई न गई  उसकी,,

पर इस सब का शिकार,,  मै क्यू हुआ,,
प्यार था उसका कोई और,,
  तो शिकार मै क्यू हुआ,,
यही कशमकश,,
मुझको सताती है,,

जब की गई ,,उधर शायद,,मा बाप ,,
या बहन ,भाई  की जिद्द,,
एक परिवार  की खुशी,,
भींच डालती है।।

यह सब अनमने रिश्ते ,,
निभाने  का जो उसका मेरा  खेल है।
पाप है उस परवरिश  का ,,
लडका  जिसे रहा झेल है,,

यह वजह है घर मे ,,
होती तकरार  की,,
हर छोटी बात पर,
टूटते परिवार व आस की,,

समझ नही पाता,
दोष किस किस को ,
किस हिसाब से दू ,,
उनके इस खेल का,
मै ईनाम भी फिर  किसको दू।

वो तो जीत गए,,
अपनी  हारी बाजी जीतकर,
पर मै क्या करू,,
इस तरह के जीवन मे,
खुद  को पीसकर,,

क्या  आपकी भी तो मेरी जैसी,
स्थिति  नही  है ,,
या आपकी किस्मत ,थोडी भली है,,
मै तो हू शिकार  इसका,,
इसलिए,,खुशी,, नही है,,

आप खुश  रहे ,,कविता पढे ,
सहानुभूति की दरकार  न,
मुझसे  ,, कृपया करे ।
मेरा तो यह जीवन का,
एक  बेनूर  सा किस्सा है,,
कशमकश  मे डोलता,
बेकार  सा हिस्सा है।
@@#@@
Originally  scripted by,,
Sandeep Sharma 🙏 Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,,
Jai shree Krishna g ✍ 🙏 ..

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने हो सके तो मेरी कहानी बहू की विदाई के हर भाग पर अपना लाइक 👍 और व्यू दे दें 🙏🙏🙏🙏

10 अगस्त 2023

Rakesh c pandey

Rakesh c pandey

बहुत भावनात्मक कविता है

30 जुलाई 2022

Sundeiip Sharma

Sundeiip Sharma

31 जुलाई 2022

धन्यवाद आदरणीय जयश्रीकृष्ण।

Sundeiip Sharma

Sundeiip Sharma

4 अगस्त 2022

धन्यवाद आदरणीय। जयश्रीकृष्ण

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रचनाएँ
चल आ कविता कहे ।
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जयश्रीकृष्ण मित्रगण सुधिजन व पाठकगण यह पुस्तक एक काव्य प्रस्तुति है,,जो जीवन के रंग के कई दस्तावेज। आपको दिखाएगी, आप रंगरेज के रंगो का आनंद लीजिएगा। आप को समर्पित। है आपके प्यार को। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
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कशमकश। संदीप।

14 जून 2022
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कशमकश मे हू मै,, दिल की सुनवाई से,,। कहता है जो वो ,,वो कर नही पाता ,, जो करता हू वो,, बेचारा सह नही पाता,, होकर अनमना सा ,, नाराज रहता है संग मेरे,, जैसे लिए हो इक लड़की ने ,,

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दूसरा प्यार।

14 जून 2022
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पहला प्यार मेरे मात पिता को ,दूसरा फिर गुरूजन समाज को,तीसरा जिन्हे ईश्वर है कहते,हम सब रिश्ते इनसे समझते,,फिर लगती इक लंबी लडी है बहन ,भाई,पडोस, व दोस्ती बडी है।किसी के प्यार मे नही ह

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अशांत मन।

16 जून 2022
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किधर भटकता इधर उधर, है क्या तुम्हे ये जरा खबर,, यह कोई सौम्य सा बालक नही है ,, यह तो है अशांत मन,,का सफर,। इसकी तो तुम कुछ न पूछो,, यह बच्चा बिगडैल जो बूझो,,, कब किस की जिद्द यह

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सब्र।

18 जून 2022
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सब्र की इंतिहा,, तुम्हारी,, हम सी न होगी,, देखा है तुम्हे रोज रूठते हुए। #### संदीप शर्मा। जय श्रीकृष्ण

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छुट्टियो के दिनो का ,,मजा खूब होता था।

19 जून 2022
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दादा,दादी,नाना नानी,मामा,मामी,काका,काकी,जाने कितने,रिश्ते जीवित होते थे,,जब छुट्टियो के दिन होते थे,।एक मेला सा सजता था,घर घर लगता था,,जब पीढियो के अंतर का नेह प्यार, व संस्कारो का स्

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पिता।

19 जून 2022
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ऐसे एहसास, को,, जो हो बहुत ही खास हो ,, जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,, अंदर ज्वालामुखी का, चाहे हो रहा हो दहन, नम्र से ह्रदय वाला,, कठोर सा दिखने वाला,, जो टूटा हो अंदर से,, बिल्कुल

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घर की याद।

20 जून 2022
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आती बहुत है घर की याद,, पर जाऊ कैसे ,बनती न बात,, करता हू जब इक हल ,,ऐसे ,, आ जाती बात ,,और ,, जाने किधर से ? इक घर सूना हुआ तब था,, जब मै निकला, लिए रोटी का डर था,। रोटी के लालच को

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नदी किनारा।

21 जून 2022
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नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी

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बिछुडन।

31 जुलाई 2022
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तिनका तिनका,,खुद ही जोड़कर,, घरौंदा एक सजाया जी।। हर इक बारी,चोगा चुग चुग,, कितनो को जिलाया जी।। पंख कभी मेरे थके नही थे,, हर बार हौसला पाया ही । दिल ही जाने जब " बिछड़न" देखी,,

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वो कमतर तो कभी न थी।

4 अगस्त 2022
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वो कमतर तो कभी न थी,, पर उसकी तारीफ कभी हुई न थी।। वैसे काम की थी वो बहुत , पर काम की उसकी कद्र हुई न थी।। किस्से कहानियों मे हर और उसकी चर्चा,, पूछे जरा कि कोई ,,घर कौन सा उसक

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वो शाम जरूर आएगी।

14 अगस्त 2022
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वंदे, वंदनीय , मां भारती ,, वो कैसी थी शाम ,जो लाल थी,, केसरी था रंग ,या स्याह सी,, हैरान है वतन, पूछे मेरा , कयू ऐसी ,,आई वो सांझ थी।। जश्न की ही तो ,वो रात थी,, फिर तडप सी क्यू ,थी क्यू

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मेरी ख़ामोशी को न ही पढना।

20 अगस्त 2022
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हो सके तो तुम ,, मेरी ख़ामोशी पढना, शोर बहुत करेगी , तो, तुम ऐसा करना। खोलना न लब अपने ,, बस उनको सिलना , पता न चले जो भीतर है , जब उससे हो मिलना।। हो सके तो तुम ,, इक बार मेरी ख़ामोशी पढन

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दशानन।

5 अक्टूबर 2022
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वे कौन से रावण फूंके है, रावण के पुतले पूंछे है, हैं कौन जो मुझको छूते है, हैं कोई क्या राम सा पूंछे है। क्या दिखता न इन्हे प्रतिबिंब अपना, क्यूं बेशरम हुआ मानवता का सपना।। कौन सा उत

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