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छुट्टियो के दिनो का ,,मजा खूब होता था।

19 जून 2022

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दादा,दादी,नाना नानी,
मामा,मामी,काका,काकी,
जाने कितने,रिश्ते  जीवित होते थे,,
जब छुट्टियो के दिन होते थे,।

एक मेला सा सजता था,
घर घर लगता था,,
जब पीढियो के अंतर का नेह  प्यार, 
व संस्कारो का स्थानांतरण  होता था।

एक के अनुभव, दूसरे का अल्हड़पन,,
इक दूजे मे जब समाहित  होते थे,,
रिश्ता बडा मजबूत,,
उस समय होता था। 
छुट्टियो के दिनो का,
मजा बडा होता था।

कोई न कोई फर्माइश, ,
कुछ  न कुछ  अजमाइश, 
सब का सब होता था,।
इन छुट्टियो  के दिनो मे ,,
आनंद  खूब होता था,।

शहर से गांव  की दौड, 
का मचता था बहुत शोर,
सच मे आनंद  विभोर सब कही, होता था ,
छुट्टियो के दिनो का सबको ,
इंतजार खूब  होता था।

आम का मौसम ,हो या साग का मौसम,
गर्मियो का पसीना,या सर्दियो का ठिठुरन,,
सब काफूर होता था 
छुट्टियो के दिनो का ,,
आनंद  ही और होता था।

मायके के मोह का,,
पिया के विछोह का,
सुख दुख का अनूदित, 
लोभ सा होता था,,
छुट्टियो के दिनो का ,
मोह बडा होता था।

यह मामी,ने यह मामू ने ,
यह काका ने ,यह नानी,
तोहफा लिया व दिया ,
जरूर होता था ।
ऐसे ही बंधन का ,
मजा कुछ  होता था,
छुट्टियो के दिनो का ,
मजा ही मजा होता था।

इधर भी कभी,तो जी,
बुआ के ,फूफा का ,
मुॅह भी फूला होता था ,
सच्चा  हो या बनावटी,
पर होता ही होता था,
कुछ  भी कहो तब भी,
छुट्टीयो के दिनो का,,
मजा खूब  होता था।

ऑखो से ऑसुओ का,,
दिलो से रूहो का ,,
मिलना बिछुडना,
खूब  खूब  होता था,,
जब आना व जाना,,
कुछ दिन  और ठहर जा ना,
का अनुरोध, व विरोध,,
सा भी तो होता था,,
छुट्टियो  के दिनो का,,
ब्याज  सा ही होता था ,,
जो लेने व देने का ,,
सुख दुख सा होता था।
छुट्टियो के दिनो का,
इंतजार ,बहुत होता था,,
यह त्योहार, सा एहसास  ,
सबके के साथ कभी होता था।
@@@@#@@@@@
पर अब।
यह सब कुछ  नही होता है,,
रिश्तो से दूर अब ,
पहाड  पर जाकर, 
पत्थर से टकराकर, पत्थरनुमा होता है,
अब छुट्टियो  के दिनो मे ,
वो न मजा होता है,,
##@##@##
संदीप  शर्मा।


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रचनाएँ
चल आ कविता कहे ।
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