सब्र की इंतिहा,,
तुम्हारी,,
हम सी न होगी,,
देखा है तुम्हे रोज रूठते हुए।
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संदीप शर्मा।
जय श्रीकृष्ण
18 जून 2022
सब्र की इंतिहा,,
तुम्हारी,,
हम सी न होगी,,
देखा है तुम्हे रोज रूठते हुए।
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संदीप शर्मा।
जय श्रीकृष्ण
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लेखन को कोई बहुत पुरातन अनुभव नही है ।पर लिखना भाता है।मन के विचारो का बादल शब्दोके बादल बन फुहार करते है तो रचना बनती है।इसमे भावो की सौधी सी महक नूतन प्राण फूंकती है तो पाठक के ह्रदय मे अपने नेह व स्नेह की पौध अंकुरित करती है। तब उनकी वाह या समीक्षा, मुझमे उर्वरक सा बन कर मुझे पुष्टिप्रद करती है तो ऐसे ही प्रेम की बयार रिश्ते बनाती अपनी धारा प्रवाह स्नेह की अविस्मरणीय यादे अपने साथ लेती चलती है। आप का स्नेह व प्रेम यह बीज के रोपण को है।जडे आपकी प्यास बन दूर दूर जैसे जैसे फैलाएगी। मुझमे समृद्धता आती जाएगी। जय श्रीकृष्ण। D