औरत का वज़ूद (भाग 1)
नवम्बर की सिहरन भरी गुलाबी ठंड हर मन को गुदगुदा रही थी पहाड़ी इलाकों में नवम्बर में कुछ ज्यादा ही ठंड होती है शोभना अपने घर के बाहर गार्डन में सुबह की सैर कर रही थी सूर्यदेव अपने सारथी अरुण देव के साथ बस प्रकट होने वाले थे आसमान पर लालिमा छा गई थी। वातावरण में पक्षियों का कलरव मधुर संगीत पैदा कर रहा था दूर दिखाई देने वाले हिमिगिर बर्फ़ की चादर से ढंके हुए थे उस पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें स्वर्णिम आभा बिखेर कर उन्हें और भी आलौकिक छटा प्रदान कर रही थीं।
वहां चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ था गार्डन में भांति-भांति के पुष्पों की अनुपम छटा बिखरी हुई थी फूलों की सुगंध से पूरा वातावरण महक रहा था। शोभना ऐसे अलौकिक सौंदर्य को देखकर मंत्रमुग्ध होकर गार्डन में चहलकदमी करती हुई अपना मनपसंद गीत भी गुनगुना रही थी " दिल के अरमां आसूंओं में बह गए हम वफ़ा करके भी तन्हा रह गए "
गीत गाते हुए अचानक वह मुस्कुराने लगी शोभना ने अपने दिल से पूछा क्या वास्तव में अब वह तन्हा है?? स्वयं ही उत्तर दिया नहीं मैं अब तन्हा कहां हूं अब तो मैं असहाय, मजबूर, ठुकराई हुई औरतों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हूं अब तो मेरा स्वयं का वज़ूद है और वह भी बहुत ही शक्तिशाली यह ठीक है की मुझे वफ़ा के बदले जफ़ा मिली पर वही जफ़ा और अपमान मेरे लिए वरदान बन गई।
सोचते हुए शोभना के चेहरे पर मुस्कान के साथ आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था तब तक सूर्यदेव भी पूर्ण रूप से आसमान पर अपनी स्वर्णिम आभा के साथ चमकने लगे थे।
तभी अखबार वाले ने अखबार डाला " मैडम जी आप समय की बहुत पाबंद हैं मैं हर दिन जब यहां आता हूं तो आपको गार्डन में टहलते हुए ही पाता हूं और घरों में लोग इस समय बिस्तर में सो रहे होते हैं आप बाहर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाती हैं आप को देखकर मुझमें भी उत्साहवर्धन होता है" अखबार बांटने वाले की बात सुनकर शोभना जी ने मुस्कुराते हुए कहा " मोहन अगर हमें स्वस्थ रहना है तो सूर्योदय से पहले उठना चाहिए जब हम प्राकृतिक सौंदर्य को देखते हैं तो मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है मन प्रफुल्लित होता है। यदि मन खुश होगा तो हम अपने कार्यों को उत्साहित होकर करेंगे और सबसे बड़ी बात जब हम स्वयं प्रसन्न होंगे तो हमारे मन में दूसरों के लिए कभी भी ईर्ष्या की भावना उत्पन्न नहीं होगी जब मन में किसी के लिए कलुषित विचार नहीं आएगे तो हम किसी का बुरा न करेंगे और न किसी को करने देंगे कुछ समझ में आया कि नहीं?? तुम अब तो अपनी पत्नी से लड़ते-झगड़ते नहीं"?? शोभना जी ने मुस्कुराते हुए मोहन से पूछा।
" अरे मैडम मुझे अपनी आफ़त नहीं बुलानी है मैं जानता हूं यदि आपको पता चल गया कि, मैं राधा से लड़ता झगड़ता हूं तो आप मुझे छोड़ेगी नहीं वैसे मैडम मुझे समझ में आ गया है कि, हमें अपनी पत्नी से लड़ना नहीं चाहिए ऐसा करके हम अपनी ही खुशियों में आग लगा लेते हैं।मैडम जब से आपने मुझे समझाया और यह बताया कि, पत्नी को प्यार दो उसका सम्मान करो तो पूरा जीवन खुशहाल हो जाएगा। मैंने आपकी बातों पर अमल करना शुरू कर दिया आप सच कहती थीं। मैडम जबसे हमने एक-दूसरे को समझना और सम्मान देना शुरू कर दिया है तबसे हमारे घर में चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखरी हुई हैं।आप बहुत अच्छी हैं मैडम जी आप हम जैसे कम पढ़े-लिखे लोगों को सही रास्ता दिखाने का काम करतीं हैं तभी तो यहां के लोग आपका इतना सम्मान करते हैं। अरे मैडम मैं अपनी बक-बक में आपको एक बात बताना तो भूल ही गया मैडम आपकी तस्वीर छपी है आज के अखबार में आपको सम्मानित किया जाएगा मैं भी वहां आऊंगा आप मुझे भी एक कार्ड दे दीजिएगा मैडम मैं आज आपसे मिठाई खाऊंगा" मोहन खुशी में बोलता ही जा रहा था।
मोहन की बात सुनकर शोभना के चेहरे पर आश्चर्यचकित करने वाले भाव दिखाई देने लगे तभी शोभना ने देखा की उसके पड़ोसी लोग वहां आकर उन्हें मुबारकबाद देने लगे। उसके बाद जब बधाई देने वालों का सिलसिला शुरू हुआ तो शोभना के फोन की घंटी बजती रही वह बंद ही नहीं हुई।
शोभना को विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसे पद्मश्री पुरस्कार सम्मान दिया जाएगा क्या यह सच है कि, उसे देश का इतना बड़ा सम्मान दिया जाएगा।
" दीदी मैंने सुना है कि, आपको राष्ट्रपति से सम्मान मिलेगा आपको अब सभी लोग जान जाएंगे"?? शोभना के घर में काम करने वाली पुष्पा ने चाय का प्याला मेज़ पर रखते हुए ख़ुश होकर कहा
शोभना ने कहा कुछ नहीं बस मुस्कुरा दी और चाय का प्याला उठाकर होंठों से लगा लिया।
" दीदी मैं तो सोने के झुमके लूंगी आपसे" पुष्पा ने शोभना की ओर आशा भरी नजरों से देखते हुए कहा।
" ठीक है मेरी अम्मा मैं तूझे सोने के झुमके बनवा दूंगी अब खुश" शोभना ने प्यार से हंसते हुए कहा
" हेलो माई डियर मैंने तो सुना था कि, लोग एक ओवर में लोग छः छक्के लगाते हैं तुमने तो सेंचुरी ही मार दी" शोभना ने आवाज की दिशा में देखा तो दरवाजे पर उसकी सहेली बंदिता खड़ी मुस्कुरा रही थी।
" बंदिता तू !!! भारत कब आई"?? शोभना ने खुश होकर सोफे से उठते हुए पूछा और दौड़कर बंदिता से लिपट गई।
दोनों सहेलियां थोड़ी देर एक-दूसरे से लिपटी हुई खड़ी रहीं दोनों की आंखों से आंसू बह रहे थे। फिर दोनों अलग हुई और अपने आंसू पोछते हुए कमरे में आकर सोफे पर बैठ गई।
" मैडम शोभना आप तो छा गई पूरी दुनिया पर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित की जाओगी आज मैं बहुत खुश हूं शुभी आज तुमने वह मान-सम्मान प्राप्त कर लिया जो तुमसे छिन लिया गया था। तुम्हारे वज़ूद को मसला और कुचला गया तुम्हारे आत्मसम्मान को तार-तार कर दिया गया था तुमने अपना आत्मविश्वास खो दिया था।पर आज तुमने अपने दम पर अपने वज़ूद को इतना बुलंद कर लिया है की तुम्हारी बुलंदी को छूना उन दुष्टों के लिए संभव नहीं है, जिन्होंने तुम्हारे वज़ूद को खंडित करने के लिए इतनी घिनौनी चाल चली थी।पर शोभना तुम टूटी तो जरूर पर बिखरी नहीं यही तुम्हारा दृढ़ संकल्प तुम्हें आज इस मुकाम पर लेकर आया है जहां सभी लोग तुम्हें सम्मान की दृष्टि से देख रहें हैं। वहीं वह लोग भी हैं जो तुम्हारे मान-सम्मान को देखकर लज्जित हो रहे होंगे उनकी आत्मा आज उन्हें धिक्कार रही होगी। उन्होंने ने तो कल्पना भी नहीं की होगी की जिसे उन लोगों ने धूल में रौंदकर मरने के लिए छोड़ दिया था वह आज इतनी ऊंचाई पर पहुंच गई है कि, उसे देखने के लिए उन्हें अपनी गर्दन ऊपर उठानी होगी मैं ठीक कह रहीं हूं न शुभी"?? बंदिता ने गहरी नज़रों से शोभना को देखते हुए कहा
बंदिता ने देखा कि, शोभना के चेहरे पर आक्रोश के साथ दर्द उभर आया था। बंदिता की बात सुनकर शोभना ने हां कहा पर उसकी आवाज वैसी लग रही थी जैसे कुएं से आ रही हो और शोभना अतीत की गहराइयों में उतरती चली गई•••••
क्रमशः
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
14/6/2021