मेरे ईश्वर भक्तों, अपने-आपको भूलने से देहाभिमान उत्पन हो जाता है |कर्त्तव्य को भूलने से अकर्तव्य होने लगता है |भगवान को भूलने से नाशवान के साथ सम्बन्ध हो जाता है |इस भूल को मिटाने के लिए तीन योग है -ज्ञान योग ,कर्म योग ,और भक्ति योग |विवेक -विचार पूर्वक संसार से मिली हुई वस्तुओ से अलग हो जाये -यह ज्ञान योग है |उन वस्तुओ को संसार की ही सेवा में लगा दे यह -कर्म योग है |और मनुष्य स्वयं जिसका अंश है ,उस भगवान में लग जाए -यह भक्ति योग है |परन्तु जो ज्ञानयोग ,कर्मयोग या भक्ति योग में न लगकर संसार में अर्थात् भोग और संग्रह में लग जाता है ,वह जन्म -मरण में पड़ जाता है |यह जन्म गया तो मरना बाकी रहता है और मर गया तो जन्मना बाकी रहता है | इस प्रकार वह जनम -मरण के चक्र में घूमता रहता है -'पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनं | *मनुष्य को तीन ही शक्तियाँ प्राप्त हैं -[१]जानने की शक्ति [२]करने की शक्ति और [३]मानने की शक्ति |जानने की शक्ति ज्ञान योग के लिए ,करने की शक्ति कर्मयोग के लिए और मानने की शक्ति भक्ति योग के लिए है | * तो आइये हम और आप मिलकर भक्ति की ऐसी गंगा बहाये की संसार ईश्वर भक्ति में डूब जाये| आपका अपना पंडित विजय पाठक'शास्त्री' जी महाराज