काम कठिन है ना !जरूर होगा क्योंकि हमें झूठ बोलने की आदत है और मैं कह रहा हूँ सच बोलें |परन्तु सच बोलने से ईश्वर हम पर सदा प्रसन्न होते हैं |लेकिन सच कैसा बोलें ;-"सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात ना ब्रूयात सत्यमप्रियम "अर्थात ;-सच बोले प्रिय बोले [अच्छा बोले ] परन्तु अप्रिय सत्य कभी ना बोलें |सच में बड़ी ताकत होती है | सत्य की आराधना करने से स्वयं नारायण प्रसन्न होते हैं |और जिन पर नारायण प्रसन्न हो जाये उनके तो कहने ही क्या |भक्त ध्रुव पर नारायण प्रसन्न हुए तो ऐसा आशीर्वाद दिया की जब तक यह रहती दुनियां तक उनका नाम अमर हो गया ,और क्या कहूँ प्रह्लाद पर नारायण प्रसन्न हुए तो उन्होंने एक नया अवतार ही ले लिया नरसिंघ बन गए | ये हैं उन लीलाधर की लीलायें इसलिए मैं फिर कहूँगा की सभी लोग सत्य बोले सत्य सुने और सत्य ही देखें यानि सत्य की आराधना करे |अर्थात सत्य को ही नारायण मान कर सत्यनारायण का सदैव ध्यान करें और एक सत्य समाज के निर्माण का संकल्प ले | प्रेम से बोलो;- 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः ' आपका अपना पंडित विजय पाठक "शास्त्री" 9795767648
पंडित विजय पाठक -शास्त्री-जी महाराज की अन्य किताबें