पर्दा उठता है, प्रशांत को फांसी देने के लिए ले जाया जा रहा है।
हमारी इस कहानी में, कहानी के नायक को ही फांसी दी जा रही है। और नायक अपने माता-पिता को कोस क्यो रहा है। गहराई से जानने के लिए पूरी कहानी पढ़ते हैं।
हमारी कहानी शुरू करते है ।प्रशांत के माता-पिता थाने में जाते हैं। और पुलिस इंस्पेक्टर को रिश्वत देते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर को उन पर बहुत गुस्सा आता है। वह गुस्से से चिल्लाते हुए।
रणविजय: "क्या समझ रखा है आपने चौकी को। आप निकले जहां से।
प्रशांत की माँ: "इतना क्यों चिल्ला रहे हो। जिस वर्दी का तुम रोब दिखा रहे हो ना, वो मैं दो मिनट में उतार दूंगी।
रणविजय: "आप जिस वर्दी को उतरवाने की बातें कर रही हैं ना, वो मैंने अपने मेहनत के बलबूते पर हासिल की है। मैंने किसी की सिफारिश के बलबूते पर यह नौकरी हासिल नहीं की। चलिए पहले आप मेरी वर्दी उतारकर ही दिखाएं।
इंस्पेक्टर: "(हवलदार से) मंगू जी, आप इन पर पुलिस को रिश्वत देने का केस ठोको और इन्हें इनके लाडले बेटे के साथ लॉकअप में बंद कर दो। माता जी, अब आप लॉकअप में ही लगाएं, जिसको फोन लगाना है।
उसके बाद प्रशांत के माता-पिता रणविजय के आगे गिड़गिड़ाने लग जाते हैं। फिर रणविजय को उस पर तरस आ जाता है। खास तौर पर उसके पिता पर, प्रशांत के पिता भोले थे।
इंस्पेक्टर: "आप बड़े हैं हमसे, आप शर्मिंदा कर रहे हैं हमें। मैं साफ-साफ कह देता हूं। मैं इस केस में कुछ नहीं कर सकता।
प्रशांत के पिता जी रोने लगते हैं। इंस्पेक्टर उन्हें कुर्सी पर बिठाता है। वह दोनों को रिलैक्स होने के लिए कहता है। और उन्हें पानी पीने के लिए कहता है। वह दोनों पानी पीते हैं।
इंस्पेक्टर: "मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूँ।
प्रशांत के पिता: "कैसी कहानी?
इंस्पेक्टर: "घबराएं मत, मैं कुछ गलत नहीं सुनाऊंगा। तो मैं कहानी शुरू करू?
प्रशांत के पिता: "जी सुनाएं।
इंस्पेक्टर: "यह कहानी एक लड़के की है। जिसकी मां तो बहुत चालाक है। घर में उसी की चलती है। वह लड़का पहली बार स्कूल में एक बच्चे को पीट देता है। तो उसके मां-बाप स्कूल में बुलवाए जाते हैं। बाप अपने काम पर चला जाता है। मां स्कूल में जाती है,
वह पूरा मामला सुने बिना ही शिक्षकों से झगड़ा करती है कि इसमें मेरे बच्चे का कोई कसूर नहीं। वह उल्टा उस बच्चे को ही कसूरवार बना देती है। वह उस बच्चे को भी डांटती है। लेकिन वह अपने बेटे को कुछ नहीं कहती। दूसरी बार वह लड़का स्कूल में चोरी करता है, तो फिर से वही सब होता है। उसका बाप काम पर चला जाता है और उसकी मां स्कूल में जाती है। वह फिर से अपने
राजदुलारे की साइड लेते हुए कहती है कि मेरा बेटा निर्दोष है, मेरे बेटे पर झूठा इल्जाम लगाया गया है। मेरा बेटा कभी चोरी कर ही नहीं सकता। बेटा दूसरी गलती करता है, तो भी मां ने उसे कुछ नहीं कहा। बेटा तीसरी गलती करता है। पेपर चुराने की गलती, लेकिन फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। ऐसे, जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता गया। बच्चा और भी गलतियाँ करता गया। और मां उसकी गलतियों पर पर्दे डालती रही। जब उसके बचपन में जब बाप उसे डांटता तो बच्चे की मां अपने पति से झगड़ा करती कि आप तो हमारे बेटे के पीछे पड़े रहते हैं। यही तो उम्र है उसकी खेलने-कूदने की। बेटा बड़ा होकर किसी का खून कर देता है लेकिन फिर भी मां यही कहती है कि मेरे बेटे ने कुछ नहीं किया, उसने कुछ नहीं किया। बेटे के खिलाफ़ पुलिस को सबूत मिलते हैं। पुलिस मां को सबूत दिखाती है जो कि उसके बेटे ने उस व्यक्ति को मारने की धमकी भी दी थी। लेकिन फिर भी वह यही कहती है कि मेरा बेटा निर्दोष है। वह ऐसा कभी नहीं करता, जरूर उस पर किसी ने कुछ किया होगा। पुलिस को उस पर बहुत गुस्सा आता है। जब वह ऐसा कहती है। पुलिस उसे थाने से बाहर निकाल देती है। पुलिस दोबारा उसके बेटे को कोर्ट में ले जाया जा रहा था। रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। पुलिस गाड़ी रोकती है।
पुलिस की गाड़ी के सामने दो स्कूटी थीं। एक स्कूटी पर औरत के साथ एक बच्चा था। बच्चा उनकी साथ खड़ा स्कूटी पर बैठी औरत के बाल खींचने लगता है। उसकी मां उसे एक बार प्यार से समझाती है। लेकिन बच्चा उस औरत के बाल नोचने से नहीं हटता। तो दूसरी बार मां उसे जोर से थप्पड़ मारती है। बच्चा रोने लगता है। मां बच्चे को उस औरत से सोरी मांगने के लिए कहती हैं, मां उसे डांटती रही जब तक कि बच्चे ने माफी नहीं मांगी। बच्चा उस औरत से माफी मांग लेता है। उसके बाद मां अपने बच्चे को चॉकलेट देकर चुप करा लेती है।
इंस्पेक्टर: "अब कहानी मुद्दे पर आई है। इसे ध्यान से सुनेगा।
तब वह अपने माता-पिता को याद करता है जब वह बच्चा था तो उसने बहुत सारी गलतियाँ की लेकिन उसकी मां ने उसे बिलकुल नहीं रोका। तभी हरी बत्ती जल जाती है, सभी गाड़ियां आगे चलती हैं। पुलिस द्वारा उसे कोर्ट में ले जाया जाता है। उसे फांसी की सजा सुनाई जाती है। फांसी की सजा देने से पहले उसे उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है। वह अपनी आखिरी इच्छा बताते हुए कहता है कि उसे आखिरी बार अपने माता-पिता से मिलना है। फिर उस लड़के को उसके माता-पिता से मिलवाया जाता है। वह अपने माता-पिता को कोसते हुए कहता है कि मैं आज जहां आपकी वजह से हूँ। आप लोगों ने मेरी परवरिश अच्छी नहीं की। मां, आप मेरी गलतियों पर मुझे डांटने की बजाय, उल्टा मेरी गलतियों पर पर्दे डालती रही। और पापा, आपने भी मुझे कभी नहीं समझाया कि यह सब गलत है, मत करो। आज मुझे अहसास हो गया कि वे सभी सही थे। मैं गलत था। उसके माता-पिता को भी अहसास हो गया था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। लड़के को फांसी दे दी जाती है। उसके माता-पिता ने अपनी गलती की वजह से अपने इकलौते बेटे को खो दिया। लड़के की मां पागल हो गई।
प्रशांत के पिता: "तो उसके पिता का क्या हुआ?
इंस्पेक्टर: "उनके पिता जी सदमे में चले गए। तो अब बताएं कि आपको इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है।
प्रशांत की मां: "हम समझ गए कि हमारे बेटे को उसके किए की सजा मिलनी चाहिए।
शिक्षा: "बच्चों की गलतियों पर पर्दे डालने की बजाय, उन्हें उनकी गलतियों की सजा उनके बचपन में ही दे दी जानी चाहिए, ताकि बच्चा बड़ा होकर गलतियाँ करने से सौ बार सोचे।
कहानी- पंखे पर आलना
गर्मियों का मौसम शुरू होने वाला था। एक महीने पहले एक चिड़िया रोज़ मेरे कमरे में आती थी। चिड़िया आकर मेरे कमरे के पंखे पर आकर बैठ जाती थी। महीने भर तो वह मेरे कमरे के पंखे पर आकर बैठ जाती और उड़ जाती थी। लेकिन बाद में वह हर रोज अपने मुंह में तिनका लाती और मेरे कमरे के पंखे पर लाकर रख देती। कुछ दिनों में उसने पंखे पर आलना (घोंसला) बना लिया। पंखे पर आलना (घोंसला) देख कर मैं बहुत हैरान हुआ। तब गर्मियां भी शुरू हो गई थीं लेकिन मैंने अपने कमरे में जाना बंद कर दिया। मैं अपने कमरे के पास वाले बरामदे में सोने लगा। एक दिन मैं घर पर बोर हो रहा था। मैंने सोचा कि मैं अपना खाली समय बिताने के लिए स्टोरी बुक ही पढ़ लेता हूँ। दरअसल मुझे कहानियाँ पढ़ने का शौक है। मैं अपने कमरे में स्टोरी बुक लेने गया। कमरे में बहुत गर्मी आ रही थी। मैं पंखे की स्विच ऑन करने ही वाला था तभी अचानक मेरा ध्यान चिड़िया के घोंसले पर गया। फिर मैं खुद को कोसने लगा कि मैं यह क्या कर रहा था, मैं नन्ही चिड़िया की मेहनत को मिट्टी में मिलाने जा रहा था। अच्छा हुआ कि अचानक मेरा ध्यान घोंसले की तरफ़ चला गया। फिर मेरा मन किया कि मैं चिड़िया के घोंसले को नजदीक से देखूं कि चिड़िया ने सुंदर घोंसला कैसे बनाया है। मुझे लगा कि चिड़िया अपने घोंसले में नहीं है। तो मैंने अपने बैंड पर टूल रखा और टूल पर चढ़कर घोंसले को नजदीक से देखने लगा। तभी चिड़िया अपने घोंसले से बाहर उड़ जाती है। मैं टूल से नीचे उतरकर जल्द से जल्द कमरे से बाहर चला गया। मैं कई दिनों तक अपने कमरे में नहीं गया।
एक दिन दोपहर के दो बजे मैं बरामदे में बैठकर चाय पी रहा था। वो कहते हैं ना, वैसे वो का तो पता नहीं। मैं कहता हूँ कि गर्मी चाहें कितनी भी हो लेकिन चाय हमारे थके हुए शरीर को दुरुस्त कर देती है। तो मैं कहा था? हाँ
तो मैं मजे से बरामदे में बैठकर चाय पी रहा था, तभी मुझे चिड़िया के बच्चों की जोर-जोर से चहचहाने की आवाज़ सुनाई दी। मैं कमरे में गया। कमरे में जाकर मैंने देखा कि चिड़िया का एक बच्चा अपने घोंसले से नीचे गिर गया। मैंने चिड़िया के बच्चे को प्यार से सहलाया और फिर उसे घोंसले में वापस रख दिया। मैंने देखा कि घोंसले में चिड़िया नहीं थी। दरअसल चिड़िया सुबह से खाना लेने के लिए गई थी लेकिन अब तक वह वापस नहीं आई। बच्चे भूख की वजह से जोर-जोर से चहचहा रहे हैं। मैंने चिड़िया के घोंसले में बच्चों के लिए बोतल के डंकन में पानी और चावल के कुछ दाने रख दिए। और मैं अपने कमरे से बाहर चला गया। कुछ दिनों के लिए मैं अपने मामा की बेटी की शादी में चला गया।
सात-आठ दिन मैं वहीं रहा। जब मैं वापस आया तब मैंने अपने कमरे में जाकर देखा कि चिड़िया अपने बच्चों को लेकर उड़ गई थी। चिड़िया के उड़ जाने पर पता नहीं मुझे इतनी तकलीफ क्यों हो रही थी। मैं उदास हो गया। तभी किसी तरफ़ ची, ची की आवाजें आने लगती हैं। मैं उस ची, ची की आवाज़ सुनते हुए नीचे झुका तो मैंने बैंड के साथ वाले टेबल के नीचे चिड़िया का एक बच्चा था। मैंने उस बच्चे को उठाया और अपनी दादी माँ के पास ले गया। मैंने अपनी दादी माँ को बताया कि चिड़िया अपने दो बच्चों को लेकर उड़ गई। और इस बेचारे को भूल गई। इसे पहले भी यह बेचारा घोंसले से नीचे बैंड पर गिर गया था तो मैंने इसे उठाकर घोंसले में रख दिया था। तो दादी माँ ने मुझे बताया कि चिड़िया इसे एक इंसान का बच्चा समझने लगी है इस लिए यह इसे छोड़ गई। मैंने दादी माँ की बात सुनकर हंसने लगा। क्या बात कर रही हैं दादी माँ आप। ऐसा कैसे हो सकता है? हो सकता है बेटा, बिलकुल हो सकता। दरअसल पक्षी अपना बच्चा सुगंध से पहचानते हैं। तुमने चिड़िया के बच्चे को काफी देर तक अपने हाथों से सहलाया, जब चिड़िया ने अपने बच्चे को सुगंधा तो उसमें एक इंसान की गंध आने लगी। जिसके कारण वह अपने बच्चे को इंसान का बच्चा समझने लगी। मुझे यह सब जानकर बहुत दुख हुआ। तो मैंने चिड़िया के बच्चे को एक पिंजरे में डालकर रख लिया। और उसे पालने लगा। मैंने उसका नाम गिटर रखा। धीरे-धीरे गिटर बड़ा होने लगा लेकिन अभी तक उसे उड़ना नहीं आता था। वह दूसरे पक्षियों को उड़ते देखकर अपने पंख फैलाने की कोशिश करता था लेकिन उड़ नहीं पाता था। अब पिंजरा उसे कैद लगने लगा था। लगें भी क्यों न, क्योंकि वह एक पक्षी है और पक्षियों का घर आसमान होता है ना कि एक पिंजरा। गिटर उदास रहने लगा। उसकी नाराजगी दूर करने के लिए मैंने एक बोलने वाला तोता खरीदकर अपने घर लाया। वह तोता भी बड़ा प्यारा था और उसकी आवाज़ भी। मैंने उस तोते का नाम मिठ्ठू रखा। मैंने मिठ्ठू से गिटर को मिलवाया। फिर मिठ्ठू को गिटर के बारे में बताया। मैंने मिठ्ठू से कहा कि गिटर को वह उड़ना सिखा सकता है। धीरे-धीरे गिटर और मिठ्ठू की दोस्ती हो गई। मिठ्ठू ने गिटर को उड़ना सिखाना शुरू किया। धीरे-धीरे गिटर उड़ना सीख गया। जब गिटर पूरा उड़ना सीख गया तो मैंने उन दोनों को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। वह दोनों आसमान में दूर उड़ गए और मैं उन्हें खिड़की से देख रहा था।