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डिटेक्टिव अस आर(भाग-1)

12 जनवरी 2025

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डिटेक्टिव अस आर (संजीव राठोर) अपनी दादी माँ से मिलने, गांव में, जाने के लिए तैयार हो रहा है। 

(दरअसल, संजीव के पिता जी कई साल पहले अपने गांव से दूर काम की तलाश में शहर आए थे। जहाँ उन्हें बड़ी कंपनी में काम मिल गया। फिर उन्होंने शहर में ही शादी कर ली और शहर में ही रहने लगे। उन्होंने अपनी माँ को भी शहर में अपने साथ रखा था। लेकिन संजीव की दादी माँ को शहर का रहन-सहन बिलकुल भी रास नहीं आया। शहर में उन्हें घर क़ैद की तरह लगता था। दरअसल, गांव में दादी के पास गांव के बच्चे आते थे और दादी माँ उन्हें कहानियाँ सुनाती, बुझारते पाती, गांव की औरतें घर आतीं और दादी माँ उनके साथ अपना दुख-सुख बांटतीं। और कुछ औरतों के साथ रोज मंदिर जातीं। पर शहर में ऐसा कुछ भी नहीं था। जहाँ वह अकेली मंदिर जातीं और फिर पूरा दिन घर में अकेली बैठी रहतीं। शहर में एक दूसरे के घर में कोई भी आता-जाता नहीं था। इस लिए दादी माँ गांव में वापस चली गईं और वहां पर ही रहने लगीं।) 

संजीव: (अपने माता-पिता से) इजाज़त दीजिए, मम्मी-पापा, मैं चलता हूँ। 

नरेश: (संजीव के पिता) ठीक है बेटा, ध्यान से जाना। और हाँ, अपनी दादी माँ को ज़्यादा परेशान मत करना। 

संजीव: पिता जी, मैं बच्चा थोड़ी हूँ जो दादी माँ को परेशान करूंगा। 

नरेश: (संजीव का कान पकड़ कर) हाँ भाई, मुझे पता है कि तुम अब बहुत बड़े हो गए हो। लेकिन शरारतें अभी भी बचपन वाली हैं तुम्हारे अंदर। 

नीलम: (संजीव की माँ) ओफो, छोड़ो बिचारे बच्चे का कान, उसे दर्द हो रहा है। 

संजीव: हाँ माँ, बहुत जोर से कान पकड़ा है पिता जी ने। आह! आह! बहुत दर्द हो रहा है। 

नरेश: अच्छा बच्चा, अब अपनी माँ के सामने तुम्हें बहुत दर्द हो रहा है। लो, छोड़ दिया तुम्हारा कान। 

(नीलम संजीव को बड़ा सा थैला देती हैं। संजीव उस थैले को पकड़ कर) 

संजीव: इतना बड़ा थैला? इसमें क्या है, माँ? 

नीलम: बेटा, इसमें घर के कुछ बिस्किट हैं, मोती चुर के लड्डू और चावल के आटे की पिनिया है। पिछली बार जब वह हमारे पास आई थी तो उनका मन मोती चुर के लड्डू और चावल के आटे से बनीं पिनिया खाने का मन कर रहा था। लेकिन मुझे यह सब कुछ बनाना ही नहीं आता था। लेकिन मैंने अब बनाना सीख लिया है। 

संजीव: अच्छा तो माँ, आप खुद को साबित करने के लिए यह सब कुछ भेज रहीं हैं। 

नीलम: नहीं तो, मैंने ऐसा कब कहा? 

नरेश: तो फिर क्या कहना चाहती हैं? आप नीलम जी। 

संजीव: (दोनों को चुप कराते हुए) अम! बस-बस, आप दोनों झगड़े मत। मैं तो मजाक कर रहा था। आप दोनों तो शुरू हो गए। 

नीलम: (नाक खींच कर) शैतान कहीं के, आग भी खुद ही लगाते हो और उस पर पानी भी खुद ही डालते हो। 

नरेश: मैं इसका कान पकड़ कर इसे समझा रहा था, कि वहां पर शरारतें मत करना। वह गांव इसके लिए नया है, बिलकुल नया। और हाँ, टाइम पर गांव में पहुँच जाना, अगर तुम्हें देर हो भी जाए तो तुम चोराहे पर से मत लगना। कहते हैं कि वहां पर किसी आत्मा का वास है। 

संजीव: पिता जी आत्मा -वातमा कुछ नहीं होती, यह सिर्फ मन का वहम है।

नरेश: मैं मजाक नहीं कर रहा, मुझे वह दिखी थी एक बार।

संजीव: (अपना पेट पकड़ कर हंसते हुए) हा।हा।हा पिता जी मुझे इस आत्मा से मिलना है।

नरेश: तुम उसे मिलकर क्या करोगे।

संजीव: पिता जी मैं उसके साथ मिलकर डांस करूंगा। मेरे डोल न सुन।

नरेश: बेटा वह चोराहे की आत्मा है, ना कि मजूलिका की आत्मा।

संजीव: (हंसते हुए) क्यों? पिता जी आपकी चोराहे की आत्मा डांस नहीं करती क्या?

नरेश: तुम जा ही रहे हो, तो सिखा देना उसे।

नीलम: उफो किन बातों को लेकर बहस कर रहे हो तुम बाप-बेटे।

संजीव: चलता हूँ पिता जी।

नरेश: जाओ बेटा, मैं तुम्हें बार-बार कह रहा हूँ। समय पर पहुँच कर फोन करना, मज़ाक में मत लेना।

संजीव: ठीक है, पिता जी।

गांव के सुनसान रास्ते पर संजीव की गाड़ी खराब हो जाती है। संजीव आस-पास देखता है। लेकिन उसे वहां कोई नहीं दिखता। वह काफी देर किसी के आने का इंतजार करता है। काफी देर इंतजार करने के बाद उसे रिक्शा चलाने वाला एक बुजुर्ग व्यक्ति दिखता है। बुजुर्ग व्यक्ति संजीव को देखकर रुक जाता है।

बुजुर्ग व्यक्ति: बेटा तुम जहाँ खड़े क्या कर रहे हो?

जहाँ के तो नहीं लगते।

संजीव: अंकल जी दरअसल मेरी कार खराब हो गई है।

बुजुर्ग व्यक्ति: तुम्हारी कार खराब हुई नहीं की है। उसी ने की है।

संजीव: जी किसी ने नहीं की, गाड़ी खुद ब खुद खराब हुई है।

बुजुर्ग व्यक्ति: तुम मुसाफिर हो, तुम उसके बारे में नहीं जानते। चलो यह सब छोड़ो, तुमने जाना कहाँ है?

संजीव: जी मुझे मागलपुर गांव में जाना है।

बुजुर्ग व्यक्ति: बेटा मागलपुर गांव नहीं, भागलपुर नाम है गांव का।

संजीव: जी, जी वहीं 

बुजुर्ग व्यक्ति: वह तो बिलकुल पास ही है, मैं उसी गांव का हूँ।

संजीव: यह तो अच्छी बात है।

बुजुर्ग व्यक्ति: तो चलो फिर बैठ जाओ रिक्शे पर। जहाँ ज़्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं है।

संजीव रिक्शे पर बैठ जाता है। बुजुर्ग व्यक्ति रिक्शा चलाता है।

संजीव: वैसे आप रात को भी रिक्शे चलाने का काम करते हैं?

बुजुर्ग व्यक्ति: नहीं बेटा, मैं शहर में रिक्शा चलाता हूँ। शाम को पांच या छह बजे घर आ जाता हूँ।

संजीव: लेकिन, आज इतनी लेट कैसे अंकल जी?

बुजुर्ग व्यक्ति: आज कोई सवारी नहीं मिली, शाम को चार-पांच बजे मुझे सवारी मिली थी। तो मैं सवारी को उनकी जगह पर उतारने चला गया। इस लिए देर हो गई।

संजीव: अच्छा।

काफी देर तक बुजुर्ग व्यक्ति चुपचाप रिक्शा चलाता रहता है। संजीव भी कुछ नहीं बोलता। थोड़ी देर बाद संजीव बुजुर्ग व्यक्ति से,

संजीव: नो बजे के बाद वहाँ क्या होता है?

बुजुर्ग व्यक्ति: वो आ जाती है।

संजीव: वो कौन?

बुजुर्ग व्यक्ति: चोराहे की आत्मा।

संजीव: चोराहे की आत्मा, क्या है?

बुजुर्ग व्यक्ति: कहते हैं कि जहाँ एक लड़की की आत्मा भटकती है। तबसे शापित चोराहा माना जाता है।

संजीव: शापित चोराहा? अंकल जी असल में ऐसा कुछ नहीं होता। 

बुजुर्ग व्यक्ति: इसे मानना या ना मानना, तुम्हारी मर्जी मेरा फर्ज था, तुम्हें बताना।

वे दोनों रात के आठ बजे भागलपुर गांव में पहुँच जाते हैं।

संजीव अपनी दादी माँ को गले लगाता है। दादी माँ भी कस कर उसे गले लगाती है। उसकी दादी माँ उसे देखकर बहुत खुश होती है। वह उसके लिए खाने के लिए बहुत कुछ बनाती है। वह संजीव को उसके बचपन की बातें बताती है कि वह बचपन में कितनी शरारतें करता था। संजीव भी अपनी दादी माँ से अपने शहर की बातें बताता है कि शहर में उनका दिन कैसे बीत रहा है। और कुछ ख़ुशी के पल बताता है जिसमें उसने अपनी दादी माँ को बहुत मिस किया। वह दोनों बातें कर ही रहे थे। नरेश का फोन आ जाता है।

नरेश (गुस्से से) संजीव मैंने तुमसे क्या कहा था। गांव पहुँच कर मुझे कॉल करना।

संजीव: पिता जी, आप फिक्र न करें, मैं तो आठ बजे गांव पहुँच गया था।

नरेश: अगर आठ बजे पहुँच गए थे तो, कम से कम मुझे कॉल करके बता तो देते, तुम्हें पता है, मुझे कितनी चिंता हो रही थी तुम्हारी।

संजीव: पिता जी मैं भूल गया था। आप अपने गुस्से को शांत करने के लिए दादी से बात करें।

नरेश: नमस्ते अम्मा, कैसी हो तुम?

दादी माँ: मैं ठीक हूँ बेटा, तुम बताओ कैसे हो?

नरेश: (रोते हुए) ठीक हूँ माँ। कभी फोन ही नहीं किया आपने।

दादी माँ: कैसे करती फोन, तुमने अपना नंबर बदल लिया, मंगु से चिठ्ठी लिखवाकर भेजी थी। उसका जवाब नहीं आया।

नरेश: मैं काम में व्यस्त था, तो शायद मैं भूल गया होगा। अच्छा लगा आपसे बात करके।

दादी माँ: मुझे भी, दिल को सुकून सा मिल गया, तुमसे बात करके।

दादी माँ: बेटा मैं चुल्ले पर दूध रखकर आई थी। वह उबल गया होगा। उतने समय तुम अपने पापा से बात करो, मैं आती हूँ।

संजीव: देखा पापा हो गया न आपका गुस्सा शांत। 

नरेश: हाँ वो तो है।

संजीव: यार, पापा आप रो रहे हैं।

नरेश: (अपने आँसू पोंछते हुए) नहीं पगले मैं रो नहीं रहा, यह तो ख़ुशी के आँसू हैं। इतने टाइम बाद अपनी माता से बात कर रहा हूँ। तो इस लिए थोड़ा इमोशनल हो गया।

संजीव: पापा यह तो काफी तकलीफदेह होगा, आपके लिए कि अपनी मम्मा से दूर रहना। हम दादी माँ को अपने साथ शहर ले आते हैं।

नरेश: बेटा तुम्हारी दादी माँ को शहर रास नहीं आता। दूसरी तरफ तुम्हारी माँ को गांव में रहना पसंद नहीं। मैं फंसा हुआ हूँ। मैं क्या करूँ?

संजीव: पिता जी, मुझे तो आपका गांव बहुत पसंद आया। मैं दावा करता हूँ, मम्मा को भी गांव पसंद आएगा। आप एक बार मम्मा को यहाँ लाएं तो सही।

नरेश: लाया था दो बार उसे गांव और गांव की औरतें बिलकुल पसंद नहीं आईं।

संजीव: क्यों पसंद क्यों नहीं?

नरेश: उसका कहना है कि उन्हें उठने बैठने, खाने पीने और कपड़े पहनने का ढंग नहीं है।

संजीव: पिता जी पहनने का ढंग गांव की औरतों को नहीं, शहर की औरतों को। जब मैं गांव में आया तो गांव की सभी औरतों ने मर्यादित कपड़े पहने हुए थे। सभी अच्छी लग रही थीं।

मम्मा यह भूल गई हैं कि उनकी वजह से ही हमारी भारतीय संस्कृति बची हुई है। अगर उन्होंने भी फैशनेबल कपड़े पहनने शुरू कर दिए तो हमारी भारतीय संस्कृति बिलकुल लुप्त हो जाएगी। सारी और सलवार कमीज का नामो-निशान नहीं रहेगा हमारे भारत में।

नरेश: अच्छा बस भाई अगर तुम्हारी माँ ने सुन लिया तो बवाल खड़ा हो जाएगा।

संजीव: सुन लेने दो, उन्हें ही तो सुना रहा हूँ। पिता जी माँ से कहना कि मैं आपकी बहु गांव से लाऊंगा फिर उसे शहर रास नहीं आएगा तो मैं इनसे दूर अपनी पत्नी के साथ गांव में रहने लगूंगा। फिर पिता जी आपका बदला पूरा।

नरेश: मरवाएगा क्या पगले? अगर उसने सच में सुन लिया ना, तो बेटा तुम्हारा जाना कुछ नहीं, और रहना कुछ नहीं। उसने कहना कि मैंने तुम्हारे दिमाग में यह सब बातें भरी हैं।

संजीव (हंसते हुए) पिता जी मुझे आज पता चल गया कि आप मम्मी से कितना डरते हो। आज पता चला कि मम्मी की पावर ज़्यादा है। मैं मम्मी की साइड की बात किया करूँगा।

तभी वहां पर संजीव की दादी माँ आ जाती हैं।

दादी माँ: बेटा यह लो सोने से पहले, दूध पी लो। मैंने तुम्हारा बिस्तर लगा दिया है।

संजीव: अच्छा बाय डैड, मैं रखता हूँ फोन।

संजीव फोन रखने के बाद अपनी दादी माँ के कमरे में जाता है। संजीव अपनी दादी माँ को चोराहे की आत्मा के बारे में पूछता है।

दादी माँ उसे चोराहे की आत्मा की कहानी सुनाती हैं।

दादी माँ: असल में चोराहे की आत्मा की कहानी शुरू होती है एक लड़की रोशन से, जो कि एक सीधी-सादी और भोली-भाली सी लड़की थी।

एक दिन उसकी सौतेली माँ ने उसे बाज़ार से सब्जी लाने के लिए भेज दिया। वह बाजार से सब्जी लाकर गांव में वापस आ रही थी। वह चोराहे को पार कर रही थी कि एक गाड़ी तेज़ रफ़्तार में आईं और उसे कुचल कर चली गई। बहुत भयानक हादसा हुआ था। कहते हैं कि तबसे उसकी आत्मा भटक रही है। इस लिए उसे शापित चोराहा कहा जाता है। जब भी कोई रात को वहाँ गाड़ी निकलती है तो कार खराब हो जाती है। लोगों का कहना है कि वह उस गाड़ी को पहचानने की कोशिश करती है। जो कोई नो बजे के बाद वहां पर जाता है। वो कभी वापस नहीं आता।

संजीव: वापस नहीं आता मतलब? क्या हुआ होगा उनके साथ? 

दादी माँ: पता नहीं।

दादी माँ कहानी सुनाते-सुनाते खुद सो जाती हैं। दादी माँ के सोने के बाद संजीव अकेले ही टॉर्च लेकर निकल जाता है। संजीव काफी देर तक वहां इंतजार करता है। काफी देर इंतजार करने के बाद वह वहां से जाने की सोचता है। तभी वह एक शराबी आदमी से टकराता है। वह दोनों एक-दूसरे से टकराकर डर जाते हैं।

शराबी आदमी: भूत-भूत।

संजीव: मैं कोई भूत नहीं हूँ, मैं इंसान हूँ तुम्हारी तरह देखो।

शराबी आदमी: (संजीव के चेहरे पर हाथ लगाते हुए) हाँ हो तो तुम इंसान ही। वैसे तुम इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे हो?

संजीव: आप बताएं आप यहाँ क्या कर रहे हैं?

शराबी आदमी: (शराब की बोतल दिखाते हुए) मैं यहाँ इसके लिए आया हूँ। क्या तुम भी यहाँ इसके लिए आए हो?

संजीव: क्या यहाँ आस-पास ठेका है?

शराबी आदमी: (हंसते हुए) हाँ, हाँ, ठेका तो नहीं है बेटा, पर यहाँ फ्री की शराब जरूर मिलती है।

संजीव: क्या मतलब?

शराबी आदमी: (उसके कान में) जहाँ एक आदमी की आत्मा आती है वह मुझे रोज़ एक बोतल दारू देकर जाती है। अगर तुम्हें चाहिए तो तुम कल आना।

संजीव: लेकिन अभी क्यों नहीं?

शराबी आदमी: क्योंकि वह आत्मा मुझे एक ही बोतल देती है और वह मैंने खत्म कर दी। चलो अब तुम जाओ यहाँ से।

संजीव: आपको अपने घर नहीं जाना।

शराबी: तुम जाओ मैं खुद चला जाऊंगा।

संजीव: आपको किस तरफ जाना है 

शराबी: (रास्ते की तरफ अपना हाथ दिखाते हुए) मुझे इस तरफ जाना है, नहीं नहीं इस, मैं किधर से आया था मुझे याद नहीं।

संजीव (अपने मन में) मेरे खयाल से मुझे अब जहाँ से जाना चाहिए।

संजीव घर वापिस चला जाता है। अगली सुबह वह गांव वालों से शापित चोराहे के बारे में पूछताछ करता है। गांव वाले उसे अलग-अलग कहानियाँ सुनाते हैं। कोई कहता है कि मैंने एक लड़की की आत्मा को देखा, कोई कहता है कि एक बिल्ली को देखा जो कि एक औरत का रूप धारण कर लेती है। कोई कुछ कहता और कोई कुछ कहता। संजीव अकेले बैठकर सबके तर्कों को जोड़ने की कोशिश कर रहा था। सबके तर्कों को जोड़ने के बाद उसे एक चीज़ कॉमन मिली। वो यह थी कि सभी गांव वालों को चोराहे के रास्ते से दूर रखने की कोशिश की जा रही है। आखिर चल क्या रहा है वहां पर जो गांव वालों से छुपाया जा रहा है। यह सब पता लगवाने के लिए आज रात को फिर से वहां जाना पड़ेगा। इस बार मैं नो बजे से थोड़ा पहले जाना चाहिए।

इस बार वह रात के नो बजने से बीस मिनट पहले जाता है। वह देखता है कि शराबी आदमी भी उसके आगे-आगे ही जा रहा है।

संजीव उसका पीछा करता है। शराबी आदमी एक पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो जाता है। संजीव भी एक पेड़ के पीछे छिप जाता है। कुछ देर बाद पेड़ के पास धुआँ आने लगता है धुएं में सफ़ेद कपड़े और भुतिया मास्क पहने एक आदमी आता है। वह उस शराबी आदमी को दारू की बोतल देता है। और धुएं के साथ ही गायब हो जाता है। संजीव भागकर उस शराबी आदमी के पास आता है। वह उसे उस आदमी के बारे में पूछता है।

संजीव: सुनो भाई साहब वो आदमी कहाँ गया जो अभी-अभी आपके पास आया था।

शराबी: वो आदमी नहीं आत्मा थी।

संजीव: क्या बकवास कर रहे हैं आप, वो कोई आत्मा-वातमा नहीं थी। वो एक आदमी था। उसके मुँह पर भुतिया मास्क लगा हुआ था।

शराबी: अगर तुम्हें उसके बारे में इतना ही मालूम है तो तुम ख़ुद ढूंढ लो ना।

संजीव: (गुस्से से) अम्मु, अगर मुझे ही पता होता तो, मैं तुमसे क्यों पूछता।

शराबी: चलो यहाँ से, पता नहीं कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं। आराम से पीने भी नहीं देते।

संजीव: (वहाँ से जाते हुए) कोई बात नहीं, तुम्हें तो मैं बाद में देखूँगा।

संजीव आगे जाकर चारों रास्तों की तरफ देखते हुए, किस तरफ़ गया होगा वह आदमी। आखिरकार वह एक रास्ते पर चला जाता है। काफी आगे जाकर उसे वह आदमी दिख जाता है। संजीव उसका पीछा करता है। वह एक खेत में चला जाता है, संजीव भी उसके पीछे-पीछे जाता है। वह खेत में बने एक छोटे से कमरे में चला जाता है। संजीव कमरे की खिड़की से देखता है कि कमरे में चार-पाँच लोग ड्रम भरकर शराब निकाल रहे थे। और चार-पाँच लोग शराब को बोतलों में भर रहे थे। उस रात तो संजीव ने चुपचाप वहां से निकलना सही समझा। सुबह उसने थाने में जाकर पुलिस को सब कुछ बताया। फिर रात के दस बजे पुलिस संजीव के साथ जाकर वहां पर छापा मार लेती हैं।

पुलिस उन सब को पकड़ लेती है। 

संजीव: इस्पेक्टर साहब आपसे एक विनती है, आप इन सब को गांव वालों के सामने लेकर जाएँ। मैं चाहता हूँ कि गांव वालों को भी पता चले कि चोराहे की झूठी कहानी इन्होंने ही फैलाई है।

संजीव के कहने पर पुलिस उन सबको गांव में ले जाती है। फिर वह सब गांव वालों के सामने सब कुछ बताते हैं कि वह झूठी कहानी उन्होंने ही फैलाई है। दरअसल रात को जो कोई भी वहां पर जाता तो वह लोग एक आदमी को सफेद साड़ी पहनाकर, लंबे बाल लगाकर और भुतिया मेकअप करके सभी को डराते। डर के मारे लोगों ने रात को चोराहे की तरफ़ आना बंद कर दिया। जिसकी वजह से हम बिना किसी के वहां पर शराब निकालते और शराब की सप्लाई करते।

संजीव: लेकिन तुम लोग उस शराबी आदमी को दारू की बोतल क्यों देते थे?

व्यक्ति: उसने हमारे अड्डे को देख लिया था हमें डर था वह किसी को बता ना दे। इस लिए हमारा एक आदमी उसे शराब की बोतल दे देता था।

उन सब को पुलिस द्वारा पुलिस स्टेशन में ले जाया जाता है।

गांव वालों के मन से डर निकल गया और चोराहे की तरफ को भी लोग बिना किसी हिंसक डर के आने जाने लगें। संजीव को गांव वालों ने डिटेक्टिव एस आर का नाम दे दिया।

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