सुरैया के पिता का निधन हो जाने के बाद उसका इस दुनिया मे कोई नही रह गया , उसके पास इतने पैसे तक नही थे कि अपने पिता के शव को कफ़न से ढक सके, इकलौता घर होने के कारण किसी से मदद मिलने की संभावना भी नही थी अगर वह मदद बुलाने जाती है तो पीछे पिता के शव के पास कौन रुकेगा बस इसी सोच मे सुबह से दोपहर हो गयी आखिरकार उसे पिता के शव को छोड़कर मदद पाने के लिए नगर की ओर आना पड़ा ।। ....... "मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करवाने में मदद करो" लेकिन इस नगर में शायद ऐसा कोई नही था जो बेवजह उसकी मदद करने को तैयार होता सभी ने वहीं बात कही जो उन दोनों सेठो ने उससे कही थी - "अगर एक रात के लिए हमारी हो जाये तो हम कुछ करेंगे" "सुरैया के पिता रामलाल जब तक जीवित थे उसे कभी घर से बाहर नही जाने दिया शायद वह नगर के लोगों की सोच से परिचित थे दिन में थोड़ा बहुत काम करने पर जो पैसा मिलता था उसी से घर का गुजारा चलता सुरैया को घर से बाहर ना जाने देने का मुख्य कारण उसकी खूबसूरती थी उसका दूध सा गोरा बदन किसी कि भी नियत बिगाड़ सकता था बर्फ सा सफेद चेहरा जो भी देखे अपनी पलकें झपकना भूल जाये , उसके सुंदर नाक नक्श जैसे किसी सांचे में ढालकर तरासा गया हो रामलाल ने बड़ी ही देखरेख से सुरैया को पाला और उसे आज तक नगर से छुपाता आया था सुरैया अब बीस वर्ष की हो चुकी थी पहले तो केवल उसकी सुरक्षा की ही जिम्मेदारी थी पर अब रामलाल को उसकी शादी की चिंता भी सताए जा रही थी इसी चिंता में "जिस नगर से रामलाल हमेशा उसे छुपाता आया था आज उसी नगर के हवाले छोड़ गया".... काफी देर तक कुछ मदद ना मिलने पर उसने मन ही मन फैसला कर लिया 👇👇 "पिता के अंतिम संस्कार के लिए अब जो कीमत चुकानी पड़े वह तैयार है , इसके लिये चाहे जिस्म के भूखे भेड़ियों के सामने खुद का शरीर ही क्यों ना डालना पड़े "
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