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बाअदब मोहब्बत

30 अप्रैल 2022

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सुरैया के पिता का निधन हो जाने के बाद उसका इस दुनिया मे कोई नही रह गया , उसके पास इतने पैसे तक नही थे कि अपने पिता के शव को कफ़न से ढक सके 

इकलौता घर होने के कारण किसी से मदद मिलने की संभावना भी नही थी अगर वह मदद बुलाने जाती है तो पीछे पिता के शव के पास कौन रुकेगा

बस इसी सोच मे सुबह से दोपहर हो गयी आखिरकार उसे पिता के शव को छोड़कर मदद पाने के लिए नगर की ओर आना पड़ा ।।

सुरैया नगर के चौपाल में पहुंची तो सभी दुकानदारों और उपस्थित लोगों की नजरों को खुद को घूरता हुआ महसूस किया, अपना दुपट्टा सही करते हुए वह एक दुकानदार की तरफ बढ़ी

स..सेठ जी मेरे पिताजी का निधन हो गया उनका अंतिम संस्कार करवा दीजिये मेरे पास तो कफ़न के लिए भी पैसे नही, उनके अलावा मेरा इस दुनियां में कोई नहीं है

- सुरैया ने रोते हुए सेठ से कहा

सेठ ने उसकी बात जैसे सुनी ही नही वो तो बस उसको ऊपर से नीचे घूरे जा रहा था

सुरैया ने फिर से दुपट्टा सही करते हुए दोबारा विनती की

- भगवान के लिए सेठ जी मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करा दीजिये

सेठ ने अब कुछ कहना चाहा ओर उसे पास आने का ईशारा किया

सुरैया पास पहुंची तो सेठ ने धीरे से कहा -

वो तुम्हारे बाप का अंतिम संस्कार हम करा देगा प..पर .

पर क्या सेठ जी .. सुरैया ने आंखे पोंछते हुए पूछा

व.. वो अ..एक रात के लिये तू मेरी हो जा तो मै तेरे बाप का सारा काम कर दूंगा - सेठ ने उसके हाथ को छूते हुए कहा

सेठ जी ... ऐसे समय मे भी.. आप मदद करने के बजाय छी...  -  सुरैया हाथ पीछे खींचते हुए बोली

सेठ जी मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करवा दीजिये  उनके अलावा मेरा इस दुनियां में कोई नहीं है

और मेरे पास तो कफ़न के लिए भी पैसे नही,  - सुरैया ने रोते हुए दूसरी दुकान के सेठ से कहा

वो हमारे पास इतना टाइम नही, हर किसी के साथ जाते फिरे - सेठ ने कहा

भगवान के लिए सेठ जी कुछ तो मदद कीजिये मेरी - सुरैया ने फिर विनती की

हाँ एक काम हो सकता हैं गर आज रात के लिए तू मेरी बन जाये तो - सेठ ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा

सुरैया रोती हुई आगे बढ़ गयी और हर दुकानदार और आने जाने वाले से बस यही विनती करती रही

- "मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करवाने में मदद करो" लेकिन इस नगर में शायद ऐसा कोई नही था जो बेवजह उसकी मदद करने को तैयार होता

सभी ने वहीं बात कही जो उन दोनों सेठो ने उससे कही थी - "अगर एक रात के लिए हमारी हो जाये तो हम कुछ करेंगे"

आखिरकार सभी जगह से निराश थक हारकर वो वही बैठ गयी और रोते हुए प्रार्थना करने लगी - भगवान के लिए कोई तो मेरे पिताजी का संस्कार करवा दो

काफी देर तक जब कोई मदद नही मिली तो उसे याद आया उसके पिता जी के शव के पास भी कोई नही था तो वह रोते हुए वापस घर की ओर दौड़ पड़ी

दिनभर नगर में घूमने और भूख के कारण थककर वही पिता के शव के सिरहाने दीवार से टिककर बैठ गयी

तब तक रात भी हो चुकी थी

घर के नाम पर बस एक झोंपड़ी ही उनके सिर ढकने का साधन थी

सुरैया के पिता रामलाल जब तक जीवित थे उसे कभी घर से बाहर नही जाने दिया शायद वह नगर के लोगों की सोच से परिचित थे

दिन में थोड़ा बहुत काम करने पर जो पैसा मिलता था उसी से घर का गुजारा चलता

सुरैया को घर से बाहर ना जाने देने का मुख्य कारण उसकी खूबसूरती थी उसका दूध सा गोरा बदन किसी कि भी नियत बिगाड़ सकता था

बर्फ सा सफेद चेहरा जो भी देखे अपनी पलकें झपकना भूल जाये , उसके सुंदर नाक नक्श जैसे किसी सांचे में ढालकर तरासा गया हो

रामलाल ने बड़ी ही देखरेख से सुरैया को पाला और उसे आज तक नगर से छुपाता आया था

सुरैया अब बीस वर्ष की हो चुकी थी पहले तो केवल उसकी सुरक्षा की ही जिम्मेदारी थी पर अब रामलाल को उसकी शादी की चिंता भी सताए जा रही थी

इसी चिंता में

"जिस नगर से रामलाल हमेशा उसे छुपाता आया था आज उसी नगर के हवाले छोड़ गया"

अपने पिता के सिरहाने बैठी सुरैया का अब नींद से जैसे वास्ता नही रह गया हो पूरी रात ऐसे ही बैठकर गुजारी

सवेरे हिम्मत करके फिर से मदद की आस में नगर की बजाय मुख्य हाईवे की ओर बढ़ गयी

पिता के अंतिम संस्कार और पेट की भूख अब दोहरी मार से जूझते हुए सुरैया हाइवे पर खड़ी थी

उसका गोरा बदन देख कई गाड़ीयां रुकी पर मदद के नाम पर कोई तैयार नही हुआ

शायद किसी के पास मदद के लिए समय नही था अगर बात जिस्म की होती तो बात अलग होती

काफी देर तक कुछ मदद ना मिलने पर उसने मन ही मन फैसला कर लिया

"पिता के अंतिम संस्कार के लिए अब जो कीमत चुकानी पड़े वह तैयार है , इसके लिये चाहे जिस्म के भूखे भेड़ियों के सामने खुद का शरीर ही क्यों ना डालना पड़े "

कविता रावत

कविता रावत

ऐसे भूखे भेड़ियों को उन्हीं की भाषा में उन्हें उलझाकर वो गत करनी चाहिए जो जिंदगी भर याद रखे वे बेवसी और लाचारी का कितना फायदा उठाते हैं ऐसी गन्दी सोच के भेड़िया किस्म के लोगों की आज के समय में भी कोई कमी नहीं है

2 मई 2022

Vijay Nayak

Vijay Nayak

2 मई 2022

Ji आपका बहुत बहुत आभार Thankyou ma'am 🙏🥰🥰

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बाअदब मोहब्बत
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सुरैया के पिता का निधन हो जाने के बाद उसका इस दुनिया मे कोई नही रह गया , उसके पास इतने पैसे तक नही थे कि अपने पिता के शव को कफ़न से ढक सके, इकलौता घर होने के कारण किसी से मदद मिलने की संभावना भी नही थी अगर वह मदद बुलाने जाती है तो पीछे पिता के शव के पास कौन रुकेगा बस इसी सोच मे सुबह से दोपहर हो गयी आखिरकार उसे पिता के शव को छोड़कर मदद पाने के लिए नगर की ओर आना पड़ा ।। ....... "मेरे पिताजी का अंतिम संस्कार करवाने में मदद करो" लेकिन इस नगर में शायद ऐसा कोई नही था जो बेवजह उसकी मदद करने को तैयार होता सभी ने वहीं बात कही जो उन दोनों सेठो ने उससे कही थी - "अगर एक रात के लिए हमारी हो जाये तो हम कुछ करेंगे" "सुरैया के पिता रामलाल जब तक जीवित थे उसे कभी घर से बाहर नही जाने दिया शायद वह नगर के लोगों की सोच से परिचित थे दिन में थोड़ा बहुत काम करने पर जो पैसा मिलता था उसी से घर का गुजारा चलता सुरैया को घर से बाहर ना जाने देने का मुख्य कारण उसकी खूबसूरती थी उसका दूध सा गोरा बदन किसी कि भी नियत बिगाड़ सकता था बर्फ सा सफेद चेहरा जो भी देखे अपनी पलकें झपकना भूल जाये , उसके सुंदर नाक नक्श जैसे किसी सांचे में ढालकर तरासा गया हो रामलाल ने बड़ी ही देखरेख से सुरैया को पाला और उसे आज तक नगर से छुपाता आया था सुरैया अब बीस वर्ष की हो चुकी थी पहले तो केवल उसकी सुरक्षा की ही जिम्मेदारी थी पर अब रामलाल को उसकी शादी की चिंता भी सताए जा रही थी इसी चिंता में "जिस नगर से रामलाल हमेशा उसे छुपाता आया था आज उसी नगर के हवाले छोड़ गया".... काफी देर तक कुछ मदद ना मिलने पर उसने मन ही मन फैसला कर लिया 👇👇 "पिता के अंतिम संस्कार के लिए अब जो कीमत चुकानी पड़े वह तैयार है , इसके लिये चाहे जिस्म के भूखे भेड़ियों के सामने खुद का शरीर ही क्यों ना डालना पड़े "

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