कविता.... व्यंग्य आदमी तो कुता होता है यह कभी सुधर नहीं सकता धोखा तो फितरत में है, मासूम लड़कियों की भावनाओ से खेलता है उनका फायदा उठाता है, दहेज के लिए पत्नी से मारपीट करता है औरत को अपने पैर की जूती समझता है दुष्ट, नीच, हरामी पापी.... बस बस बस... हे नारी इतने सारे लांछन लगाने से पहले मेरे कुछ सवालों के जवाब दे दे... कविता पीड़ा में व्यंग्य.. 👇 मैं पुरुष हूं, मेरा नारी से सवाल है क्या हर पुरुष, होता एक समान है..?....
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