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बदलाव

22 दिसम्बर 2021

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                     "बदलाव"

कश्ती तो वही हे बस किनारे बदल रहे हे
नजर तो वही हे बस नजारे बदल रहे हे

सुना हे जिवन की परिभाषा बदल रही हे
जो दिख रही हे वही बात बदल रही हे

भरे बाजार मे पानी के कीमत लग रहीं हे
ये प्यास बुझ रही हे की प्यास बदल रही हे

नये रिस्ते तो जुड़ रहे हे पर पुराने बोझ हो रहे हे
सुना हे गिनती मे वृद्धालय बढ रहे हे ।।

✍"मनिषा राठोड़ "✍
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ये किताब हम सब के देनिक जिवन, समाज,साथ और प्रेम से जुड़ी कविताओ का संग्रह हे

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