इस माह दैनन्दिनी 'बाग़-बगीचे की बातें' के अंतर्गत मैंने अपने बाग़-बगीचे के कुछ जरुरी पेड़-पौधों के बारे में आपको कुछ जानकारी साझा दी। इसमें बाग़-बगीचे के सभी पेड़-पौधों की बारे में समयाभाव के कारण बता पाना संभव नहीं हो सका। इसलिए मैंने सोचा आज माह के अंतिम लेख में 'बाग़-बगीचे' के छूटे हुए पेड़-पौधों के बारे में भी थोड़ा-बहुत बताती चलूँ, ताकि मैं उनकी नाराजगी से बची रह सकूँ।
इसी तारतम्य में पहले बात करती हूँ बाहरी बॉउंड्री में जहाँ सतवारी और भृंगराज के अलावा जो महत्वपूर्ण बेल बॉउंड्री की शोभा बढ़ा रही है वह है गिलोय। गिलोय पिछले पांच वर्ष से हमारी बॉउंड्री के चारों ओर तो फैली ही है इसके अलावा व नीम के पेड़ में खूब छाई हुई। भीषण गर्मी में यही एक ऐसी बेल थी, जिसमें हरे-हरे पत्तों के बीच लाल-हरे,पीले बीज बगीचे की शोभा बढ़ा रहे थे। पिछले कोरोना काल में तो इसकी पत्तियों और तनों की मांग चरम सीमा लाँघ गई थी, दूर-दूर से कई लोग आकर मांग-मांग कर ले गए, तो हमें यह देखकर अच्छा लगा कि चलो हमारी मेहनत तो किसी की काम आयी।
अब बॉउंड्री के पौधों की बाद फूल के पौधों की बात करती हूँ। फूल के पौधों में सदाबहार, गुलाब, कनेर, गुड़हल, चाँदनी, चम्पा, चमेली, हार सिंगार, गेंदा आदि की बहार तो है ही साथ में जो गुल अब्बास की रंगत है वह देखने लायक है। यद्यपि इसके फूल बरसात और सर्दी में सबसे ज्यादा खिलते है, लेकिन इसमें भी सदाबहार की तरह हमेशा फूल खिलते रहते है। बस गर्मियों में इसे पानी की ज्यादा जरुरत पड़ती है। इसके काली मिर्च जैसे बीज गर्मियों में ज्यादा पकते हैं और जब यह जमीन में गिरते और बरसात का मौसम आता है तो फिर इसकी बहार देखते ही बनती है।
अब बात करती हूँ फलों के पेड़ों की, जिसमें पपीता और केला की बात तो मैं कर चुकी हूँ। अब जो बचे पेड़ हैं- आम, अमरूद, जामुन, नीम्बू, आड़ू जिसमें अमरूद और नींबूं में ही अभी फल आते हैं, बाकी अभी छोटे-छोटे हैं।
साग-सब्जी में ककड़ी, कद्दू, गिलकी और सेम की बात मैं पहले कर चुकी हूँ। अब बाकी बचे चौलाई, पालक, मिर्च और पोई जिसने बरसात होने पर अपने बढ़ने की रफ़्तार पकड़ ली है।
इसके अलावा अन्य शोभा बढ़ाने वाले पौधों की भी रौनक देखते बन रही है। पान की बेल भी बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इसे हमें कुछ थर्माकोल तो कुछ जमीन में लगा रखा है, जो गर्मी में सूखने की कगार पर था लेकिन अब बरसात ने इसमें जान फूंक दी हैं तो यह सर उठाकर सरपट बढ़ता जा रहा है। कुछ पान के पौधों को हमने दीवार में गाडी के टायर और मिनरल वाटर की बोतल में लगाया है। इसकी पत्तियाँ अपेक्षाकृत छोटे हैं लेकिन बड़ी स्वादिष्ट होती हैं, जिन्हें टूटी-फूटी और सौंफ के साथ मिलकर खाने में बड़ा मजा आता है। मोहल्ले और ऑफिस के कई लोग इसके स्वाद के दीवाने हैं। कुछ लोग पूजा के लिए इसकी पत्तियाँ ले जाते हैं तो मन को अच्छा लगता है।
मुझे बचपन से जो प्रकृति के साथ लगाव रहा है उससे मैं कभी दूर नहीं हुई, यह देखकर मुझे बड़ी ख़ुशी मिलती हैं। मैं आज न केवल अपने घर के आस-पास, बल्कि दूसरी जगह भी पेड़-पौधे लगाने और दूसरे लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करने में पीछे नहीं रहती हूँ। यह मेरा प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण को बचाने का परिणाम है कि आज हमारा घर-आंगन ग्रीनलैंड का पर्याय बना हुआ है। इसके अलावा हमने घर से थोड़ी दूर स्थित श्यामला हिल्स के पहाड़ी पर बने भगवान शंकर के मंदिर “जलेश्वर मंदिर“ में भी सैकड़ों पेड़-पौधे लगाए हैं, जिनकी हम निरंतर देख-रेख करते हैं। घर और बाहर पेड़-पौधों के बीच घड़ी दो घड़ी बैठकर और उन्हें पलते-बढ़ते, फलते-फूलते देख मन में जो सुकून मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
आप भी अपने आस-पास उपेक्षित भूमि, गमलों या किसी भी डिब्बे आदि में पेड़-पौधे लगाइये और प्रकृति के सहायक बनकर जीवन का सच्चा सुकून अनुभव कीजिए।