आजकल गर्मी के तेवर बड़े तीखे हैं। नौतपा आकर चला गया लेकिन मौसम का मिजाज कम होने के स्थान पर और भी अधिक गरमाया हुआ है। इंसान तो इंसान प्रकृति के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, फूल-पत्ते कुछ मुरझाते तो कुछ सूखते चले जा रहे हैं। हमारे बग़ीचे का भी हाल बुरा है। छोटे-छोटे कई नाजुक पौधे तो दम तोड़ चुके हैं और कुछ यदि दो-चार दिन बारिश न हुई तो उन्हें भी बेदम होते देर नहीं लगेगी। पानी का एक समय निर्धारित हैं और वह भी मुश्किल से एक घंटा। शाम को ऑफिस से जाकर जैसे ही पानी आता है जल्दी से घर का पानी भरकर बग़ीचे में पाइप से पानी देने लग जाते हैं लेकिन यह बढ़ती गर्मी को देखते हुए कम पड़ जाती है। पेड़-पौधों को मुरझाते और सूखते देख अपना गला भी सूखने लगता है। लेकिन क्या करें, कोई उपाय न देख उन पेड़-पौधे को देख मन को थोड़ी राहत मिलती हैं जो इस भीषण गर्मी में भी अपना दमखम बनाये रखकर अपना हौसला बढ़ाते मिलते हैं। इनमें सबसे पहले कांटेदार पौधे होते हैं जो भीषण से भीषण गर्मी में ऐसे तने रहते हैं जैसे कोई तपस्वी अपनी तपस्या में लीन हों, जिसे दीन-दुनिया में क्या चल रहा है उसकी कोई खबर नहीं रहती है। ये तो रही कांटेदार पेड़ों की बात। इसके अलावा हमारे बगीचे में जो पेड़ थोड़ा-बहुत हमारे पानी देने पर बड़े खुश होकर इसका प्रतिफल देने में कोई हिचक नहीं करते वे हैं केले और पपीते के पेड़। पहले शुरू करती हूँ केले के पेड़ से। पिछले वर्ष जब पहली बार बगीचे के केले के पेड़ में पहली बार केले लगे तो मन को बड़ी ख़ुशी हुई कि चलो मेहनत काम आयी, हालांकि तब उसमें गिनती के पांच केले लगे थे, वे भी पककर खाने को मिलते उससे पहले ही तीन तो गिलहरी खा गयी दो शेष बचे हुए मिले तो हमने प्रसाद समझकर खाया। इस वर्ष लगभग चार दर्जन केले लगे तो देखकर बाग़-बाग़ हो चला। हर दिन इन गर्मियों में एक-दो, एक-दो कर वे पकते चलते गए और हम उन्हें तोड़कर कुछ खाते गए तो कुछ आस-पड़ोस से लेकर नाते-रिश्तेदारों में प्रसाद की तरह बांटते चले गए। सभी खूब तारीफ़ करते और आखिर करते क्यों नहीं आखिर केले काफी बड़े जो थे और स्वादिष्ट भी। ये तो हुई केले की बात अब बात करती हूँ पपीते के पेड़ की।
सबसे पहले हमने जब बगीचे की शुरुवात की थी तो ऐसे ही लगभग 15-20 पपीते के पेड़ इधर-उधर से लाकर बरसात के मौसम में लगाए थे, जिनमें से पांच पेड़ ही फल देने लायक हुए। कोई गल गए तो किसी को दीमक खा गया। लेकिन अभी जो पेड़ शेष हैं उनमें अभी भी कुछ दिन के अंतराल में एक आध पपीता पका मिल ही जाता है। पपीते के पेड़ को भी केले के पेड़ की तरह ही ज्यादा पानी की जरुरत होती है। इसलिए इन पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, वर्ना इसकी पत्तियां एक-एक कर सूखती चली जाती हैं। अभी खूब पपीते खाने को मिल रहे हैं तो मन उत्साहित हैं कि इस बरसात में बगीचे के किनारे-किनारे और पेड़ लगाए जाएंगे। इसके लिए हमने पहले से ही बीज सुखाकर रख लिए हैं। बस अब बरसात की प्रतीक्षा है, जैसे ही बादल अपनी पहली फुहार से बगीचे का तन-मन भिगोएंगे वैसे ही झटपट हम बीज रोपेंगे और अगली बरसात के पहले गर्मियों में इसके रसीले फलों का सेवन करेंगे, क्योंकि बरसात में पपीते का पेड़ बड़े तेजी से बढ़ते हैं और अगली बरसात से पहले फल देने लगते लगते हैं।
आप भी देर मत कीजिये अपने आस-पास, बाग़-बगीचे में केले और पपीते के पेड़ लगाने के लिए तैयार रहे और अगली गर्मियों में इसके स्वादिष्ट फलों का सेवन कीजिए।