भीषण गर्मी में जब आसमान से बादल उमड़-घुमड़ कर बरसने लगते हैं, तब बरसती बूंदों की तरह ही मन भी ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है। कल शाम को पहली बार जैसे ही बादलों से कुछ बूँदें जमीन पर आकर गिरी तो प्रकृति में एक नई लहर देखने को मिली। हम इंसान तो भीषण गर्मी से बचने के लिए कुछ न कुछ उपाय कर ही लेते हैं लेकिन पेड़-पौधे ऐसा नहीं कर पाते, वे तो वर्षा पर ही निर्भर रहते हैं। कल जब थोड़ी सी बारिश हुई तो मैंने बगीचे में देखा कि इस थोड़े से पानी से छोटे-बड़े पेड़-पौधों में रौनक आ गई थी, जबकि हम उससे कई अधिक पानी देते हैं। शायद ही इसी का नाम प्रकृति हैं। मैंने अनुभव किया कि हम पेड़-पौधों को कितना भी पानी दें, लेकिन यह सब उनके लिए हमारा उन्हें जीवित रखने की कवायद भर है। असली पानी तो उन्हें प्रकति से ही मिलता है, तभी तो जैसे ही बरसात होती हैं, उसके अगले ही दो-चार दिन में हर तरफ हरियाली छा जाती है। छोटे-छोटे पेड़-पौधे जमीन में उग आते हैं। उन्हें जो आश्वयक पौष्टिक तत्व वर्षा से मिलता है, वह हम कितना भी करे नहीं दे सकते हैं। अब इस बारिश से कुछ ही दिन में बगीचे में रौनक लौट आयेगी, ऐसी मुझे उम्मीद हैं और बड़ी राहत भी मिलेगी कि हर शाम को पेड़-पौधों को पानी न देना पड़े।
अभी मानसून तो आया नहीं लेकिन थोड़ा-बहुत पानी समय-समय पर बरसता रहे तो बगीचे में पेड़-पौधों को पानी देने के काम से राहत मिलेगी। बाकी आगे का हाल सुनाने फिर मिलती हूँ, फिलहाल इतना है