आज मैं आपको हमारे बगीचे के पितृ वृक्ष नीम से मिलाती हूँ। आज से लगभग ७ वर्ष पूर्व जब हम इस सरकारी आवास में आये तो यहाँ बाहर यही एक एकलौता नीम का वृक्ष था। उसके आस-पास अन्य कोई पेड़-पौधे नहीं थे। अधिकांश लोग कहते हैं कि यदि कोई बड़ा पेड़ हो तो उसकी छाया तले दूसरे पेड़-पौधे नहीं पनप पाते हैं, यही सोचकर पहले हमने सोचा कि चलो कुछ नहीं तो इस पर झूला ही डाल लेते हैं, जिस पर बड़े आराम से बैठ झूलते रहेंगे, लेकिन इससे पहले कि झूला डालते मन में प्रकृति प्रेम ने हिलोरे मारने शुरू किया तो हमने इसी के तले अपना एक छोटा सा बाग़-बगीचा बनाने का पक्का मन बना लिया। इसके लिए मैंने और इन्होंने मिलकर मान्यताओं को दरकिनार कर उसके आस-पास पथरीली बंजर पड़ी जमीन की गैंती और कुदाल से खुदाई की और फिर इधर-उधर से मिट्टी लाकर छोटी-छोटी क्यारियाँ बना डाली। उसके बाद सुरक्षा के लिए इधर-उधर से छोटे-बड़े पेड़ों की टहनियां लाकर बॉउंड्री बनाई और सबसे पहले छोटे-छोटे पेड़ पौधे लगाए। पेड़ों में बादाम, केला, पपीता, अमरूद, नींबू, जामुन, आम तो फूल के पौधों में गुड़हल, चांदनी, कनेर, सदाबहार, चमेली, गुलाब, गुलाबास और छोटी-छोटी क्यारियों में मिर्च, टमाटर, भिंडी, पालक, सरसों, चौलाई आदि मौसमी सब्जियां उगानी शुरू की। इसके अलावा हमने छोटे-छोटे पौधे जैसे- तुलसी, कुणज, सताबरी, भृंगराज, अश्वगंधा आदि सीढ़ियों में गमले रखकर उगाये। गर्मियों में तो बगीचे की रौनक कुछ ख़ास नहीं रहती हैं, सब पेड़-पौधे सुस्त रहते हैं, लेकिन अभी जैसे ही बरसात शुरू हुई है, बगीचे की रौनक देखते ही बनती जा रही है। कद्दू, तोरई, लौकी, ककड़ी, सेम, करेला, रतालू के बेल सरपट बॉउंड्री पर चढ़ रही हैं तो उनके पीछे पान की बेल भी उनका पीछा करने को कोशिश में लगी हैं। बॉउंड्री पर कंडाली जो गर्मियों में सूखने लगी थी, उसे भी नया जीवन मिला है तो वह भी बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही रही है। कंडाली और कुणज के बारे में थोड़ा विस्तार से फिर बताऊँगी।
हमारे पितृ वृक्ष नीम तले सभी पेड़-पौधों को फलते-फूलते देखकर लगता है, वही हमारे बगीचे का बाप भी है तो माँ भी। इसके अलावा वह हमारे लिए ही नहीं अपितु मोहल्ले भर के लिए भी किसी पितृ से कम नहीं है। क्योँकि एक वही है जो सबको निस्वार्थ भाव से प्राणवायु ऑक्सीजन तो देता ही है साथ में अपनी छाल से लेकर पत्तियां और निबौली बिना ना-नुकुर देने की क्षमता रखता है।
आज के लिए इतना ही ...