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दाल-सब्जी का तड़का जख्या और दुतपंगुरु

27 जून 2022

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आज भी जब कभी अपना कोई रिश्तेदार या निकट सम्बन्धी गांव जाकर वहाँ से मौसमी फल अखरोट, आड़ू, काफल, च्यूड़े, नारंगी या माल्टा के साथ ही गैथ की दाल, भट्ट, छीमी, रयांश, मंडुवे का आटा, कौणी, झंगोरा आदि लाकर उसमें से थोड़ा-बहुत हमें देकर जाता है तो गांव की कई यादें ताज़ी हो जाती है। कुछ फल और दाल तो शहर में मिल जाती हैं, लेकिन जो नहीं मिलती हैं उंन्हें देखते ही मुँह में पानी भर आता है और मन उन दिनों की यादों में डूबने लगता है। मुझे सबसे बड़ी ख़ुशी गैथ की दाल देखकर मिलती हैं, क्योंकि यहाँ शहर में कितने ही प्रकार की दालें बनाकर खा लो लेकिन जो स्वाद गांव की दाल में आता है, वह इनमें नहीं मिल पाता है। दाल की बात निकली है तो बताती चलूँ कि हमारे उत्तराखंड में दाल हो या साग जब तक इनमें जख्या या दुत पंगुरु का तड़का नहीं लग जाता, तब तक ये बेस्वाद माने जाते है। इसीलिए चाहे कोई भी हरी सब्जी हो या दाल इनमें तड़का जरूर लगता है और जब तड़का लगता है, तब इसकी सुगंध बड़ी दूर तक ऐसी फैलती है कि खाने वालों के मुँह में पानी भर आ जाता है और जब वे खाने बैठते हैं तो फिर उन्हें जिंदगी भर इसका स्वाद याद रहता है। आज हमें भले ही बाज़ार में तड़के के नाम पर कई प्रकार के रंग-बिरंगे पैकेट बड़ी सहजता से मिल जाते हैं लेकिन जो स्वाद साग और दाल में जख्या के बीज और दुत पंगुरु का तड़का लगाने पर मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ होता है।

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अब मैं सबसे पहले थोड़ा दुत पंगुरु के बारे में बताती हूँ। क्योंकि हमारे उत्तराखंड में इसे हम इसी नाम से जानते हैं। हिंदी और अंग्रेजी में इसे क्या कहते हैं इसका पता नहीं है लेकिन चीन में इसे चीनी चिव्स या चीनी प्याज कहा जाता है। इसकी पत्तियां लहसुन की पत्तियों जैसी होती हैं। यह एक बारामासी पौधा है, जिसपर वर्ष में एक बार प्याज जैसे सफ़ेद फूलों का बीज का गुच्छा आता है, जो बहुत सुन्दर लगता है। इसके सफेद फूल और लटके तने स्वादिष्ट चटनी बनाने के काम आते हैं। इसे उबालकर पकने वाली सब्जियों में बारीक काटकर मिलाया जाता है, जिससे वह और अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।

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अब थोड़ा जख्या के बारे में बताती हूँ।  यह हमारे उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में तड़के के रूप में सबसे सर्वाधिक प्रयोग में लाये जाने वाला पसंदीदा और लोकप्रिय मसालों में से एक है।  इसके बीज राई और सरसों जैसे हल्के काले ओर भूरे रंग के होते हैं, जो कि तड़के के रूप में लगने वाला मुख्य मसाला है।  कुछ लोग इसके पत्तों का साग भी बनाते हैं। पहाड़ी भोजन कड़ी, हरी सब्ज़ी,आलू के गुटके, रायते और दाल बिना जख्या के तड़के के अधूरे रहते हैं। पहाड़ ही क्यों जिसने भी इसका एक बार स्वाद लिया, वह उसे कभी नहीं भूलता। इस पौधे को उगाने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती हैं।  यह प्राकृतिक रूप से उगने वाला जंगली पौधा है, जो पीले फूलों और रोयेंदार तने वाला होता है। यह एक लगभग एक मीटर ऊँचा, पीले फूल व लम्बी फली वाला पौधा कहीं भी खाली पड़ी  जमीन में बरसात आते ही उग जाता है। लोगों को इसकी पहचान बहुत कम होती है, इसलिए वे इस महत्वपूर्ण पौधे को खरपतवार समझकर उखाड़कर फेंक देते हैं। जबकि अलग-अलग शोधों के पता चला है कि इसमें एंटी-हेल्मिंथिक, एनाल्जेसिक, एंटीपीयरेटिक, एंटी-डायरियल, हेपेटोप्रोटेक्टिव और एलिलोपैथिक जैसे कई गुण शामिल हैं। इसमें पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व खान-पान में इसके महत्व को और अधिक बढ़ाते हैं।  इसके बीज में पाए जाने वाला 18 फीसदी तेल फैटी एसिड तथा अमीनो अम्ल जैसे गुणों से परिपूर्ण होता है। इसके साथ ही इसके बीजों में फाइबर, स्टार्च, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, विटामिन ई व सी, कैल्शियम, मैगनीशियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन, मैगनीज और जिंक आदि पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। पहाड़ की परंपरागत चिकित्सा पद्धति में जखिया का खूब इस्तेमाल किया जाता है। एंटीसेप्टिक, रक्तशोधक, स्वेदकारी, ज्वरनाशक इत्यादि गुणों से युक्त होने के कारण बुखार, खांसी, हैजा, एसिडिटी, गठिया, अल्सर आदि रोगों में जख्या बहुत कारगर माना जाता है।

मैंने तो दुत पंगुरु या चीनी चिव्स या चीनी प्याज को अपने बग़ीचे में उगाया है और इसका मैं भरपूर उपयोग तो करती ही हूँ साथ ही अन्य लोगों को भी इसे लगाने और चटनी के लिए देती हूँ।  क्यों न आप भी इस बारामासी पौधों को अपने बगीचे या गमले में लगाए, क्योंकि यह एक सुन्दर सजावट जैसा भी है और उपयोगी भी।  इसके साथ ही जख्या को आप अपने आस-पास खाली पड़ी जमीन में तलाशिये क्योंकि यह सरसों जैसा ही पौधा है इसलिए इसे पहचानने में आपको ज्यादा मशकत नहीं करनी पड़ेगी। जब इसकी पहचान कर लो तो उसके बीजों को निकाल कर अपनी रसोई में स्वाद का तड़का लगाइये और फिर मुझे याद करना न भूलिए।

आज के इतना ही, फिर मिलती हूँ बाग़-बगीचे की कुछ और बातें लेकर...........

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रचनाएँ
बाग़-बगीचे की बातें (दैनन्दिनी-जून, 2022)
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जून माह की दैनन्दिनी में मैं केवल आपसे बाग़-बगीचे की बातें करूँगी। इस माह 5 तारीख को विश्व पर्यावरण दिवस भी आता है, तो मैंने सोचा क्यों न इस माह प्रकृति से अपने जुड़ाव की बातें साझा करती चलूँ। प्रकृति की गोद में मुझे बड़ा सुकून मिलता है, इसीलिए मैंने अपने घर के पास एक ऐसा छोटा सा बाग़-बगीचा बनाया हैं, जहाँ कुछ छोटे-बड़े अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे और थोड़ी-बहुत ताज़ी साग-सब्जी भी उगा लेती हूँ। इस दैनन्दिनी में आप मेरे इसी बाग़-बगीचे में उगे पेड़-पौधों की बारे में जानिए और मेरे साथ-साथ चलते रहिए।
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बाग़-बगीचे की दुनिया की सैर

4 जून 2022
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आज जून माह की ४ तारीख हो गयी हैं।  इन चार दिन में सोच रही थी कि इस माह की दैनन्दिनी में क्या लिखूं।  इसी उधेड़बुन में जब कल मैंने समाचार पत्र में विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में कुछ लेख पढ़े तो मेरे

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पर्यावरण-प्रदूषण रोकथाम हेतु पेड़-पौधे लगाना जरुरी है

5 जून 2022
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आज विश्व पर्यावरण दिवस है। हमारे जीवन के अस्तित्व, निर्वाह, विकास आदि को दूषित करने वाली स्थिति को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाता है।  जैसे-जैसे महानगरों के विस्तार के साथ ही नए-नए उद्योग-धंधों का अनियंत

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फल-ककड़ी चोरी पर मिली गालियों की यादें

7 जून 2022
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  इन दिनों हमारे बग़ीचे की बॉउंड्री में ककड़ी , कद्दू, लौकी, तोरई और सेम की छोटी-छोटी बेलें फ़ैल रही हैं। इनमें कद्दू, सेम और ककड़ी मैंने अपने गांव से बीज मँगवाकर लगाए हैं। हर दिन जब इन बेल को धीरे-धीर

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तुलसी का पौधा जन्मदिन का उपहार

8 जून 2022
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आज सुबह उठते ही पतिदेव ने मुझे मिनिरल बॉटल को काटकर उसमें लगाए तुलसी के पौधे को मेरे जन्मदिन का उपहार कहकर दिया तो मैंने उनसे कहा कि लोग अपनी पत्नी को उसके जन्मदिन पर महँगे से महँगा उपहार देते हैं और

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जंगल जलेबी का पेड़

9 जून 2022
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गर्मियों में सुबह-सुबह की सैर का अपना एक अलग ही आनंद है। इस सैर में यदि सुबह-सुबह कुछ प्रोटीन, वसा, कार्बोहैड्रेट, केल्शियम, फास्फोरस, लौह, थायामिन, रिबोफ्लेविन आदि तत्वों से भरपूर कुछ मुफ्त में ख

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भीषण गर्मीं में भी फल देते केले और पपीते के पेड़

10 जून 2022
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आजकल गर्मी के तेवर बड़े तीखे हैं। नौतपा आकर चला गया लेकिन मौसम का मिजाज कम होने के स्थान पर और भी अधिक गरमाया हुआ है। इंसान तो इंसान प्रकृति के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, फूल-पत्ते कुछ मुरझाते तो कुछ सूखत

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पहली फुहार आयी बहार

12 जून 2022
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भीषण गर्मी में जब आसमान से बादल उमड़-घुमड़ कर बरसने लगते हैं, तब बरसती बूंदों की तरह ही मन भी ख़ुशी के मारे उछल पड़ता है। कल शाम को पहली बार जैसे ही बादलों से कुछ बूँदें जमीन पर आकर गिरी तो प्रकृति में एक

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बगीचे के नीम पेड़ पर चढ़ा सांप

14 जून 2022
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आज शाम जैसे ही ऑफिस से घर पहुँची तो मोहल्ले में बड़ा हो-हल्ला मचा था। मोहल्ले के कुछ लोग अपनी बालकनी तो कुछ छत से हमारे बग़ीचे के नीम के पेड़ को किसी अजूबे की तरह उचक-उचक कर देखते हुए शोरगुल कर रहे थे। उ

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जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी

16 जून 2022
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मुरझाये पौधे भी खिल उठते जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी। आह! इन बादलों की देखो अजब-गजब की मनमानी।। देख बरसते बादलों को ऊपर पेड़-पौधे खिल-खिल उठते हैं। जब बरसते बादल बूंद- बूंद तब अद्भुत छटा बिखेरते

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बगीचे का पितृ वृक्ष नीम

19 जून 2022
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आज मैं आपको हमारे बगीचे के पितृ वृक्ष नीम से मिलाती हूँ। आज से लगभग ७ वर्ष पूर्व जब हम इस सरकारी आवास में आये तो यहाँ बाहर यही एक एकलौता  नीम का वृक्ष था।  उसके आस-पास अन्य कोई पेड़-पौधे नहीं थे। अधि

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बगिया की वन तुलसी

22 जून 2022
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बरसात का मौसम आते ही हमारे बगीचे में राम और श्याम तुलसी के पौधों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। लेकिन जैसे ही ठण्ड का मौसम आता है तो इनमें से कुछ को पाला मार जाता है और फिर जैसे ही गर्मी का मौसम आया औ

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कंडाली का पौधा

24 जून 2022
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अभी दो दिन पहले मैंने आपको अपने बगीचे में उगाई वन तुलसी की बारे में जानकारी दी। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज मैं अपने बग़ीचे में उगाये हमारे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के एक ऐसे औषधीय पौधे के बारे में जो

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कुणजा के पौधा

25 जून 2022
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कल मैंने आपको हमारे बाग़-बगीचे में उगाई कंडाली के पौधे के बारे में कुछ बातें बताई। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज मैं आपको हमारे उत्तराखंड से लाकर बगीचे में लगाए कुणजा के पौधे के बारे में बताती हूँ।  बचपन

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दाल-सब्जी का तड़का जख्या और दुतपंगुरु

27 जून 2022
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आज भी जब कभी अपना कोई रिश्तेदार या निकट सम्बन्धी गांव जाकर वहाँ से मौसमी फल अखरोट, आड़ू, काफल, च्यूड़े, नारंगी या माल्टा के साथ ही गैथ की दाल, भट्ट, छीमी, रयांश, मंडुवे का आटा, कौणी, झंगोरा आदि लाक

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सतवारी और भृंगराज

28 जून 2022
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आज मैं आपको अपने बाग़-बगीचे में लगी सतावरी और भृंगराज के बारे में बताती हूँ। हमने इन्हें हमारे बगीचे की बाउंड्री में लगा रखा है।  भृंगराज सड़क के किनारे वाली बॉउंड्री पर तो सतावरी सड़क से बिल्डिंग के

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बाग़-बगीचे की रंगत में

29 जून 2022
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इस माह  दैनन्दिनी  'बाग़-बगीचे की बातें' के अंतर्गत मैंने अपने बाग़-बगीचे के कुछ जरुरी पेड़-पौधों के बारे में आपको कुछ जानकारी साझा दी। इसमें बाग़-बगीचे के सभी पेड़-पौधों की बारे में समयाभाव के कारण बत

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