कुछ और दिन बीत चुके थे। चंद्रिका का हृदय अब और अधिक निर्मम और ठंडा हो चुका था। अपनी पहली बलि के बाद उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था, और वह अब दूसरी बलि के लिए अपना शिकार ढूंढ रही थी।
चंद्रिका अब अपने मकसद के और करीब पहुंच चुकी थी। । लेकिन वह जानती थी कि उस किताब के अनुसार केवल एक बलि से उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। उसे और मासूम की जरूरत थी। वह हवेली में और आसपास नजर रख रही थी, और आखिरकार उसका शिकार उसके सामने आ गया।
एक दिन, चंद्रिका की सेविका अपने पांच वर्षीय बेटे को लेकर हवेली आई, क्योंकि उसको शाम होने पर अपने पीहर जाना था, इसीलिए सेविका को अपने बेटे को अपने साथ ले जाना उचित लगा, इसलिए वह उसे साथ ले आई। जब शाम हुई तो चंद्रिका ने उस बच्चे को देखा, तो उसकी आँखों में वही निर्दयी चमक आ गई जो पहली बलि के समय थी।
चंद्रिका ने बड़े प्यार से कहा,
"तुम्हारे बेटे का नाम क्या है?"
"मालकिन, इसका नाम मोहन है," सेविका ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"बहुत प्यारा नाम है," चंद्रिका ने उसकी ओर स्नेह दिखाते हुए कहा। "आज रात तुम और तुम्हारा बेटा यहीं रुक जाओ। इतनी रात में वापस जाना ठीक नहीं होगा। हवेली में इतनी जगह है कि आराम से रह सकते हो।"
सेविका ने विनम्रता से कहा,
"मालकिन, आपकी कृपा है। लेकिन हमें कल सुबह जल्दी उठना है।"
चंद्रिका ने मीठे स्वर में समझाया,
"कल सुबह जल्दी जाना है तो यहीं से निकल जाना। लेकिन रात में सफर करना खतरनाक हो सकता है। तुम्हारे लिए और तुम्हारे बेटे के लिए यही सही होगा।"
सेविका उसकी बात मान गई और अपने बेटे के साथ हवेली में रुकने को तैयार हो गई। उसे क्या पता था कि वह रात उसके जीवन की सबसे भयावह रात बनने वाली थी।
सेविका ने विनम्रता से कहा,
"मालकिन, आपकी कृपा है। लेकिन हमें कल सुबह जल्दी उठना है।"
चंद्रिका ने मीठे स्वर में समझाया,
"कल सुबह जल्दी जाना है तो यहीं से निकल जाना। लेकिन रात में सफर करना खतरनाक हो सकता है। तुम्हारे लिए और तुम्हारे बेटे के लिए यही सही होगा।"
सेविका उसकी बात मान गई और अपने बेटे के साथ हवेली में रुकने को तैयार हो गई। उसे क्या पता था कि वह रात उसके जीवन की सबसे भयावह रात बनने वाली थी।
रात होते ही चंद्रिका ने अपनी योजना को अमल में लाना शुरू कर दिया। उसने सेविका और सूरजभान दोनों के खाने में गुप्त रूप से नींद की दवा मिला दी। वह जानती थी कि जब तक ये दोनों सोएंगे, उसे अपने काम को अंजाम देने का पूरा समय मिलेगा।
खाने के दौरान, सूरजभान ने पूछा,
"आज खाने में यह खुशबू कैसी आ रही है?"
चंद्रिका ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैंने आज का खाना ख़ास मोहन के लिए बनाया है, बहुत प्यारा बच्चा है।”
सूरजभान ने संतुष्ट होकर खाना खाया, और कुछ ही समय बाद वह गहरी नींद में सो गया। सेविका भी अपने बेटे के पास जाकर सो गई, बिना यह जाने कि उसकी और उसके बेटे की रात कैसी बीतने वाली है।
आधी रात को जब पूरा घर गहरी नींद में डूबा हुआ था, चंद्रिका अपने कमरे से बाहर निकली और वह चुपके से सेविका के कमरे की ओर बढ़ी।
कमरे के भीतर पहुँचते ही, उसने देखा कि बच्चा अपनी माँ के पास सो रहा था। वह मासूम और निश्चिंत था, उसकी नींद गहरी थी। चंद्रिका ने धीरे से बच्चे को उठाया और उसे उसी कमरे में ले गई जहाँ उसने पहली बलि दी थी।
कमरे के अंदर पहुँचते ही, उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। बच्चे को फर्श पर बैठा दिया। बच्चे की नींद में हलचल हुई, और वह डरा-डरा जागने लगा।
"मुझे घर जाना है। मेरी माँ कहाँ है?" बच्चे ने कांपते हुए कहा।
चंद्रिका ने उसे स्नेह भरे शब्दों में बहलाने की कोशिश की, "डरो मत। यह सब तुम्हारे लिए अच्छा होगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ। बस कुछ समय के लिए यहाँ बैठो।"
लेकिन उसकी आँखों में छलकती निर्दयता और उसकी भावनाएँ बच्चे को और ज्यादा डरा रही थीं। जैसे ही बच्चे ने महसूस किया कि कुछ गलत हो रहा है, वह कमरे से भागने की कोशिश करने लगा।
चंद्रिका ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह तेज़ी से दौड़ रहा था। अचानक, चंद्रिका ने बच्चे के पैरों पर वार किया, जिससे वह गिर पड़ा और वहीं कमरे में रुक गया। उसने दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया।
उसने धीरे-धीरे अलमारी से किताब निकाली,जैसे ही उसने किताब के पन्ने पलटे, हवा में एक अजीब सी सिहरन फैलने लगी। हवेली का माहौल जैसे पल भर में बदल गया। घर की दीवारों पर अंधेरे साये नाचने लगे, और चारों ओर एक डरावनी चुप्प छा गई।
चंद्रिका के चेहरे पर अचानक एक रहस्यमय चमक आ गई, और उसके भीतर का रुद्ररूप फिर से जाग उठा। उसके शरीर की ऊर्जा जैसे दोगुनी हो गई। अचानक फर्श पर तंत्र-मंत्र से बने तंत्र चित्र दिखने लगे, जो डरावनी लकीरों में बदलकर चारों ओर फैल गए। इन चित्रों में कोई अपार शक्ति समाई हुई थी, जो चंद्रिका के हर कदम के साथ और भी प्रबल होती जा रही थी।
किताब से नीली रोशनी निकलने लगी, जैसे किताब से कोई भूतिया शक्ति बाहर निकल रही हो। कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं, और कमरे का वातावरण इतना घना हो गया कि सांस लेना भी मुश्किल सा महसूस होने लगा। इस घने अंधेरे में चंद्रिका के चेहरे पर एक भयानक हंसी उभरी, जो उसके भीतर छुपे दुष्ट रूप को और भी उजागर कर रही थी। उसकी हंसी में एक नकारात्मकता थी, जो हर किसी के दिल में डर का एहसास करवा रही थी।
बच्चा भय के मारे कांप रहा था, उसकी आँखों में घबराहट थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है, लेकिन उसकी आत्मा गहरे भय से अभिभूत थी। वह डर के मारे भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन चंद्रिका ने उसे पकड़ लिया। उसकी हंसी अब और तेज़ हो गई, जैसे उसे डर का और आनंद आ रहा हो। उसने अपनी पूरी ताकत से बच्चे को पकड़ा और एक धारदार हथियार उठाया, जो जैसे ही उसके हाथ में आया, उसकी आत्मा में एक घातक क्रूरता समा गई।
बच्चे की चीखें गूंजने से पहले ही चंद्रिका ने उस पर हमला कर दिया। बच्चे की बलि दी, और उसका रक्त एक पात्र में एकत्र होने लगा। खून के छोटे-छोटे छींटे फर्श पर बिखर गए, और कमरे की दीवारों पर भी रक्त के निशान दिखाई देने लगे। चंद्रिका ने उस रक्त को धीरे-धीरे पात्र में इकट्ठा किया, जैसे वह किसी उपासना या पूजन का हिस्सा हो। उसकी आँखों में वह अंधकार और लालच था, जो अब उसे हर सीमा पार करवा रहा था।
उसका मन और आत्मा दोनों ही भटक चुके थे, और उसने बच्चे की बलि के बाद अपनी अंधी चाहत को पूरा कर लिया था। इस सब के बीच, हवेली में शांति नहीं थी—यह एक बुरी शक्ति का वास स्थान बन चुकी थी, जहाँ से अब कोई भी बाहर नहीं निकल सकता था।
फिर उसने बच्चे का एक हाथ काटा और उसे कपड़े में लपेट लिया। वह जल्दी-जल्दी कमरे की सफाई करने लगी ताकि किसी को शक न हो।
अगले दिन सुबह, पूरा घर मातम में डूबा हुआ था। बच्चे की माँ, जिनकी आँखों में चिंता और डर साफ़ दिख रहा था, अपने बच्चे के गायब होने पर घबराई हुई थी। घर के सारे नौकर भी चिंतित थे, और सूरजभान ने तुरंत सबको आदेश दिया कि "जाओ, सब जगह खोजो, बच्चे को ढूंढकर लाओ। सूरजभान खुद भी बच्चे को ढूंढने के लिए बाहर निकल पड़ा था, और उसके चेहरे पर गहरी बेचैनी थी।
सभी नौकर भागते हुए गए, लेकिन बच्चा कहीं नहीं मिला। घर का माहौल और भी घना हो गया था। बच्चे की माँ बार-बार अपने बेटे का नाम लेकर उसे पुकार रही थी, और उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
इसी बीच, चंद्रिका ने सेविका को ढूंढ लिया। वह सहमे हुए और रोते हुए सेविका के पास पहुँची। चंद्रिका ने उसे धीरे से समझाने की कोशिश की, "डरो मत, हो सकता है बच्चा कहीं पास ही होगा। वह अभी कहीं छुपा हुआ है। तुम्हारा बच्चा जल्द ही वापस आ जाएगा।"
सेविका ने चंद्रिका के शब्दों को सुना, लेकिन उसकी आँखे आंसुओं से भरी हुई थीं। वह हल्की सी आवाज में बोली, " कहाँ ढूंढें उसे? वो कहीं नहीं मिल रहा।"
चंद्रिका ने उसे थोड़ा और दिलासा देते हुए कहा, "सब ठीक होगा, यह सब कुछ एक बुरा सपना है। वह जल्दी मिल जाएगा, विश्वास रखो।"
इसी बीच, सूरजभान सारे रास्ते छानकर वापस लौट आया, लेकिन बच्चे का कहीं भी कोई पता नहीं चला। उसकी चिंता और भी बढ़ गई।
तभी रामदीन आया और उसने बताया, "साहब, जंगल में एक बच्चे का हाथ मिला है। हो सकता है कि कोई जंगली जानवर उसे खा गया हो।"
सूरजभान की आंखों में और भी बेचैनी आ गई। "क्या कह रहे हो तुम, रामदीन? चलो, हम सब वहां चलते हैं। जल्दी करो!" सूरजभान ने आदेश दिया।
रामदीन और सूरजभान समेत सभी लोग जंगल की तरफ दौड़ पड़े। जंगल की गहरी और घनी छांव में कदम रखते ही हर किसी के मन में डर और बेचैनी का माहौल था। जब वे उस जगह पहुँचे जहाँ हाथ मिला था, सबकी निगाहें उस खून से सने हिस्से पर पड़ीं। वह हाथ ज़मीन पर पड़ा हुआ था, और उसे देखकर सबका दिल बैठ गया। बच्चे की माँ फूट-फूटकर रोने लगी, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी।
"नहीं! यह क्या हो गया?" बच्चे की माँ चीखी। "मेरा बच्चा! मेरा बच्चा!" वह कांपते हुए, हाथ से दूर हटने की कोशिश करती रही, और फिर जोर-जोर से रोने लगी।
चंद्रिका ने बच्चे की माँ को अपने पास खींच लिया और उसे दिलासा देने की कोशिश की। वह धीमे-धीमे बोल पड़ी, "डरो मत, यह बस एक दुर्घटना है। वह कहीं न कहीं छुपा होगा। तुम घबराओ नहीं, वह जरूर वापस आएगा।"
लेकिन बच्चे की माँ को यह शब्द आराम नहीं दे पाए। वह फूट-फूटकर रोने लगी और बोली, "मेरा बच्चा! वह कहाँ जाएगा अब?"
चंद्रिका ने उसे और भी पास खींचते हुए कहा, "सब कुछ ठीक होगा, वह जरूर लौटेगा। विश्वास रखो।"
इसी दौरान, सूरजभान ने ज़ोर देकर कहा, "हम उसे ढूंढेंगे, हम उसे हर हाल में लाएंगे। यह वादा है मेरा।"
लेकिन जंगल में मिले उस अंग के साथ, अब किसी को उम्मीद नहीं थी कि बच्चा जिंदा होगा। सबकी आँखों में निराशा और डर का माहौल था।
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है......