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भाग: नौ

14 दिसम्बर 2024

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चंद्रिका और सूरजभान के जीवन में बीते नौ महीने किसी भयावह स्वप्न से कम नहीं थे। इक्कीस बलियों के इस काले सिलसिले में 20 मासूम बच्चों का जीवन समाप्त हो चुका था। चंद्रिका का गर्भवती होना इस दुष्चक्र का अंतिम चरण था, और उसका दावा था कि अंतिम बलि महाबलि होगी।
सूरजभान ने कई बार इस सिलसिले को रोकने का प्रयास किया था, परंतु चंद्रिका के रहस्यमयी तर्क और उसकी काली विद्या में निपुणता ने उसे बार-बार निरुत्तर कर दिया। अब, चंद्रिका की प्रसव पीड़ा की घड़ी आ चुकी थी। सूरजभान ने अपने स्तर पर सारी व्यवस्थाएँ करवाईं। आधी रात के करीब हवेली के भीतर जीवन का एक नया स्वरूप प्रकट हुआ—चंद्रिका ने एक पुत्र को जन्म दिया।
सूरजभान ने पहली बार अपने पुत्र को गोद में लिया। उसके मन में गहन प्रेम और गर्व की भावना जाग उठी। उसे लगा जैसे उसका पूरा संसार अब इसी छोटे से प्राणी के चारों ओर घूमने वाला है। चंद्रिका की आंखों में एक अनोखी चमक थी। वह अपने पुत्र को देखकर ऐसी प्रसन्न लग रही थी जैसे उसकी वर्षों की तपस्या आज पूर्ण हुई हो।
हवेली में उत्सव का माहौल था। झूमते नाचते लोग, हवेली को सजीव करती रोशनियाँ, और हर कोने में गूंजती बधाई की आवाज़ें। सूरजभान को लगा जैसे अब सब कुछ सामान्य हो चुका है।
पंद्रह दिन बाद सूरजभान और चंद्रिका अपने कक्ष में बैठे हुए थे। बालक पालने में सो रहा था। सूरजभान ने चंद्रिका के चेहरे पर गहरी सोच की रेखाएँ देखीं। उसने धीरे से बात शुरू की।
सूरजभान: "चंद्रिका, अब सब कुछ ठीक है। हमारी वर्षों की तपस्या सफल हुई। हमारा पुत्र हमारे साथ है। अब ये बलि का सिलसिला समाप्त करो। तुम्हारी इच्छा तो पूरी हो गई, है न?"
चंद्रिका ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो सूरजभान को विचलित कर गया—जैसे वहाँ कुछ ऐसा छिपा हो जिसे वह समझ नहीं पा रहा था।
चंद्रिका: (धीमी और रहस्यमयी आवाज़ में) "नहीं, सूरजभान। इच्छा अभी पूरी नहीं हुई है। अंतिम बलि अभी बाकी है।"
सूरजभान को झटका लगा। उसने चौंकते हुए पूछा।
सूरजभान: "क्या मतलब? हमारा पुत्र तो हो चुका है। तुमने कहा था कि बलियों का उद्देश्य यही था कि हमें संतान की प्राप्ति हो। अब क्यों बलि की आवश्यकता है?"
चंद्रिका: (आँखें झुकाते हुए) "सूरजभान, जो मैं कह रही हूँ, वह समझने की कोशिश करो। यह अंतिम बलि बहुत ज़रूरी है। अगर यह बलि नहीं दी गई, तो हमारे पुत्र का जीवन संकट में पड़ सकता है।"
सूरजभान का माथा ठनका। उसे लगने लगा था कि चंद्रिका उससे कुछ छिपा रही है। उसने कड़े स्वर में पूछा।
सूरजभान: "साफ-साफ बताओ, चंद्रिका। तुम हर बार बात को घुमाती हो। यह बलि क्यों ज़रूरी है? और मेरे पुत्र का जीवन संकट में कैसे पड़ सकता है?"
चंद्रिका ने गहरी साँस ली। वह कुछ पल के लिए खामोश रही, मानो सोच रही हो कि क्या कहना है। फिर उसने शांत और सधे हुए शब्दों में जवाब दिया।
चंद्रिका: "सूरजभान, तुम इस बात को नहीं समझोगे। मेरे पुत्र के जीवन की रक्षा के लिए यह बलि देनी ही होगी। यदि यह बलि नहीं दी गई, तो जो शक्तियाँ हमें आशीर्वाद दे रही थीं, वही हमसे सब कुछ छीन लेंगी। हमारा पुत्र नहीं बचेगा।"
सूरजभान: (गुस्से और घबराहट में) "कौन सी शक्ति, चंद्रिका? तुम यह सब मुझसे छुपा क्यों रही हो? क्या तुम मुझे कभी सच नहीं बताओगी? मुझे लगता था कि तुम्हारा यह पागलपन बच्चे के जन्म के साथ खत्म हो जाएगा, लेकिन अब तुम और भी ज्यादा खतरनाक बातें कर रही हो।"
चंद्रिका: (मुस्कुराते हुए, लेकिन उसकी मुस्कान में रहस्य और भय झलकता है) "सूरजभान, मैं जानती थी कि तुम मेरी मदद करोगे। और तुमने हमेशा मेरा साथ दिया है। लेकिन यह आखिरी बलि मैं खुद चुनूंगी। यह मेरी जिम्मेदारी है।"
सूरजभान: (चौंकते हुए) "खुद चुनोगी? मतलब क्या? कौन होगा वह जिसे तुम बलि के लिए चुनोगी?"
चंद्रिका: (गंभीर होकर) "यह मत पूछो। समय आने पर तुम सब जान जाओगे। बस इतना समझ लो कि यह आखिरी बलि हमारे पुत्र के जीवन को सुरक्षित करने के लिए है।"
(सूरजभान अब पूरी तरह उलझन में था। वह समझ नहीं पा रहा था कि चंद्रिका क्या चाहती थी। उसके मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे।)
सूरजभान: (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) "चंद्रिका, तुमने मुझसे वादा किया था कि यह सब 21 बलियों के बाद खत्म हो जाएगा। अब हमारा पुत्र भी हमारे साथ है। तुमसे एक और वादा चाहता हूँ—अगर यह आखिरी बलि दे दी जाए, तो यह सब हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। तुम उस किताब को हमेशा के लिए नष्ट कर दोगी। क्या तुम यह वादा कर सकती हो?"
चंद्रिका: (मुस्कुराते हुए, लेकिन उसकी मुस्कान में रहस्य का साया) "ठीक है, सूरजभान। मैं वादा करती हूँ कि यह आखिरी बलि के बाद सब खत्म हो जाएगा। लेकिन तुम भी यह वादा करो कि तुम मेरी इस बलि को सफल बनाने में मेरा साथ दोगे।"
(सूरजभान ने धीरे-धीरे सिर हिला दिया, लेकिन उसके मन में सवालों और डर का सैलाब उमड़ पड़ा था। वह नहीं जानता था कि चंद्रिका की बातों का क्या मतलब है। उसने चुपचाप सहमति जताई, लेकिन अंदर ही अंदर वह इस पूरे सिलसिले को खत्म करने का तरीका ढूंढ रहा था।)
सूरजभान को अब चंद्रिका की बातें झूठ लगने लगी थीं। वह उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला।
सूरजभान: "तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो, चंद्रिका। सच क्या है? मुझे पूरी सच्चाई बताओ। तुम्हारी इस इच्छा का उद्देश्य क्या है? क्या यह सब कुछ केवल हमारे पुत्र की सुरक्षा के लिए है, या बात कुछ और है?"
चंद्रिका: (आँखें चुराते हुए) "मैंने जो कहा, वही सच है। इससे ज़्यादा मत पूछो। बस, इतना जान लो कि यह बलि मेरी इच्छा पूरी करेगी।"
सूरजभान: (गुस्से से) "तुम्हारी इच्छा? मतलब अभी तक इच्छा पूरी नहीं हुई? तुम्हारी बातों का कोई सिर-पैर नहीं है, चंद्रिका! तुमने कहा था कि बलि का उद्देश्य पुत्र प्राप्ति था। अब वह पूरा हो गया, तो यह बलि क्यों?"
चंद्रिका ने चुप्पी साध ली। सूरजभान समझ गया कि वह कुछ बहुत बड़ा राज़ छिपा रही है। उसकी आँखों में अब डर की झलक थी।
सूरजभान: "क्या तुम्हारी इस अंतिम बलि का कोई संबंध हमारे पुत्र से तो नहीं?"
चंद्रिका: (हड़बड़ाते हुए) "पुत्र से? तुम कैसी बातें कर रहे हो, सूरजभान? ऐसा कुछ नहीं है। मैं कभी अपने पुत्र को संकट में नहीं डालूँगी।"
सूरजभान ने चंद्रिका की झूठी बातों को परखने के लिए कुछ नहीं कहा, परंतु उसके मन में गहरे शक ने जगह बना ली थी। अब वह यह जानने के लिए तैयार था कि चंद्रिका की यह अंतिम बलि और उसकी इच्छा का वास्तविक अर्थ क्या था। उसने तय कर लिया था कि वह इस रहस्य से पर्दा उठाकर ही रहेगा।
सूरजभान रातभर सो नहीं पाया। उसका मन चंद्रिका की बातों और उसके रहस्यमयी व्यवहार को लेकर बेचैन था। उसे लगने लगा था कि चंद्रिका अब उस व्यक्ति से बहुत दूर हो चुकी है जिसे उसने कभी प्यार किया था। अब वह एक ऐसी महिला बन चुकी थी, जिसके लिए इंसानों की जान की कोई कीमत नहीं थी।
वह सोचता रहा:
"क्या मैंने सही किया? क्या यह सब मेरी गलती है? अगर मैंने शुरुआत में ही चंद्रिका को रोका होता, तो क्या यह सब टल सकता था? लेकिन अब तो हमारे पुत्र का जन्म हो चुका है। क्यों उसे कोई खतरा हो सकता है? क्या यह सब चंद्रिका के भ्रम का हिस्सा है, या इसमें सच में कोई सच्चाई है?"
आने वाले दिनों में सूरजभान को समझ में आ जाएगा कि चंद्रिका की "आखिरी बलि" सिर्फ बलि नहीं थी—वह उसके जीवन का सबसे बड़ा रहस्य और सबसे बड़ा अभिशाप बनने वाली थी।
अगली रात को चंद्रिका धीरे-धीरे अपने नवजात पुत्र को गोद में लिए हवेली के उस गुप्त कमरे की ओर बढ़ रही थी। वह वही कमरा था, जहां वह काली शक्तियों की पूजा करती थी और बलि देने के लिए अपने काले अनुष्ठान करती थी। उस रात हवेली में एक अजीब-सा सन्नाटा था। जैसे हवेली भी सांस रोककर इस बात की गवाही दे रही हो। चंद्रिका के चेहरे पर जुनून और खौफनाक संतुष्टि का अजीब मिश्रण था। कमरे में दाखिल होकर उसने पुत्र को लकड़ी के झूले पर रखा और वह किताब खोली, जिसे वह हमेशा अपने पास रखती थी। किताब के पन्ने पलटते हुए उसने काले मंत्र पढ़ने शुरू किए। उसकी आवाज गूंजती हुई हवेली के हर कोने में डरावना प्रभाव डाल रही थी।
(सूरजभान उस समय अपने कक्ष में था, लेकिन गूंजती आवाजें उसे बेचैन कर रही थीं। उसे महसूस हुआ कि चंद्रिका फिर से कुछ ऐसा कर रही है, जो उसने वादा किया था कि वह छोड़ देगी। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने तुरंत ही कक्ष छोड़कर उन आवाजों का पीछा करना शुरू किया।)
(कमरे तक पहुंचने पर सूरजभान ने देखा कि दरवाजा बंद था और अंदर से काले मंत्रों की गूंज आ रही थी। उसने तेजी से दरवाजा खोला।)
सूरजभान: (गुस्से में) "यह क्या कर रही हो, चंद्रिका? तुमने वादा किया था कि अब यह सब बंद हो जाएगा। तुम इस कमरे में फिर से क्यों आई? और मेरे पुत्र को यहां क्यों लाई हो?"
चंद्रिका: (मंत्रोच्चार रोककर, धीरे-धीरे पलटते हुए) "यह कमरा मेरा है, सूरजभान। और यह पुत्र सिर्फ तुम्हारा नहीं, मेरा भी है। मैं इसे यहां इसलिए लाई हूं क्योंकि यह मेरी शक्ति का हिस्सा है। इसे मेरे साथ रहना होगा।"
(सूरजभान को चंद्रिका की आंखों में एक अजीब-सी चमक दिखी। वह चमक किसी मां की ममता की नहीं, बल्कि एक सनकी और खतरनाक इंसान की थी।)
सूरजभान: (सख्ती से) "चुप रहो, चंद्रिका! तुम इसे उस कमरे में नहीं ला सकती। यह बच्चा यहां के लिए नहीं है। यह किसी बलि या तुम्हारे अनुष्ठानों का हिस्सा नहीं बनेगा।"
चंद्रिका: (भयानक हंसी के साथ) "तुम क्या समझते हो, सूरजभान? यह पुत्र सिर्फतुम्हारा है? यह मेरी इच्छाओं और मेरी तपस्या का फल है। इस पर मेरा भी हक है।"
(सूरजभान अब पूरी तरह क्रोधित हो चुका था। उसने झटके से बच्चे को चंद्रिका की गोद से खींचकर अपनी बाहों में ले लिया।)
सूरजभान: (गुस्से में) "यह बच्चा मेरा भी है, चंद्रिका। और आज के बाद तुम इसे इस कमरे में लेकर नहीं आओगी। तुम्हारा यह पागलपन अब खत्म होगा। समझीं तुम?"
(चंद्रिका की आंखों में गुस्से और झुंझलाहट का सैलाब उमड़ पड़ा। उसकी आंखें खून-सी लाल हो गईं। लेकिन उसने तुरंत अपने चेहरे के भाव बदल लिए। वह जान गई थी कि सूरजभान अपने पुत्र के मोह में पूरी तरह बंध चुका है। वह इस समय सीधे टकराव से कुछ हासिल नहीं कर सकती थी। उसने खुद को शांत किया और आंसू बहाने लगी।)
चंद्रिका ने धीरे-धीरे अपना स्वर बदल लिया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन वे नकली थे। उसने सूरजभान की तरफ हाथ जोड़ते हुए बोलना शुरू किया।)
चंद्रिका: (रोते हुए) "सूरजभान, मुझे माफ कर दो। मैं यह सब सिर्फ हमारे पुत्र के लिए कर रही थी। मुझे डर था कि अगर मैंने ये सब नहीं किया, तो कुछ बुरा हो सकता है। तुम्हें क्या लगता है? मैं अपने पुत्र के साथ कुछ गलत होने दूंगी?"
सूरजभान: (थोड़ा शांत होते हुए) "तुम्हारे इस पागलपन ने मुझे डराया है, चंद्रिका। मैं जानता हूं कि तुमने अपने तरीके से हमारे परिवार के लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन अब यह सब बंद होना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि हमारा पुत्र किसी अंधविश्वास या बलि का हिस्सा बने।"
चंद्रिका: (आंसू पोछते हुए) "मैं वादा करती हूं, सूरजभान। आज के बाद मैं वैसा कुछ नहीं करूंगी, जो तुम्हें या हमारे पुत्र को पसंद न हो। मेरे लिए अब तुम और हमारा पुत्र ही सब कुछ हो। कोई और बलि नहीं होगी। कोई और अनुष्ठान नहीं होगा। बस तुम जैसा कहोगे, वैसा ही होगा।"
(सूरजभान, चंद्रिका के इस रूप को देखकर थोड़ा असमंजस में था। लेकिन उसकी आंखों में आंसू और स्वर की कोमलता ने उसे मजबूर कर दिया कि वह उस पर भरोसा करे।)
सूरजभान: (गहरी सांस लेते हुए) "ठीक है, चंद्रिका। अगर तुम वाकई अपने किए पर पछता रही हो, तो मैं तुम्हें माफ करता हूं। लेकिन याद रखना, अगर मैंने तुम्हें फिर से ऐसा कुछ करते हुए देखा, तो मैं तुम्हारे खिलाफ खड़ा हो जाऊंगा। और इस बार मैं पीछे नहीं हटूंगा।"
चंद्रिका: (धीमे स्वर में) "मैं तुम्हें निराश नहीं करूंगी, सूरजभान।"
सूरजभान ने चंद्रिका पर एक बार फिर भरोसा कर लिया, लेकिन उसके मन में शक अब भी बाकी था। वह जानता था कि चंद्रिका इतनी आसानी से नहीं बदलेगी। दूसरी ओर, चंद्रिका ने अपने भीतर गहरे छुपे गुस्से और महत्वाकांक्षा को छुपा लिया। वह जानती थी कि सूरजभान को अपने पक्ष में करने के लिए उसे अपनी चालाकी से काम लेना होगा।)


(कमरे में पसरे इस अजीब सन्नाटे के बीच चंद्रिका के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान फिर से लौट आई, लेकिन उसने उसे सूरजभान से छुपा लिया। वह जान गई थी कि उसे अपना अगला कदम बहुत सोच-समझकर उठाना होगा।)
(यह टकराव चंद्रिका और सूरजभान के रिश्ते के बीच एक ऐसी दरार पैदा कर गया, जो आने वाले समय में और गहरी होती चली जाएगी।)


आगे की कहानी अगले भाग में जारी है.....
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रचनाएँ
रक्तस्नान
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यह कहानी है दौ सौ साल पुरानी दौलताबाद की हवेली, जहां हर दीवार पर एक राज दफ़्न है। सूरजभान और चंद्रिका के रिश्ते की कहानी क्या केवल प्यार और विश्वास की थी, या उसके पीछे छिपा था एक खौफनाक सच? बच्चों की बलि, रहस्यमयी संकेत, और चंद्रिका या प्रेत छाया—क्या यह सब किसी अभिशाप की ओर इशारा करता है? या यह केवल हवेली के अंधकार में दबा हुआ इतिहास है, जो हर कदम पर एक नया सवाल खड़ा करता है? सूरजभान और चंद्रिका जिनकी कोई संतान नहीं थी,फिर चंद्रिका ने संतान प्राप्ति के लिए चुना कौनसा खूनी तरीका?
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यह कहानी आज से दो सौ साल पहले की जब दिल्ली दौलताबाद के नाम से जाना जाता था, तब दौलताबाद एक गाँव था, वह गांव जो कभी व्यापार और समृद्धि का प्रतीक था, अपनी धूमधाम में था। यह गाँव अपनी हरियाली, शानदार हवे

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भाग: दो

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सूरजभान और चंद्रिका की शादीहवेली की भव्यता आज किसी त्योहार से कम नहीं थी। हर कोने में दीयों की रोशनी झिलमिलाती थी, और हवेली के दरवाजों के बाहर रंगीन फूलों से सजावट की गई थी। हवेली का माहौल जैसे एक खास

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भाग: तीन

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हालांकि, सूरजभान के साथ उसने वादा किया था कि वह उस कमरे का दरवाजा कभी नहीं खोलेगी, फिर भी उसका मन उस प्रतिबंध से बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो जाता। वह जानना चाहती थी कि वह कमरा क्या राज़ छिपाए हुए है

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अगले दिन सुबह का सूरज धीरे-धीरे हवेली की खिड़कियों से झाँकने लगा। लेकिन चंद्रिका के भीतर एक अलग ही हलचल थी। उसका मन अब सिर्फ और सिर्फ उस कमरे पर टिका हुआ था, जहाँ उसने पिछली रात किताब रखी थी। उसकी आँख

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भाग: दस (महत्वपूर्ण)

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अगले दिन, सूरज की पहली किरण के साथ, सूरजभान ने उस कमरे को ताला लगवाया और गांव में यह खबर फैला दी कि चंद्रिका और उसका बेटा आग में गलती से जलकर मर गए। लोगों ने अफसोस जताया, लेकिन सूरजभान का चेहरा देखकर

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अमावस्या की वह रात हवेली के इतिहास की सबसे काली रात बनने वाली थी। चारों ओर एक अजीब-सी खामोशी थी, लेकिन हवेली के भीतर कुछ और ही हलचल चल रही थी। सूरजभान ने चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने के लिए यज्ञ की

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