कुछ ही दिनों बाद, चंद्रिका ने आस-पास के गाँवों में संदेश भिजवाया कि हवेली में एक भव्य भोज का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए था, ताकि सभी को भोजन और सहायता मिल सके। सूरजभान ने बड़े उल्लास के साथ इस आयोजन की तैयारी की। हवेली के मुख्य द्वार को फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया। रसोईघर में स्वादिष्ट पकवानों की सुगंध हवेली के हर कोने में फैल रही थी।
गाँव के लोग अपने-अपने परिवार के साथ आयोजन में शामिल होने आए। सबको आदर-सत्कार के साथ भोजन परोसा जा रहा था। सूरजभान और चंद्रिका मेहमानों का स्वागत करते हुए हर किसी का ख्याल रख रहे थे। लेकिन इस आयोजन के पीछे चंद्रिका के दिल में कुछ और ही योजना चल रही थी।
चंद्रिका के चेहरे पर एक अद्भुत शांति और मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखें मेहमानों के बीच कुछ और ही खोज रही थीं। वह किसी छोटे बच्चे को ढूँढ रही थी जो उसकी योजना का पहला शिकार बन सके। भोजन के बीच, उसने एक कोने में खड़े एक मासूम बच्चे को देखा जो लगभग 7-8 साल का था। वह अपने परिवार से दूर खड़ा, लड्डुओं की तरफ लालच भरी नजरों से देख रहा था।
चंद्रिका उसके पास गई और ममता भरे स्वर में बोली,
"बेटा, तुम्हें लड्डू चाहिए?"
बच्चे ने सिर हिलाते हुए कहा,
"हाँ, मगर माँ ने मना किया है।"
चंद्रिका ने मीठी मुस्कान देते हुए कहा,
"अरे, माँ को मत बताना। मैं तुम्हें और भी लड्डू दूँगी। चलो, मेरे साथ।"
उसने बच्चे का हाथ पकड़ा और उसे चुपचाप हवेली के उस बंद कमरे की ओर ले गई, जहाँ उसने बलि की योजना बनाई थी। बच्चे को अंदर भेजते ही चंद्रिका ने बच्चे का मुंह कपड़े से बांध दिया और हाथ पैर को भी दिया और उसने बाहर से दरवाजे पर ताला लगा दिया। अंदर बच्चे की मासूम आँखें अंधेरे कमरे को देखकर डरी हुई थीं।
बच्चे के माता-पिता ने जब उसे मेहमानों के बीच नहीं देखा, तो वे परेशान हो गए। उन्होंने हर जगह उसे ढूँढा लेकिन उसका कोई पता नहीं चला।
"हमारा बेटा कहाँ चला गया? उसे किसी ने देखा है क्या?" पिता ने सब से घबराते हुए पूछा।
सूरजभान ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा,
"घबराइए मत। हो सकता है, वह बाहर खेलने गया हो। हम लोग अभी बाहर जाकर उसे ढूँढते हैं।"
सूरजभान के आदेश पर सभी नौकर बाहर ढूँढने चले गए, लेकिन बच्चा नहीं मिला। जब शाम तक कोई सुराग नहीं मिला, तो चंद्रिका ने कहा,
"मैंने उसे हवेली से बाहर जाते हुए देखा था। शायद वह किसी के साथ चला गया हो।"
यह सुनकर सूरजभान को भी यही लगा कि शायद बच्चे का अपहरण हो गया होगा। वह दुखी मन से माता-पिता को सांत्वना देने लगा।
थक हार सब अपने घर चले गए लेकिन सूरजभान को उस बच्चे के लिए बुरा लग रहा था,लेकिन वह कुछ कर भी नहीं पा रहा था।
चंद्रिका ने अपनी योजना को पूरा करने के लिए रात को चंद्रभान के खाने में नींद की दवा मिला दी जिससे सूरजभान गहरी नींद में सोता रहे।
जैसे ही रात का अंधेरा गहराया, सूरजभान दवा के कारण गहरी नींद में सो गया और हवेली में सन्नाटा छा गया, चंद्रिका अपनी योजना को अंजाम देने के लिए तैयार हो गई। उसने कमरे की चाबी ली और चुपचाप उस कमरे की ओर बढ़ी। उसके कदम धीमे थे, लेकिन उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
दरवाजा खोलते ही कमरे के भीतर से हल्की-हल्की सरसराहट सुनाई दी। बच्चे को कमरे के कोने में बंधा हुआ देखकर चंद्रिका के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आई। वह बच्चे के पास गई और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली,
"मुझे माफ करना, बेटा। तुम्हें थोड़ी देर यहाँ रहना पड़ा। डरने की ज़रूरत नहीं है। सब ठीक हो जाएगा।"
बच्चे की डरी हुई आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने डरते हुए कहा,
"मुझे जाने दो। मैं अपनी माँ के पास जाना चाहता हूँ।"
चंद्रिका ने एक गहरी साँस ली और कहा,
"तुम्हें तुम्हारी माँ के पास जाने दूँगी, लेकिन उससे पहले तुम्हें मेरी थोड़ी मदद करनी होगी।"
यह कहकर उसने अलमारी से किताब निकाली। किताब हाथ में आते ही कमरे का माहौल बदल गया। एक तीव्र ठंडी हवा चलने लगी, और फर्श पर वही तांत्रिक चित्र चमकने लगे। कमरे के कोने से एक अजीब सी गूँज सुनाई देने लगी।
चंद्रिका ने किताब को खोला और उसमें लिखे निर्देशों को पढ़ना शुरू किया।
"पहली बलि से ही यात्रा शुरू होगी। रक्त का पात्र तैयार करो।"
उसने कमरे में रखे एक धारदार हथियार को उठाया और मंत्र पढ़ने लगी। उसकी आवाज में अब वह कोमलता नहीं थी। उसके चेहरे पर अब जुनून था। बच्चा भयभीत होकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा,
"मुझे छोड़ दो! मुझे जाने दो! माँ! माँ!"
लेकिन चंद्रिका अब उसकी चीखों को अनसुना कर चुकी थी। उसने बच्चे की ओर देखकर कहा,
"तुम्हारा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। तुम्हारी वजह से मेरा सपना पूरा होगा।"
यह कहकर उसने मंत्र पढ़ते हुए उस निर्दोष बच्चे की बलि दे दी। बच्चे का रक्त एक बड़े पात्र में इकट्ठा होने लगा। कमरे में एक अजीब सी गूँज उठी। हवेली के बाहर बिजली कड़कने लगी। आसमान पर काले बादल घिर आए।
चंद्रिका ने पात्र को उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए कहा,
"पहला चरण पूरा हुआ। अब मेरी इच्छा पूरी होने का रास्ता खुल गया है।"
जैसे ही बलि पूरी हुई, हवेली के कोने-कोने में अजीब सी आवाजें गूँजने लगीं। दरवाजे अपने-आप खुलने और बंद होने लगे। दीवारों पर छायाएँ तैरने लगीं। लेकिन चंद्रिका अब इन सब से नहीं डर रही थी। उसने कमरे के बीच में खड़े होकर एक खौफनाक हँसी हँसी।
"अब कोई मुझे रोक नहीं सकता। यह बस शुरुआत है," उसने जोर से कहा।
हवेली अब और भी डरावनी हो चुकी थी। लेकिन चंद्रिका के दिल में एक अजीब सा सुकून था। उसका पहला कदम उसकी योजना के अनुसार पूरा हो चुका था। बलि देने के बाद चंद्रिका कमरे से बाहर निकली और कमरे को ताला लगाकर बंद कर दिया और एक अजीब की हंसी के साथ वो हवेली में घूमने लगी।
अगली सुबह का सूरज अपनी पहली किरणों के साथ हवेली के खिड़की-दरवाजों पर दस्तक दे रहा था। सूरजभान हमेशा की तरह जल्दी उठ चुका था। उसने कमरे से बाहर आकर देखा कि चंद्रिका आँगन में खड़ी थी, उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। वह मुस्कुरा रही थी, जैसे उसकी ज़िंदगी की हर परेशानी दूर हो चुकी हो।
सूरजभान को यह देखकर सुकून मिला। उसने मुस्कुराते हुए चंद्रिका से कहा,
"चंद्रिका, लगता है आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश हो। क्या बात है?"
चंद्रिका ने अपने चेहरे पर उसी रहस्यमयी मुस्कान को बनाए रखते हुए जवाब दिया,
"मुझे ऐसा लगता है कि जल्द ही हमारी ज़िंदगी पूरी तरह बदलने वाली है।"
सूरजभान ने हँसते हुए कहा,
"अरे, ये तो बहुत अच्छी बात है। भगवान करे तुम्हारी यह खुशी हमेशा बनी रहे।"
हालांकि, उसके मन में कहीं न कहीं यह सवाल भी था कि चंद्रिका कल रात हुए उस बच्चे के गायब होने की घटना से बिल्कुल भी परेशान क्यों नहीं लग रही थी। लेकिन उसने ज्यादा नहीं सोचा। वह तो चंद्रिका की मुस्कान पर अपनी जान छिड़कता था।
सूरजभान का कमरे के पास से गुजरना
नाश्ते के बाद, सूरजभान हवेली के भीतर के गलियारे से होते हुए बाहर जाने की तैयारी कर रहा था। चलते-चलते वह उस बंद कमरे के पास पहुँचा, जहाँ पिछले रात वह बच्चा कैद था और जिसे चंद्रिका ने बलि दी थी।
दरवाजे पर एक बड़ा-सा ताला लटका हुआ देखकर सूरजभान ठिठक गया। उसने ध्यान से देखा, ताला नया लग रहा था। वह हैरान था, क्योंकि पहले कभी इस कमरे पर ताला नहीं लगाया गया था।
सूरजभान ने आवाज लगाई,
"रामदीन! ओ रामदीन, इधर आ।"
रामदीन जो आँगन में झाड़ू लगा रहा था, दौड़ता हुआ आया। उसने सिर झुकाते हुए कहा,
"हाँ मालिक, क्या हुक्म है?"
सूरजभान ने ताला दिखाते हुए पूछा,
"यह दरवाजे पर ताला किसने लगाया? और क्यों?"
रामदीन कुछ कहने ही वाला था कि तभी पीछे से चंद्रिका की आवाज आई,
"मैंने लगाया है।"
सूरजभान ने पीछे मुड़कर देखा। चंद्रिका धीरे-धीरे उनकी ओर आ रही थी। उसके चेहरे पर वही शांत लेकिन रहस्यमयी भाव थे। सूरजभान ने हैरानी से पूछा,
"तुमने? मगर क्यों?"
चंद्रिका ने उपहास भरे स्वर में कहा,
"यह कमरा सालों से बंद पड़ा है। जब इस्तेमाल नहीं होता, तो ताला लगाने में क्या बुराई है? कम से कम कोई इसे बेवजह खोलने की कोशिश तो नहीं करेगा।"
सूरजभान को उसकी बात कुछ हद तक ठीक लगी, लेकिन वह फिर भी असमंजस में था। उसने दरवाजे के पास जाकर ताले को छुआ, और फिर हवा में एक अजीब-सी दुर्गंध महसूस की। उसने नाक पर हाथ रखते हुए पूछा,
"लेकिन यह बदबू कैसी? यह तो पहले कभी नहीं आई थी।"
चंद्रिका ने ठंडी हँसी के साथ जवाब दिया,
"जब इतने सालों से कोई कमरा बंद होगा, तो खुशबू की उम्मीद कर रहे हो क्या? यह बदबू तो जमी हुई नमी की है।"
सूरजभान को उसका यह उत्तर भी थोड़ा विचित्र लगा, लेकिन उसने अपनी सोच को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। वह चंद्रिका की बातों पर भरोसा करता था।
रामदीन, जो यह सब देख-सुन रहा था, अब पूरी तरह समझ चुका था कि चंद्रिका कुछ तो छिपा रही है। उसके स्वभाव में जो बदलाव आया था, वह साधारण नहीं था। रामदीन ने मन ही मन सोचा,
"मालिक तो चंद्रिका की हर बात को मानते हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि कुछ बहुत गलत हो रहा है।"
रामदीन ने झिझकते हुए कहा,
"मालिक, मुझे भी यह बदबू अजीब लग रही है। क्या मैं अंदर जाकर देख लूँ?"
चंद्रिका ने तीखी नजरों से रामदीन की ओर देखा और कहा,
"रामदीन, जब मैंने कहा है कि यह ताला मैंने लगाया है, तो इसका मतलब है कि कोई जरूरत नहीं है इस कमरे को खोलने की। तुम अपना काम करो।"
रामदीन सहमकर चुप हो गया। उसने सिर झुकाकर कहा,
"जैसी आपकी इच्छा, मालिक।"
सूरजभान ने चंद्रिका की ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा,
"ठीक है, अगर तुमने कहा है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। लेकिन अगर यह बदबू और बढ़ी, तो इसका कोई उपाय करना होगा। हवेली में ऐसी गंध अच्छी नहीं लगती।"
चंद्रिका ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और कहा,
"जो आप कहेंगे, वही होगा।"
सूरजभान वहाँ से निकल गया, लेकिन रामदीन का मन अब पूरी तरह से बेचैन हो चुका था। वह समझ गया था कि चंद्रिका के दो चेहरे हैं, और वह जो भी कर रही है, वह सामान्य नहीं है।
दिन चढ़ने लगा, लेकिन हवेली का माहौल अब पहले जैसा नहीं था। कमरे के आसपास अजीब सी सर्द हवा बह रही थी। ऐसा लगता था मानो हवेली के इस हिस्से में कोई अनदेखी शक्ति अपना प्रभाव जमा रही हो। सूरजभान को इस बात का अहसास नहीं था, लेकिन रामदीन ने तय कर लिया कि वह इस रहस्य का पर्दाफाश करेगा, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े।
वहीं, चंद्रिका अपने कमरे में बैठी मुस्कुरा रही थी। उसके मन में वह किताब और तंत्र-मंत्र घूम रहे थे। उसने धीरे से बुदबुदाया,
"यह तो बस शुरुआत है। अब मेरी हर इच्छा पूरी होगी, चाहे इसकी कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।"
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है......