सूरजभान और चंद्रिका की शादी
हवेली की भव्यता आज किसी त्योहार से कम नहीं थी। हर कोने में दीयों की रोशनी झिलमिलाती थी, और हवेली के दरवाजों के बाहर रंगीन फूलों से सजावट की गई थी। हवेली का माहौल जैसे एक खास दिन का स्वागत करने के लिए तैयार था। चंद्रिका और सूरजभान की शादी का दिन था, और हर कोई खुश था कि यह दिन आखिरकार आ गया।
चंद्रिका को शादी की तैयारियों के लिए हवेली के एक कोने में बैठाया गया था। वह हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में सजी हुई थी, जो उसकी खूबसूरती को और भी निखार रही थी। उसके बालों में खुशबूदार फूलों की माला सजी थी, और उसकी आँखों में एक चमक थी, जो उसके दिल की खुशी को बयां कर रही थी। वह महसूस कर रही थी कि उसकी पूरी दुनिया बदलने वाली है, लेकिन इस बदलाव को लेकर उसके मन में कोई डर नहीं था। वह सूरजभान के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत करने के लिए तैयार थी।
सूरजभान, जो अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण दिन के लिए तैयार था, वह भी हवेली के दूसरे हिस्से में था। वह सफेद शेरवानी में सजा हुआ था, और उसकी आँखों में एक उत्साह था। चंद्रिका से मिलकर वह खुश था कि आज वह अपनी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है।
शादी की तैयारी के बीच चंद्रिका और सूरजभान का एक और मिलन हुआ। सूरजभान चंद्रिका के पास आया और उसकी आँखों में प्यार और आदर से देखा। चंद्रिका ने धीरे से उसकी तरफ देखा और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा:
चंद्रिका: "आज का दिन मेरे लिए बहुत खास है, सूरजभान। मुझे नहीं लगता कि कोई शब्द उस खुशी को व्यक्त कर सकता है जो मैं महसूस कर रही हूँ। तुमने मुझे एक नई जिंदगी दी है।"
सूरजभान (हंसते हुए): "चंद्रिका, तुमसे मिलने के बाद मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी जिंदगी इतनी बदल जाएगी। तुमने मुझे सच्चा प्यार दिया है, और अब मैं यह चाहता हूँ कि हम दोनों मिलकर एक नया सफर शुरू करें।"
यह बातचीत दोनों के दिलों को और भी करीब लाने वाली थी। उनके रिश्ते में अब कोई दूरी नहीं थी। अब यह एक परिवार के रूप में बदल चुका था, जहाँ सूरजभान और चंद्रिका दोनों एक-दूसरे के साथ रहने के लिए पूरी तरह से तैयार थे।
जब शादी का समय करीब आया, तो चंद्रिका और सूरजभान दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े थे। पंडित जी ने विवाह मंत्रों का उच्चारण करना शुरू किया, और वातावरण में एक गहरी शांति और धार्मिकता थी। सभी की नजरें उन दोनों पर थी, और हवेली में हर एक को यह एहसास हो रहा था कि एक नया जीवन शुरू होने वाला है।
पंडित जी (मंत्रों का उच्चारण करते हुए): "आज से तुम दोनों एक-दूसरे के जीवन के साथी हो, साथ मिलकर सुख-दुःख को साझा करने के लिए।"
चंद्रिका और सूरजभान ने एक-दूसरे की ओर देखा, और बिना कहे ही दोनों ने अपनी मंजूरी दे दी। फिर पंडित जी ने उन्हें सात फेरों के लिए आमंत्रित किया। पहले फेरे में सूरजभान ने चंद्रिका का हाथ पकड़ा और दोनों ने एक साथ कदम बढ़ाए। हर एक फेरा उनकी जिंदगी में एक नई कड़ी जोड़ रहा था, जो उनके रिश्ते को और भी मजबूत कर रहा था।
सूरजभान: "मैं तुम्हें हमेशा अपने साथ रखूंगा, चंद्रिका। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे साथ हर पल सच्चाई और प्यार से रहूँगा।"
चंद्रिका: "मैं भी तुमसे यही वादा करती हूँ, सूरजभान। तुमने मुझे एक परिवार दिया, और अब मैं तुम्हारे साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहती हूँ।"
आखिरी फेरे के बाद पंडित जी ने उनकी शादी को संपन्न घोषित किया। सभी ने खुश होकर उनका आशीर्वाद दिया और हवेली में जश्न का माहौल छा गया।
शादी के बाद सूरजभान और चंद्रिका हवेली के बाहर एक बगीचे में खड़े थे, जहाँ चाँदनी रात के साथ उनकी नई जिंदगी का स्वागत हो रहा था। चंद्रिका ने अपनी शादी की चूड़ियाँ देखीं और फिर सूरजभान से कहा:
चंद्रिका: "यह चूड़ियाँ मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं। यह सिर्फ एक गहना नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है।"
सूरजभान (मुस्कुराते हुए): "चंद्रिका, तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। इन चूड़ियों के साथ तुम्हारे जीवन की खुशियाँ हमेशा बनी रहें।"
चंद्रिका और सूरजभान की शादी के बाद अब वे दोनों हवेली में अपने नए जीवन की शुरुआत करने के लिए तैयार थे। हवेली के दरवाजे के बाहर पारंपरिक रूप से रखा गया आटा, हल्दी और कलश सब कुछ सही तरीके से तैयार किया गया था। पंडित जी ने गृह प्रवेश के लिए सारे मंत्रों का उच्चारण किया और चंद्रिका से कहा:
पंडित जी: "चंद्रिका, आज तुम्हारा गृह प्रवेश है। यह समय तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तुम्हारे कदम जहाँ भी पड़ेंगे, वहाँ शुभता और समृद्धि का आगमन होगा।"
चंद्रिका ने एक हल्की मुस्कान के साथ अपने कदम हवेली के भीतर रखे। उसकी आँखों में उत्सुकता और विश्वास था, लेकिन अजनबी डर भी था, जो उसकी मन की गहराई में कहीं छुपा हुआ था। उसने इस नए जीवन को स्वीकार किया था, लेकिन उसे यह भी लग रहा था कि हवेली की दीवारों में कुछ ऐसा था, जो उसे घेर रहा था।
जैसे ही चंद्रिका ने पहला कदम भीतर रखा, हवेली का माहौल अचानक बदल गया। हवेली के भीतर हलचल कम हो गई थी, जैसे सब कुछ धीरे-धीरे थमने लगा था। हवा में एक ठंडक सी छा गई, और दीवारों से एक अजीब सी खड़खड़ाहट सुनाई दी। हवेली के किसी दूर कोने से एक बिल्ली ने म्याऊं किया और फिर चुप हो गई। इस आवाज को सुनकर चंद्रिका के मन में एक अनकहा डर समा गया। उसने अपने कदम बढ़ाए, लेकिन उसका मन कहीं न कहीं बेचैन था।
जब वह दरवाजे से आगे बढ़ रही थी, अचानक आँगन में पड़े फूलों का एक गुच्छा गिरा। यह घटना पूरी तरह से अप्रत्याशित थी, क्योंकि कोई भी उस वक्त पास नहीं था। चंद्रिका ने अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए देखा, लेकिन वह सोचने लगी कि शायद यह कोई साधारण घटना हो, कोई अपशगुन नहीं। लेकिन जब सूरजभान ने उसकी नजरें देखी, तो वह भी थोड़ा चौंका। उसने चंद्रिका से पूछा:
सूरजभान: "क्या हुआ? तुम चौंकी क्यों हो?"
चंद्रिका (हलके से हंसी के साथ): "कुछ नहीं, बस लगता है कोई आभास हो रहा है।"
लेकिन सूरजभान ने भी यह महसूस किया कि हवेली में कुछ तो था, जो उन दोनों को घेरने की कोशिश कर रहा था। वह जानता था कि हवेली का इतिहास थोड़ा अजीब था, लेकिन उसने कभी ध्यान नहीं दिया था। वह चंद्रिका को सांत्वना देने की कोशिश करता है, और दोनों आगे बढ़ते हैं।
चंद्रिका और सूरजभान अब हवेली के मुख्य कक्ष में पहुँच चुके थे। जैसे ही चंद्रिका ने कमरे के भीतर कदम रखा, अचानक कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं। दीवारों से एक अजीब सी गंध आई, जो बहुत ही भूतिया सी लग रही थी। चंद्रिका को लगा जैसे हवेली के भीतर कोई और ताकत भी मौजूद है, जो उन्हें देख रही है। उसने डरते हुए सूरजभान से कहा:
चंद्रिका: "क्या तुम्हें भी यह महसूस हो रहा है? जैसे यहाँ कुछ गड़बड़ हो।"
सूरजभान: "क्या तुम ठीक हो? ऐसा कुछ नहीं है, बस हवेली पुरानी है। कभी-कभी ऐसा होता है।"
लेकिन चंद्रिका का मन नहीं मान रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हवेली के प्रत्येक कमरे में अतीत की कोई छाया उसकी उपस्थिति दर्ज कर रही हो। यह डर उसे बेबसी में बदल रहा था।
रात के समय जब चंद्रिका और सूरजभान अपने कमरे में थे, तो अचानक एक जोर से दरवाजे की आवाज आई। कमरे के भीतर हवा का तेज झोंका आया और चाँद की हल्की रौशनी खिड़की से कमरे में घुसने लगी। चंद्रिका के मन में एक और भय समाया। उसने अपनी आँखें बंद की और फिर से देखा, लेकिन यह उस डर का हिस्सा था, जो लगातार उसे घेरे हुए था।
चंद्रिका (धीरे से): "सूरजभान, मुझे नहीं लगता कि यहाँ कुछ सही है। हवेली में कुछ तो है, जो हमें देख रहा है। क्या तुम नहीं महसूस करते?"
सूरजभान: "चंद्रिका, यह सिर्फ तुम्हारे मन का भय है। हवेली में कुछ नहीं है। सब ठीक होगा।"
शादी के अगले दिन, चंद्रिका हवेली में घूम रही थी। हवेली का माहौल उसके लिए नया था। सभी दीवारें, गलियारों और कमरे उसके लिए अजनबी थे, लेकिन कुछ ऐसा था जो उसे खींचता था। एक कमरे के सामने आकर उसकी नजर ठहर गई। यह कमरा बंद था, और उसके ऊपर कोई ताला या अन्य कोई निशान नहीं था।
वह आश्चर्यचकित हो गई और पल भर को उस कमरे के दरवाजे को देखा। चंद्रिका ने बिना सोचे-समझे सूरजभान से पूछा, "यह कमरा क्यों बंद है?"
सूरजभान ने एक क्षण के लिए चुप रहकर, हल्की मुस्कान के साथ उत्तर दिया, "यह पुराने समय का कमरा है, बस ऐसा ही छोड़ दिया है। तुम इसे लेकर चिंता मत करो।"
लेकिन चंद्रिका की जिज्ञासा शांत नहीं हुई। वह उस कमरे के रहस्य को जानना चाहती थी, इसलिए रात को जब सब सो रहे थे, तो वह चुपके से उठकर उस कमरे की ओर बढ़ी। हवेली की हवा भी उस रात कुछ अजीब सी थी, जैसे कोई अनहोनी घटित होने वाली हो।
वह धीरे-धीरे दरवाजे के पास पहुंची और उसे खींचने ही वाली थी कि तभी अचानक सूरजभान का स्वर सुनाई दिया। "चंद्रिका!" उसने आवाज दी।
चंद्रिका का दिल घबराहट से धड़कने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत किया। "क्या हुआ सूरजभान?" उसने बिना मुड़े हुए कहा।
सूरजभान दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया। उसकी आंखों में एक अजीब सी गंभीरता थी। "तुमसे एक वादा चाहिए," उसने कहा, "तुम इस कमरे को कभी नहीं खोलोगी।"
चंद्रिका ने पलटकर उसे देखा। वह अंदर जाने के लिए बहुत अधीर थी, लेकिन सूरजभान की आँखों में कुछ ऐसा था, जो उसे रोकने पर मजबूर कर रहा था।
"लेकिन... सूरजभान, ये कमरा किसके लिए बंद है?" चंद्रिका ने पूछा, उसकी आवाज में असमंजस था। "तुम मुझे इस बारे में नहीं बता रहे हो?"
सूरजभान ने अपनी नजरें चंद्रिका से हटा लीं और कुछ पल के लिए चुप रहा। "मैं तुमसे वादा चाहता हूँ कि तुम इसे नहीं खोलोगी, चंद्रिका। ये तुम्हारे और मेरे लिए अच्छा नहीं होगा।"
चंद्रिका का मन अंदर जाने के लिए बेताब था, लेकिन उसने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है। सूरजभान की आवाज में एक डर था, जो उसने पहले कभी नहीं सुना था।
"ठीक है, सूरजभान," उसने कहा, "मैं वादा करती हूँ।"
सूरजभान की चेहरे पर हल्की सी राहत दिखी। उसने चंद्रिका को धीरे से गले लगाया और कहा, "तुम्हारा यह वादा हमारे जीवन को सही दिशा में रखेगा।"
उस रात के बाद चंद्रिका ने वह कमरा फिर से नहीं खोला। और धीरे-धीरे, उनका जीवन सामान्य हो गया, लेकिन चंद्रिका के मन में उस कमरे के बारे में हमेशा एक अजीब सी जिज्ञासा बनी रही। सूरजभान की मूक चेतावनी और वादा उसके भीतर गहरे तक समा गए थे।
लेकिन चंद्रिका का मन फिर भी उस कमरे के रहस्य को जानने के लिए ललचाता रहा।
चंद्रिका का जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन उसके भीतर एक गहरी तृष्णा और बेचैनी बनी हुई थी। वह दिन-रात उसी कमरे के पास घूमती रहती, उस बंद दरवाजे की ओर उसकी नजरें बार-बार जातीं, जैसे वह जानना चाहती हो कि उसके भीतर क्या है। सूरजभान के साथ उसका जीवन सामान्य था, लेकिन उसके मन में संतान की प्राप्ति का अभाव उसकी खुशियों को पूरी तरह से नहीं भर पाया था।
"सूरजभान," वह कई बार अपनी इच्छाओं का इज़हार कर चुकी थी, "मुझे एक संतान चाहिए। मैं बहुत कोशिश कर चुकी हूँ, पर कुछ नहीं हो रहा।"
सूरजभान उसे सांत्वना देता, "हमारा समय आएगा, चंद्रिका। धैर्य रखो, कुछ समय और।"
लेकिन चंद्रिका की बेचैनी बढ़ रही थी। उसने कई चिकित्सकों से इलाज भी करवाया, लेकिन परिणाम वही रहता। उसका मन कभी शांत नहीं होता। वह रातों को अक्सर अकेले उस कमरे के पास खड़ी होती, जैसे कोई अदृश्य ताकत उसे खींच रही हो।
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है....