अगले दिन, सूरज की पहली किरण के साथ, सूरजभान ने उस कमरे को ताला लगवाया और गांव में यह खबर फैला दी कि चंद्रिका और उसका बेटा आग में गलती से जलकर मर गए। लोगों ने अफसोस जताया, लेकिन सूरजभान का चेहरा देखकर किसी ने ज्यादा सवाल नहीं किए। वह अब एक टूटे हुए इंसान जैसा दिखता था।
समय बीतने लगा। एक महीने तक सब कुछ शांत रहा। हवेली में न तो कोई अजीब घटना हुई और न ही किसी ने कुछ असामान्य सुना। सूरजभान को धीरे-धीरे यह विश्वास होने लगा कि शायद अब सब कुछ खत्म हो गया है। लेकिन वह गलत था।
अगली अमावस की रात थी। हवेली के आसमान पर घने बादल छाए हुए थे, और वातावरण में एक अजीब-सी ठंडक थी। आधी रात का समय था, जब अचानक सूरजभान की गहरी नींद टूटी। उसे एक डरावनी, जानी-पहचानी हंसी सुनाई दी। यह हंसी उसके रोंगटे खड़े कर देने वाली थी।
उसने हड़बड़ाकर अपनी आँखें खोलीं और चारों ओर देखा। हवेली के भीतर, दूर से आती वह हंसी लगातार तेज होती जा रही थी। यह हंसी किसी और की नहीं, चंद्रिका की थी। सूरजभान के चेहरे का रंग उड़ गया।
"नहीं... ये कैसे हो सकता है?" उसने खुद से कहा, लेकिन डर ने उसे घेर लिया। उसने जल्दी-जल्दी अपनी चादर हटाई और दौड़ता हुआ आवाज के पीछे चल पड़ा। हवेली की पुरानी, जर्जर दीवारें और खाली कमरों से गुजरते हुए, वह आवाज और भी तेज़ और खौफनाक हो गई।
सूरजभान अंततः उसी कमरे के बाहर आकर रुका, जिसे उसने ताला लगवाया था। उसकी सांसें तेज हो चुकी थीं। उसने डर और संशय से भरे हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास अपना कान लगाया। अंदर से अजीबोगरीब मंत्रोच्चार की आवाजें आ रही थीं। यह वही मंत्र थे, जिन्हें वह पहले सुन चुका था। चंद्रिका के तांत्रिक अनुष्ठानों के मंत्र।
"नहीं... यह कैसे संभव है? मैंने इसे खत्म कर दिया था!" उसने बुदबुदाते हुए कहा। लेकिन उसकी आँखों में भय साफ झलक रहा था।
उसने धीरे से अपनी नज़र ऊपर उठाई और हवेली के छत की ओर देखा। उसके चेहरे का खून सूख गया। तांत्रिक चक्र, जो उसने उस रात गायब होते देखा था, अब फिर से हवेली के ऊपर घूम रहा था। आसमान में काले बादलों के बीच बिजली चमक रही थी, और तांत्रिक चक्र से लाल रंग की अजीब ऊर्जा निकल रही थी।
"यह... यह वही है!" सूरजभान ने कांपते हुए कहा। "चंद्रिका... यह चंद्रिका की आत्मा है। वह वापस आ चुकी है।"
वह समझ चुका था कि यह सब खत्म नहीं हुआ था। चंद्रिका का अंत नहीं हुआ था। उसकी आत्मा अब भी उसी कमरे में थी, और अब वह और भी ताकतवर लग रही थी। सूरजभान वहीं दरवाजे के पास खड़ा रह गया, उसकी टांगें काँप रही थीं, और डर से उसकी साँसें तेज हो चुकी थीं।
कमरे के भीतर की आवाजें और तेज हो गईं। मंत्रोच्चार के बीच एक डरावनी हंसी सुनाई दी, जो सूरजभान के दिल को चीर देने वाली थी। उसने अपने हाथों को कसकर बांध लिया, लेकिन अब उसका साहस पूरी तरह टूट चुका था।
"मैंने क्या कर दिया..." उसने धीमे स्वर में कहा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। "यह सब मेरी गलती है। मेरी लालच और मूर्खता ने इसे जन्म दिया। अब इसे रोकने का कोई उपाय नहीं है।"
हवेली के चारों ओर बिजली चमकने लगी। तांत्रिक चक्र और तेज गति से घूमने लगा, और हवेली के चारों ओर की हवा भारी और डरावनी हो गई। सूरजभान वहीं खड़ा रहा, ठंडे पसीने में लिपटा हुआ।
यह वही चंद्रिका थी, जिसने अपने अंधेरे कर्मों से अपनी आत्मा को अमर बना लिया था। और अब, वह केवल एक आत्मा नहीं थी; वह अंधेरे और तांत्रिक शक्ति का जीवंत प्रतीक बन चुकी थी।
सूरजभान ने कांपते हुए दरवाजे से हटने की कोशिश की, लेकिन उसकी टांगों ने उसका साथ छोड़ दिया। वह वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा, और डर से उसकी आँखें बंद हो गईं। अब हवेली में केवल मंत्रों की गूंज, तांत्रिक चक्र की बिजली और चंद्रिका की खौफनाक हंसी गूंज रही थी।
सूरजभान के पास अब केवल पछतावे और आत्मग्लानि के आँसू थे। उसकी गलती ने उसे यहाँ ला खड़ा किया था, और अब उसका सामना अपने ही डर से था।
उस रात के बाद से ही चंद्रिका का साया हवेली में और भी गहराने लगा। हवेली के हर कोने में उसकी उपस्थिति महसूस होने लगी। कभी-कभी दीवारों पर उसकी परछाई नजर आती, तो कभी कमरे के दरवाजे अचानक अपने आप खुलने-बंद होने लगते। हवा में एक अजीब-सी सर्द ठंडक और भयावहता ने घर कर लिया था। गाँव में भी यह चर्चा फैलने लगी कि सूरजभान की हवेली अब "भूतिया" हो चुकी है। लेकिन सूरजभान को पता था कि यह सब चंद्रिका की आत्मा का प्रकोप है।
वह हर दिन अपने अंदर बढ़ती आत्मग्लानि और पछतावे के बोझ से दबता जा रहा था। चंद्रिका को खत्म करने के बावजूद वह समझ चुका था कि उसकी आत्मा अब भी इस दुनिया में बंधी हुई है। उसने अपनी आँखों से देखा था कि चंद्रिका की आत्मा तांत्रिक चक्र के साथ हवेली के ऊपर घूम रही थी। वह जानता था कि चंद्रिका अब और भी ताकतवर हो गई है और उसकी हर हरकत का उद्देश्य सिर्फ बदला लेना है।
अपने पापों से छुटकारा पाने और चंद्रिका की आत्मा को मुक्ति देने के लिए, सूरजभान ने एक बड़ा निर्णय लिया।
उसने अपने पुरोहितों और पंडितों से परामर्श किया। कई दिनों की चर्चा और अनुष्ठानों के बाद, उसे एक तरीका पता चला जिससे चंद्रिका की आत्मा को इस दुनिया से मुक्त किया जा सकता था।
पंडितों ने बताया कि चंद्रिका की आत्मा को केवल तभी मुक्ति दी जा सकती है, जब आसमान में तांत्रिक चक्र के नीचे अमावस्या की रात को एक विशेष यज्ञ किया जाए। इस यज्ञ के दौरान पांच अष्टधातु के संकेत-चिन्ह प्रकट होंगे, इन संकेत-चिन्हों को एकत्र करके उन्हें उसी स्थान पर जोड़ना होगा जहां चंद्रिका की आत्मा है। यह प्रक्रिया केवल अमावस्या की रात को ही संभव थी।
सूरजभान को यह भी चेतावनी दी गई कि अगर वह यह कार्य सही समय पर नहीं कर पाया, तो चंद्रिका की आत्मा और भी क्रूर हो जाएगी और वह सूरजभान की जान भी ले सकती है। इस डर ने सूरजभान को और सतर्क बना दिया। उसने अपनी पूरी ताकत और साधन यज्ञ की तैयारी में लगा दी।
लेकिन सूरजभान के मन में यह डर भी था कि अगर भविष्य में वह यह कार्य पूरा न कर पाए, तो चंद्रिका की आत्मा हमेशा के लिए इस हवेली में बंधी रहेगी और और भी खतरनाक हो जाएगी। इसीलिए उसने अपनी और चंद्रिका की कहानी, और इस आत्मा को मुक्त करने की पूरी प्रक्रिया को एक किताब में लिखने का निर्णय लिया।
उसने कई दिनों तक एकांत में रहकर हर घटना को विस्तार से लिखा। उसने चंद्रिका के तांत्रिक कर्मों से लेकर, उसके अंत तक की कहानी को, और हवेली पर मंडराते साये से मुक्ति के उपाय को शब्दों में समेटा। इस किताब को उसने "मुक्ति का मार्ग" नाम दिया।
यह किताब केवल एक कहानी नहीं थी, बल्कि यह एक साधन थी, जो किसी को भी चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने का तरीका बता सकती थी। किताब में उसने यज्ञ करने की प्रक्रिया, अष्टधातु के संकेत-चिन्हों को खोजने के स्थान, और उन्हें जोड़ने के लिए आवश्यक मंत्रों का विस्तार से वर्णन किया।
लेकिन सूरजभान को इस बात का भी डर था कि अगर यह किताब गलत हाथों में पड़ गई, तो इसका दुरुपयोग हो सकता है। चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करने के नाम पर कोई और इसके रहस्यों का इस्तेमाल करके अपनी तांत्रिक शक्ति बढ़ाने की कोशिश कर सकता था। इसलिए उसने किताब को गुप्त रखने का निर्णय लिया।
उसने एक मोटा लाल कपड़ा लिया और किताब को उसमें लपेट दिया। कपड़े को उसने काले धागे से कसकर बाँधा, ताकि कोई आसानी से इसे खोल न सके। फिर, उसने किताब को अपने कमरे के एक गुप्त स्थान में छिपा दिया।
सूरजभान ने अपनी हवेली के नौकरों और रिश्तेदारों को भी इस किताब के बारे में कुछ नहीं बताया। केवल वह जानता था कि किताब कहाँ छिपाई गई है। उसकी हर रात अब डर और तनाव में गुजरने लगी। हर अमावस्या की रात को, जब हवेली के ऊपर तांत्रिक चक्र फिर से प्रकट होता, सूरजभान डर से काँप उठता।
उसके मन में एक ही विचार गूंजता रहता:
"अगर मैंने चंद्रिका को सही समय पर मुक्त नहीं किया, तो वह न केवल मुझे, बल्कि इस पूरे गाँव को तबाह कर देगी।"
लेकिन समय बीतने के साथ, सूरजभान का साहस भी डगमगाने लगा। वह जानता था कि उसके पास समय बहुत कम बचा है। चंद्रिका की आत्मा दिन-ब-दिन शक्तिशाली होती जा रही थी, और अब वह हवेली में किसी भी अमावस्या की रात को अपना तांत्रिक चक्र सक्रिय कर सकती थी।
अब यह सूरजभान के हाथ में था कि वह किताब में लिखे अनुसार, अष्टधातु के संकेत-चिन्हों को जोड़कर चंद्रिका की आत्मा को मुक्त करे या अपने और अपने विनाश का इंतजार करे।
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है.......