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भाग: आठ

14 दिसम्बर 2024

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सूरजभान ने चंद्रिका से बेहद प्रेम किया था। चंद्रिका का आकर्षण, उसकी तीव्र इच्छाशक्ति, और रहस्यमय व्यक्तित्व सूरजभान को उसकी हर बात मानने के लिए बाध्य कर देता था। लेकिन जब चंद्रिका ने बलि के लिए बच्चों की मांग की, तो सूरजभान भीतर से टूट गया। वह जानता था कि मासूमों की जान लेना पाप है, लेकिन चंद्रिका की बातों और उसके प्रेम सम्मोहन ने उसे ऐसा करने के लिए विवश कर दिया।पहली बार जब चंद्रिका ने बलि के लिए बच्चे की मांग की, सूरजभान ने खुद को तर्क देते हुए समझाया कि चंद्रिका की इच्छा पूरी होते ही यह सिलसिला समाप्त हो जाएगा। उसने गांव के एक दूरस्थ इलाके से एक बच्चा चुराया और उसे चंद्रिका के हवाले कर दिया। चंद्रिका ने मंत्रों का जाप करते हुए उस मासूम की बलि चढ़ा दी। सूरजभान ने अपनी आंखें बंद कर लीं, लेकिन उसकी आत्मा चीख रही थी। बलि के बाद, उसने उस बच्चे के क्षत-विक्षत शरीर को जंगल में ले जाकर फेंक दिया, ताकि किसी को इस जघन्य कृत्य के बारे में पता न चले।लेकिन यह पहली बार आखिरी नहीं था। चंद्रिका की इच्छाएं बढ़ती चली गईं। हर कुछ समय बाद, वह सूरजभान से नए बच्चे की मांग करती। सूरजभान, अपने अंदर की कशमकश और अपराधबोध के बावजूद, चंद्रिका के सम्मोहन और अपने प्रेम में बंधा हुआ था। वह हर बार किसी न किसी बहाने से गांव के एक कोने से बच्चे को अगवा कर लाता। चंद्रिका उस बच्चे की बलि चढ़ाती, और सूरजभान उन मासूमों के अधखुले और क्षत-विक्षत शरीरों को जंगल में फेंक आता।
जंगल में जाते हुए उसकी आत्मा घुटती थी। हर बार जब वह उन मासूम बच्चों के शव को कंधे पर उठाए चलता, उसे लगता जैसे वह नरक की आग में झोंका जा रहा हो। वह रातों को सो नहीं पाता। जब भी उसकी आंखें बंद होतीं, उन बच्चों की चीखें और उनकी मासूम आंखें उसका पीछा करतीं। लेकिन चंद्रिका के प्रति उसका प्रेम और उसका भय, दोनों उसे इस पाप के जाल से बाहर निकलने नहीं देते थे।
चंद्रिका, अपने काले अनुष्ठानों में पूरी तरह डूबी हुई थी। सूरजभान को विश्वास था कि चंद्रिका यह सब उनकी संतान प्राप्ति के लिए कर रही है। उसने खुद को समझाने की कोशिश की कि वह यह सब चंद्रिका के मातृत्व की लालसा पूरी करने के लिए कर रहा है। 
एक दिन, जब चंद्रिका ने सूरजभान से फिर से बलि के लिए बच्चा लाने को कहा, सूरजभान ने झिझकते हुए उसे टोकने की कोशिश की। उसने कहा, "यह सब कब खत्म होगा, चंद्रिका? हमने पहले ही बहुत कुछ गलत कर दिया है। भगवान हमें कभी माफ नहीं करेंगे।"
लेकिन चंद्रिका ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए जवाब दिया, "अगर तुम्हें मुझसे प्रेम है, तो सवाल मत करो। यह सब हमारे भविष्य के लिए है। 
सूरजभान का मन हर बलि के साथ और ज्यादा अशांत होता चला गया। वह जानता था कि वह जो कर रहा है, वह केवल पाप और अंधकार का मार्ग है। लेकिन चंद्रिका के सम्मोहन ने उसे जकड़ रखा था। हर बार जब वह मासूमों को जंगल में छोड़कर आता, वह घंटों बैठकर रोता, अपने कर्मों को कोसता और भगवान से माफी मांगता। लेकिन यह माफी उसका अपराधबोध कम करने के लिए काफी नहीं थी।
वह अपनी ही जिंदगी के चक्रव्यूह में फंसा हुआ था। चंद्रिका की बलि की मांगें बढ़ती जा रही थीं, और सूरजभान का अपराधबोध उसे अंदर ही अंदर खा रहा था। उसका मन लगातार उससे पूछता था, "क्या यह प्रेम है या पागलपन? क्या चंद्रिका के लिए किया गया यह सब कभी खत्म होगा?"
सूरजभान अब उस मोड़ पर पहुंच चुका था, जहां उसे लगने लगा था कि यह सब खत्म करना होगा। लेकिन चंद्रिका के सम्मोहन और उसके प्रति अपने पागलपन ने उसे हर बार रोक दिया। वह खुद को एक बंद अंधेरी सुरंग में फंसा हुआ महसूस करता था, जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था।
सूरजभान के पाप धीरे-धीरे जंगल और गांव में अपना प्रभाव दिखाने लगे। जिन बच्चों को वह चंद्रिका के कहने पर बलि के लिए ले जाता और फिर उनके शरीरों को जंगल में फेंक देता, उनके गायब होने की कहानियां धीरे-धीरे गांव में फैलने लगीं। गांव के लोग इन बच्चों की रहस्यमय गुमशुदगी से परेशान और भयभीत हो गए।
हर बार जब किसी घर का बच्चा गायब होता, उस परिवार में मातम छा जाता। पहले तो लोगों ने इसे साधारण घटना समझा। कुछ ने सोचा कि बच्चे गलती से जंगल में खो गए होंगे या किसी दुर्घटना का शिकार हो गए होंगे। लेकिन जब एक के बाद एक कई बच्चों के गायब होने की खबरें आईं, तो गांव में खलबली मच गई। लोग एक-दूसरे से बातें करने लगे।
"क्या तुमने सुना? काकी का बेटा भी कल से लापता है। ये चौथा बच्चा है जो इस महीने गायब हुआ है!"
"हां, और जो बच्चे पहले गायब हुए थे, उनका भी कोई सुराग नहीं मिला। ये सब कुछ बहुत अजीब है।"
गांव के बुजुर्गों ने जब अपने अनुभव और कहानियों को याद किया, तो उन्होंने कहा कि जंगल में कुछ तो गलत हो रहा है। उनमें से कुछ ने सोचा कि यह किसी अभिशाप का नतीजा हो सकता है, तो कुछ ने इसे जंगली जानवरों की वजह से होने वाली घटनाओं का नाम दिया।
जल्दी ही, गांव में एक अफवाह तेजी से फैलने लगी। लोग कहने लगे कि जंगल के जंगली जानवरों को बच्चों का खून लग गया है। गांव के कुछ गवाहों ने दावा किया कि उन्होंने जंगल के पास खून से सने जानवर देखे हैं।
"मैंने अपनी आंखों से देखा, भाई! वो तेंदुआ था... उसके मुंह से खून टपक रहा था। ये वही खून है... बच्चों का।"
"हां, और मैंने सुना कि भेड़ियों का एक झुंड पास के जंगल में घूम रहा है। वो अब आदमखोर बन गए हैं।"
गांव में खौफ का माहौल बन गया। बच्चों को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी जाती थी। माताएं अपने बच्चों को अपने पास से हटने नहीं देती थीं।
"देखना, मुन्ना, जंगल की तरफ मत जाना! मैंने सुना है कि वहां अब तेंदुए और भेड़िए बच्चों को खा रहे हैं।"
कुछ साहसी लोग जंगल में गए और वहां बिखरे हुए खून के धब्बों और कटी-फटी हड्डियों को देखकर लौटे। यह सब देखकर उनकी आशंका और बढ़ गई।
"जंगल में जो कुछ हो रहा है, वो डरावना है। मैंने वहां छोटी-छोटी हड्डियां देखीं। ये बच्चों की हड्डियां लगती हैं। जंगली जानवर अब आदमखोर बन गए हैं।"
गांव के मुखिया ने इस मामले को गंभीरता से लिया और लोगों को जंगल से दूर रहने की हिदायत दी। उन्होंने कहा, "जंगल में जानवर अब खतरा बन चुके हैं। जो कोई भी बच्चों को वहां ले जाएगा, वो उनकी जान जोखिम में डालेगा।" गांव के पुरुषों ने जंगल की गश्त लगानी शुरू की। वे हर आवाज़ और हर हरकत पर नजर रखते। लेकिन उनके डर और आशंकाओं का कोई ठोस हल नहीं मिल रहा था।
इस बीच, सूरजभान हर दिन इन अफवाहों को सुनता और भीतर ही भीतर और भी ज्यादा डर और अपराधबोध से घिरता गया। उसने देखा कि लोग जंगली जानवरों को इन बच्चों की मौत का जिम्मेदार मान रहे थे, और यह बात उसे कुछ राहत देती थी।
"शायद ये अच्छा है," उसने खुद से कहा। "अगर लोग जंगली जानवरों को दोष दे रहे हैं, तो उन्हें चंद्रिका के अनुष्ठानों और मेरे पापों के बारे में कभी पता नहीं चलेगा।"
लेकिन उसके भीतर की आत्मा शांत नहीं थी। हर बार जब वह गांववालों को बच्चों के गायब होने की कहानियां सुनता, तो उसके दिल पर एक और बोझ बढ़ जाता। उसे लगता था कि जैसे जंगल के पेड़, हवा और जमीन उसके पापों की गवाही दे रहे हैं।
गांव के लोग अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे कि जंगल के जंगली जानवर आदमखोर बन गए हैं। कुछ लोगों ने कहा कि यह गांव के पापों का नतीजा है, तो कुछ ने इसे कुदरत का कहर बताया। लेकिन सच यह था कि इन सबके पीछे चंद्रिका की काली साधनाएं और सूरजभान का अपराध छिपा हुआ था।
जंगल अब डर और रहस्य का प्रतीक बन चुका था। बच्चे, जो कभी वहां खेला करते थे, अब डर से बाहर नहीं निकलते थे। माताएं रात में अपने बच्चों को सीने से लगाकर सोती थीं, और गांव में हर कोई किसी अनहोनी की आशंका से डरा हुआ था। लेकिन किसी को पता नहीं था कि उनके अपने ही लोगों में से एक, सूरजभान, इन गायब बच्चों के पीछे का असली कारण था।
जब भी वह जंगल में बच्चों के शवों को फेंकता, उसे लगता जैसे वह खुद कोई शैतान बन चुका है, और हर कदम पर उसकी आत्मा को गहरी चोट पहुँच रही थी। लेकिन वह चंद्रिका की इच्छाओं के सामने पूरी तरह से असहाय था।
सूरजभान (आवाज़ में कराहते हुए): "क्या मैं सच में इतना बुरा इंसान बन चुका हूँ? क्या मैंने जो किया, वह सही था? क्या मुझे अपनी आत्मा को इस गहरे अंधकार में खोने देना चाहिए था?"
यह स्थिति उसके जीवन का सबसे कठिन पल था। वह न चाहकर भी चंद्रिका के कहे अनुसार यह सब करता रहा, और अब इस अंधेरे रास्ते पर उसे मोड़ नहीं दिख रहा था।


आगे की कहानी अगले भाग में जारी है....

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रचनाएँ
रक्तस्नान
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