शाम के समय सूरजभान का मन उस बच्चे के कटा हुआ हाथ देखकर बहुत परेशान था। वह अभी भी उस दृश्य को नहीं भूल पा रहा था, और उसका मन एक अजीब सी घबराहट से भर गया था। लेकिन चंद्रिका, जो अब तक शांत और स्थिर दिख रही थी, सूरजभान को देख रही थी जैसे कुछ भी असामान्य नहीं हुआ हो।
सूरजभान ने थोड़ी देर चुपचाप चंद्रिका की ओर देखा और फिर पूछा, "चंद्रिका, तुम्हें उस बच्चे की मौत का कोई दुख नहीं है?"
तभी अचानक चंद्रिका की आंखों में एक अजीब सी हलचल आई, और बिना कुछ बोले वह बेहोश होकर गिर पड़ी। सूरजभान ने घबराकर उसे सहारा दिया और तुरंत उसकी मदद के लिए पुकारा, "रामदीन! रामदीन! जल्दी आओ!"
रामदीन जल्दी से भीतर आया और उसने चंद्रिका की स्थिति देखी। सूरजभान भी डर के मारे कांप रहा था।
कुछ देर बाद एक पुराने चिकत्सक को बुलवाया गया। चिकित्सक ने चंद्रिका का ध्यानपूर्वक परीक्षण किया और कहा, "सूरजभान, चंद्रिका गर्भवती है!"
सूरजभान चौंका, "क्या? क्या तुम सच कह रहे हो?"
चिकित्सक ने सिर हिलाया, "जी हां, आप जल्द ही पिता बनने वाले हैं।"
सूरजभान के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उसकी आँखों में चमक थी, जैसे उसकी पूरी दुनिया बदल गई हो। उसने चिकित्सक का हाथ पकड़ा और कहा, "धन्यवाद! धन्यवाद!"
चिकित्सक मुस्कुराया और कहा, "अब आप और आपकी पत्नी खुश रहें, भगवान की कृपा से आपकी जिंदगी में यह नई शुरुआत होगी।"
कुछ देर बाद, सूरजभान ने चंद्रिका को होश में आते देखा। वह अब अपनी आंखें खोल चुकी थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चुप्प थी। सूरजभान ने उसकी ओर देखा और खुशी से कहा, "चंद्रिका, तुम गर्भवती हो! हम जल्द ही माता-पिता बनने वाले हैं!"
चंद्रिका के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई, लेकिन यह मुस्कान कुछ गहरी थी। उसने धीरे से कहा, "मुझे पता था सूरजभान, मुझे हमेशा विश्वास था |
सूरजभान ने उसकी ओर झुकते हुए कहा, "तुमसे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं चाहिए, चंद्रिका। तुम और हमारा बच्चा ही मेरे लिए सब कुछ हो।"
चंद्रिका ने सूरजभान को प्यार से गले लगा लिया और कहा, "तुमसे भी ज्यादा प्यार करती हूँ सूरजभान। तुम्हारा साथ मुझे हमेशा चाहिए।"
सूरजभान ने उसकी आँखों में गहरी नज़रों से देखा और कहा, "हमारी खुशियाँ अब पूरी होंगी, चंद्रिका।"
सूरजभान जैसे ही चंद्रिका को देखता हुआ कमरे से बाहर आया, उसे अचानक रामदीन ने रोक लिया। रामदीन का चेहरा कुछ गंभीर था, और उसकी आंखों में एक गहरी चिंता थी।
रामदीन: "मालिक, मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।"
सूरजभान ने रामदीन की ओर देखा और पूछा, "क्या बात है रामदीन? तुम ठीक तो हो?"
रामदीन: "मालिक, बात यह है कि मैंने चंद्रिका मालिकिन को हवेली के उस कमरे में जाते हुए देखा है।"
सूरजभान के कानों में जैसे एक जोर की आवाज गूंज गई। उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा, और उसके मन में हजारों सवाल उठने लगे।
सूरजभान (गुस्से में): "क्या कहा तुमने? तुम यह कह रहे हो कि चंद्रिका उस कमरे में गई थी?"
रामदीन: "जी मालिक, मैंने अपनी आँखों से देखा।"
सूरजभान का मन उलझन में था। वह अब जानता था कि उसे चंद्रिका से कुछ सवाल जरूर पूछने होंगे, जिनके जवाब उसे चाहिए थे। उसके मन में डर और संदेह दोनों थे। उसने फैसला किया कि अगले दिन वह चंद्रिका से इस बारे में जरूर पूछेगा।
अगले दिन सूरजभान ने चंद्रिका को उस कमरे की ओर जाते देखा। उसकी आंखों में एक खौफनाक डर था, क्योंकि वह जानता था कि आज वह चंद्रिका से कुछ बड़ा सच जानने वाला है।
सूरजभान जल्दी से चंद्रिका के पास पहुंचा और कड़ा कदम रखते हुए उसने कहा, "चंद्रिका, कहां जा रही हो?"
चंद्रिका एक पल के लिए रुक गई, लेकिन फिर उसने अपने चेहरे पर वही मासूमियत दिखाते हुए कहा, "मैं तो बस यहीं से गुजर रही थी, सूरजभान। क्या हुआ?"
लेकिन सूरजभान अब उसे साधारण तरीके से नहीं देख सकता था। उसने कड़ा होकर कहा, "रामदीन ने मुझे बताया कि तुम उस कमरे के अंदर जाती हो। क्या यह सच है?"
सूरजभान का दिल धड़क रहा था। वह जानता था कि चंद्रिका अब भी कुछ छिपा रही थी। उसने गहरी सांस ली और कहा, "तुमने मुझसे वादा किया था कि उस कमरे के बारे में कुछ नहीं होगा। क्यों छिपा रही हो तुम?"
सूरजभान जैसे ही चंद्रिका से उस कमरे के बारे में सवाल करता है, चंद्रिका ने चुपचाप उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में एक शांत लहर थी, लेकिन सूरजभान को कुछ गड़बड़ महसूस हो रहा था।
चंद्रिका (धीरे से): "हां, सूरजभान, मैं उस कमरे में गई थी। लेकिन इसका कारण कोई और नहीं है। हम दोनों जल्द ही संतान प्राप्त करेंगे। क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी अपनी संतान हो?"
सूरजभान ने चंद्रिका की बातों को ध्यान से सुना, लेकिन उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी। उसकी आँखों में कुछ सवाल थे, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए जवाब दिया।
सूरजभान (चिंतित होकर): "तुम कह रही हो कि हम दोनों जल्द ही संतान प्राप्त करेंगे, परंतु क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि तुम्हारी ये बातें मुझे किसी अजनबी रास्ते पर ले जा रही हैं?"
चंद्रिका (मुस्कुराते हुए): "नहीं, सूरजभान। यह सब कुछ हमारे अच्छे के लिए ही है। मैं जानती हूं कि तुम चाहते हो कि तुम्हारी अपनी संतान हो, और हम दोनों जल्द ही एक बच्चे के माता-पिता बनेंगे।"
सूरजभान का दिल अब भी उलझन में था, लेकिन चंद्रिका की बातों ने उसे कुछ शांत किया। वह उस समय अपनी भावनाओं में फंसा हुआ था, और चंद्रिका की बातों ने उसे थोड़ी राहत दी। उसने सोचा, "क्या यह सच है कि जल्द ही हमें संतान प्राप्त होगी?"
सूरजभान (सशंकित होकर): "तुम्हें यकीन है कि ऐसा होगा, चंद्रिका?"
चंद्रिका (नम्रता से): "हां, सूरजभान। तुम जल्द ही देखोगे, हमारी ज़िन्दगी का यह नया अध्याय शुरू होगा।"
सूरजभान ने चंद्रिका की बातों को सुना और अपने मन में कई सवालों के साथ उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की। चंद्रिका की आँखों में जो भरोसा था, उसने उसे थोड़ा सुकून दिया, लेकिन उसके मन में अब भी संशय की लहरें उठ रही थीं।
सूरजभान के मन में बहुत सारी उलझनें थीं, लेकिन चंद्रिका के इन सब जवाबों के बावजूद, उसके अंदर एक गहरी चिंता उभर रही थी। वह अब इस बात को और नहीं टाल सकता था, और उसने ठान लिया था कि वह उस कमरे का रहस्य खुद उजागर करेगा।
सूरजभान (सख्त स्वर में): "चंद्रिका, मुझे उस कमरे की चाबी दो, मैं अब खुद जाकर देखना चाहता हूँ कि तुम सच कह रही हो या नहीं।"
चंद्रिका ने पहले तो एक बहाना बनाया, लेकिन सूरजभान के दृढ़ निश्चय और सख्त स्वभाव के सामने वह चुप हो गई। उसकी आँखों में एक डर था, लेकिन उसने फिर भी चाबी सूरजभान को दे दी।
चंद्रिका: "ठीक है, सूरजभान। लेकिन याद रखना, कभी-कभी कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें हमें नहीं देखना चाहिए।"
सूरजभान ने चंद्रिका की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए चाबी को हाथ में लिया और कमरे की ओर बढ़ा। कमरे का दरवाजा खोलते ही, उसकी आँखों के सामने एक खौफनाक दृश्य था। फर्श पर खून फैला हुआ था, दीवारों पर खून के धब्बे थे, और सबसे डरावनी बात यह थी कि उस कमरे में एक चाकू पड़ा हुआ था, जो खून से सना हुआ था।
सूरजभान का चेहरा सफेद पड़ गया, और उसकी श्वास रुकने लगी। उसके कदम जैसे ही उस कमरे में पड़े, उसकी आँखों के सामने बच्चों के खून से सने कपड़े थे। यह दृश्य इतना भयानक था कि वह खुद को संभाल नहीं सका और कांपते हुए कमरे के अंदर घुस गया।
सूरजभान (हकलाते हुए): "य... यह... यह क्या है? यह... यह सब क्या हो रहा है, चंद्रिका?"
उसने कमरे का दृश्य देखा और धीरे-धीरे समझने की कोशिश की, लेकिन उसके दिमाग में यह सोचने का समय नहीं था कि यह सब कैसे हुआ। उसके मन में सवालों की बाढ़ आ गई, और वह डर के साये में घिर गया था। उसके सिर में दर्द हो रहा था और उसे लगा जैसे उसकी दुनिया पल भर में टूट गई हो।
सूरजभान (आँसू के साथ): "तुमने... तुमने ये सब किया? बच्चों को मारकर, उनका खून बहाकर तुम क्या साबित करना चाहती हो, चंद्रिका?"
चंद्रिका कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी, उसकी आँखों में कोई नफरत या पछतावा नहीं था, बस एक खामोशी थी। सूरजभान ने उसे देखा और वह खुद को नियंत्रित नहीं कर सका।
सूरजभान (गुस्से में): "तुमने बच्चों की बलि दी! तुमने उन्हें... तुमने उन्हें मार डाला! और मैं... मैं मूर्ख बना रहा!"
चंद्रिका ने शांति से सूरजभान की ओर देखा और धीरे-धीरे कहा,
चंद्रिका (ठंडे स्वर में): "तुम क्या जान सकते हो, सूरजभान? तुमने कभी मेरी हसरतें नहीं समझी। मुझे संतान चाहिए थी, और अब हमें वो मिलेगा।"
सूरजभान के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी आँखों के सामने चंद्रिका का असली चेहरा आ चुका था। वह नहीं जानता था कि अब वह क्या करे, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस स्थिति से कैसे बाहर निकले। उसने अपना माथा पकड़ा और खुद को संभालने की कोशिश की।
सूरजभान (काँपते हुए): "तुमने जो किया, चंद्रिका, वह... वह गलत है! यह हम दोनों के लिए सही नहीं होगा!"
लेकिन चंद्रिका की आँखों में कोई पछतावा नहीं था। वह बस धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ गई, और सूरजभान को वहीं अकेला छोड़ दिया। सूरजभान उस खौफनाक दृश्य को नकारते हुए अपने दिमाग में हलचल महसूस कर रहा था। उसकी ज़िंदगी, उसकी दुनिया, अब पूरी तरह बदल चुकी थी, और वह नहीं जानता था कि इसके बाद उसे क्या करना चाहिए।
सूरजभान का दिल तेजी से धड़क रहा था। उस खौ़फनाक दृश्य ने उसकी दुनिया को हिला कर रख दिया था, लेकिन चंद्रिका की हालत ने उसे और भी ज़्यादा विचलित कर दिया। उसने अपने आप को सँभालने की कोशिश की, उसने गहरी सांस ली, और फिर चंद्रिका का नाम पुकारते हुए कमरे से बाहर निकल आया।
सूरजभान (चिल्लाते हुए): "चंद्रिका! चंद्रिका! तुम कहाँ हो?"
सूरजभान ने चंद्रिका को ढूँढते हुए हवेली के हर कोने में कदम रखा, और अचानक उसे कमरे के पास से आग की लपटें उठती हुई दिखीं। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वह डर और चिंता से भर गया था। उसने तेज़ी से दरवाजे की ओर बढ़ते हुए एक ज़ोरदार धक्का दिया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला।
सूरजभान (घबराते हुए): "चंद्रिका! दरवाजा खोलो, मैं तुम्हें अंदर से निकाल लाऊँगा!"
चंद्रिका के कमरे से एक और चीख सुनाई दी।
चंद्रिका (भीतर से चीखते हुए): "मेरी क्या गलती थी, सूरजभान? मुझे तो बस खुद की संतान चाहिए थी! तुम तो मुझे इस तरह से छोड़ रहे हो, और अब तुम मुझे मरने के लिए मजबूर कर रहे हो!"
सूरजभान का दिल चीरने जैसा था। वह नहीं जानता था कि वह क्या करे। उसकी चाहत, उसकी चिंता, और उसकी ग़लतियों ने उसे इस हालत में ला दिया था। बाहर से वह बस चिल्लाता रहा।
सूरजभान (काँपते हुए): "चंद्रिका, तुम दरवाजा खोलो, मुझे तुमसे बात करनी है!"
लेकिन चंद्रिका की आवाज़ फिर आई, और इस बार उसकी आवाज़ में ग़ुस्सा और ग़म दोनों थे।
चंद्रिका (क्रोध से): "अगर तुम मुझसे प्यार करते, तो तुम मुझे इस तरह मरने के लिए क्यों छोड़ देते? अगर तुम्हें संतान चाहिए , तो तुम मेरी मदद क्यों नहीं करते?"
सूरजभान की आँखों में आँसू थे। उसे चंद्रिका की बातों ने अंदर तक तोड़ दिया था,
सूरजभान (सहलाते हुए): "तुम पहले बाहर आओ, चंद्रिका, तुम गर्भवती हो, तुम ख़तरे में हो!"
चंद्रिका ने अंदर से जवाब दिया, उसकी आवाज़ में अब एक घबराहट थी, लेकिन साथ ही एक उम्मीद भी थी।
चंद्रिका (धीरे से): "अगर तुम मुझसे सच में प्यार करते हो, और अगर तुम चाहते हो कि तुम्हें संतान मिले, तो तुम्हें मेरी बात माननी होगी।
सूरजभान को अब एक निर्णय लेना था, और वह इस स्थिति को और नहीं टाल सकता था। उसके अंदर एक अंदरूनी आक्रोश और प्यार दोनों की मिलीजुली भावना थी। वह एक पल के लिए पूरी तरह से चुप हो गया, फिर उसने कड़े शब्दों में कहा:
सूरजभान (सख्ती से): "मैं तुम्हें बचाने के लिए कुछ भी करूँगा, चंद्रिका और मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकता।"
इससे पहले कि वह और सोच पाता, उसने बिना कोई देर किए चंद्रिका की बात मानी और दरवाजे को खोलने की कोशिश की। उसके दिल में डर था, लेकिन इस डर के साथ एक गहरी उम्मीद भी थी। उसने चंद्रिका के शब्दों पर विश्वास किया और उसे बचाने का निर्णय लिया,
सूरजभान (सही निर्णय लेते हुए): "हाँ, मैं करूँगा, चंद्रिका! तुमने कहा जैसा, मैं वैसा करूँगा!"
उसने अपना कदम और बढ़ाया, और चंद्रिका के कमरे का दरवाजा खोलने के लिए अंतिम प्रयास किया।
सूरजभान ने जैसे ही दरवाजा तोड़ा, उसके सामने जो दृश्य था, वह उसे हिलाकर रख गया। कमरे में आग की लपटें उठ रही थीं, और धुंआ चारों ओर फैला हुआ था। लेकिन सबसे खौ़फनाक दृश्य यह था कि चंद्रिका अपने बिस्तर पर बैठी हुई थी, और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। सूरजभान का दिल कसकर धड़कने लगा, और वह घबराया हुआ कमरे के अंदर घुसा।
सूरजभान (काँपते हुए): "चंद्रिका! तुम क्या कर रही हो? आग, ये क्या किया तुमने?"
वह चंद्रिका को घेरते हुए उसे कमरे से बाहर लाया। सभी नौकर तुरंत कमरे में दौड़े और आग को बुझाने में जुट गए। सूरजभान ने चंद्रिका की ओर देखा, उसका चेहरा उदास था, लेकिन आँसू अभी भी उसकी आँखों से गिर रहे थे।
सूरजभान (कड़ाई से): "तुमको जो करना है करो, चंद्रिका! तुम्हें संतान चाहिए तो जो भी करना पड़े करो, लेकिन फिर कभी ऐसा कदम मत उठाना, ये तुम्हारे लिए ठीक नहीं है!"
चंद्रिका ने सूरजभान की बातों को नजरअंदाज किया और एक मौका देख कर सूरजभान के सामने सीधे खड़ी हो गई।
चंद्रिका ( धीरे से ): "अब तुम मेरी मदद करोगे, सूरजभान ,मुझे और बलि चाहिए |
सूरजभान की आँखें फैल गईं, उसने जल्दी से पूछा,
सूरजभान (हैरान होकर): "अब तो तुम माँ बनने वाली हो, फिर ये बलि क्यों? क्या मतलब है तुम्हारा?"
चंद्रिका ने एक गहरी साँस ली, और फिर उसकी आँखों में एक रहस्यमय चमक आ गई।
चंद्रिका (धीरे से): "कुल 21 बलियाँ चाहिए मुझे।"
सूरजभान का चेहरा डर और अविश्वास से बदल गया। उसने तेज़ी से पूछा,
सूरजभान (हड़बड़ाते हुए): "21 बलियाँ? क्या कह रही हो तुम? तुम्हारा मतलब क्या है? कौन मांग रहा है बलि?"
चंद्रिका ने उस घबराए हुए सूरजभान की ओर देखा, उसकी आँखों में एक गहरी साजिश छिपी थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ी और उसे अपने साथ उस कमरे में जाने का इशारा किया, जिसे सूरजभान ने थोड़ी देर पहले देखा था।
चंद्रिका (सुर्र से): "आओ, मेरे साथ उस कमरे में चलो। वहाँ सारी सच्चाई तुम्हें पता चलेगी।"
सूरजभान को पूरी तरह से समझ में नहीं आ रहा था कि चंद्रिका क्या कह रही थी, लेकिन उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे डर था कि कहीं वह उसी अंधेरे में न फँस जाए, जिसमें चंद्रिका ने उसे खींच लिया था। फिर भी, सूरजभान ने उसके पीछे जाने का फैसला किया।
सूरजभान (सहज होकर): "ठीक है, चंद्रिका। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। बताओ, क्या हो रहा है?"
चंद्रिका मुस्कुराई, और दोनों उस कमरे की ओर बढ़े। सूरजभान की सांसें तेज़ हो गईं। वह अंदर जाने के लिए तैयार था, लेकिन उसके मन में खौ़फ और शंका की लहरें दौड़ रही थीं। क्या वह अब भी चंद्रिका के उस अंधेरे रहस्य का हिस्सा बनने जा रहा था?
जैसे ही सूरजभान और चंद्रिका कमरे के अंदर दाखिल हुए, चंद्रिका ने दीवार के पास रखी अलमारी की ओर इशारा किया। उसने अलमारी खोलते हुए एक पुरानी और मोटी किताब निकाली। सूरजभान की नज़र उस किताब पर पड़ी, और उसका मन आशंका और डर से भर गया।
चंद्रिका (एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ): "यह वही किताब है, सूरजभान, जिसकी वजह से हमें संतान सुख मिलने वाला है। इसके लिए मुझे बलि देनी पड़ेगी।"
सूरजभान के लिए यह सब कुछ बहुत ही खतरनाक और अजीब था। उसने किताब को देखा और चंद्रिका की आँखों में एक गहरी रहस्यमयी चमक देखी। उसका मन डर से भर गया, लेकिन उसने खुद को शांत किया और धीरे से चंद्रिका से पूछा।
सूरजभान (संदेह से): "मुझे भी दिखाओ, चंद्रिका, तुमने क्या लिखा था इस किताब में?"
चंद्रिका ने एक लंबी साँस ली और किताब को खोलते हुए सूरजभान की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक गहरी लालसा थी, जैसे वह कुछ बहुत बड़ा करने जा रही हो। फिर उसने किताब को सूरजभान की नज़रों से बचाते हुए हुए कहा।
चंद्रिका (मंद मुस्कान के साथ): "मैंने इसमें संतान की प्राप्ति के लिए लिखा था, और यह अब पूरी होने वाली है। बस हमें 19 बलियाँ और देनी हैं, और अब तुम्हें इन 19 बच्चों का इंतजाम करना होगा।"
सूरजभान की धड़कन तेज़ हो गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या सुन रहा था, लेकिन चंद्रिका की बातें अब उसे पागलपन लगने लगीं। फिर भी उसने अपना डर दबाते हुए चंद्रिका से पूछा।
सूरजभान (डरा हुआ, किंतु पूछते हुए): "क्या... क्या इन बलियों के बाद, ये सब कुछ खत्म हो जाएगा? जो तुम कर रही हो, क्या वो सब कुछ बंद हो जाएगा?"
चंद्रिका ने सूरजभान की ओर देखा और एक शांत और ठंडी मुस्कान के साथ जवाब दिया।
चंद्रिका (निश्चिंत स्वर में): "हाँ, सूरजभान, यह सब खत्म हो जाएगा। जब हमें संतान मिल जाएगी, तो मेरी सारी इच्छाएँ पूरी हो जाएंगी और सब कुछ सामान्य हो जाएगा।"
सूरजभान के मन में अब भी असमंजस था, लेकिन वह यह चाहता था कि चंद्रिका का यह रास्ता खत्म हो जाए। उसके दिल में एक विचार आया। उसने चंद्रिका से फिर पूछा,
सूरजभान (गंभीरता से): "तुम एक वादा करो, चंद्रिका। जब ये 21 बलियाँ पूरी हो जाएं, तो तुम इस किताब को हमेशा के लिए नष्ट कर दोगी। यह जो तुम कर रही हो, उसे रोक दोगी। क्या तुम वादा करती हो?"
चंद्रिका ने सूरजभान की आँखों में देखा, और उसकी मुस्कान थोड़ी और गहरी हो गई। फिर उसने सिर झुका कर और एक ठंडी, दृढ़ आवाज़ में कहा।
चंद्रिका (वादा करते हुए): "ठीक है, सूरजभान। जब ये सब खत्म हो जाएगा, तो मैं इस किताब को नष्ट कर दूँगी, और फिर से कभी इस रास्ते पर नहीं चलूँगी।"
सूरजभान का दिल थोड़ी राहत से भर गया। चंद्रिका ने जो वादा किया था, वह उसके लिए एक उम्मीद की किरण जैसा था। हालांकि, उसका मन अभी भी अंदर से डर और शंका से भरा हुआ था, लेकिन उसने यह वादा किया था कि वह चंद्रिका के इस रास्ते को समाप्त कर देगा।
सूरजभान और चंद्रिका की आँखों में अब एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत था, लेकिन सूरजभान जानता था कि यह रास्ता जितना आसान दिख रहा था, उतना सरल नहीं होगा।
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है......