हालांकि, सूरजभान के साथ उसने वादा किया था कि वह उस कमरे का दरवाजा कभी नहीं खोलेगी, फिर भी उसका मन उस प्रतिबंध से बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो जाता। वह जानना चाहती थी कि वह कमरा क्या राज़ छिपाए हुए है, क्या वहाँ किसी तरह का समाधान छिपा है जो उसकी संतान की इच्छा पूरी कर सकता है।
चंद्रिका का जीवन सामान्य रूप से चलता रहा, लेकिन उसके मन में संतान की प्राप्ति की इच्छा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वह कमरे के रहस्य को लेकर अब भी परेशान थी, लेकिन एक रात उसे एक सेविका से मिलने का मौका मिला, जिसने चंद्रिका के दिल की बात सुन ली।
सेविका, जो हवेली में काम करती थी, चंद्रिका के पास आई और धीरे से कहा, "मालकिन, अगर आपको अपनी इच्छा पूरी करनी है, तो एक रास्ता है। आपने सुना है उस तांत्रिक के बारे में? वह जो सबकी इच्छाओं को पूरा करता है। वह जानता है कि कैसे किसी की मां बनने की इच्छा पूरी की जाती है।"
चंद्रिका की आँखों में एक आशा की किरण चमकी। उसने तुरंत सेविका से पूछा, "तांत्रिक? कहां है वह? मुझे बताओ, मुझे उससे मिलना है।"
सेविका ने धीरे से कहा, "वह दूर, पुराने जंगल में एक जगह पर रहता है। लोग कहते हैं कि वह एक महान तांत्रिक है, जो किसी भी समस्या का हल जानता है। अगर आप उसके पास जाएंगी, तो शायद आपकी इच्छा पूरी हो जाए।"
चंद्रिका को अपने दिल में उम्मीद की एक नई लहर महसूस हुई। यह वह मौका था जिसे वह तलाश रही थी। उसने सेविका से और जानकारी ली और उसी रात, तांत्रिक से मिलने के लिए अपनी योजना बनाई। वह जानती थी कि यह एक जोखिम भरा कदम हो सकता है, लेकिन उसका मन इस डर से कहीं ज्यादा उस संतान की इच्छा से भरा था, जो उसे पूरी जिंदगी से चाहिए थी।
अगली रात, चंद्रिका ने अपने कुछ जरूरी सामान इकट्ठा किए और सूरजभान से बिना बताए, तांत्रिक के पास जाने का फैसला किया। वह जंगल की ओर निकल पड़ी, उसकी आंखों में उम्मीद और दिल में एक अजीब सा डर था।
वह जंगल में दाखिल हुई, और जैसे ही वह तांत्रिक की कुटिया तक पहुँची, उसकी सांसें तेज़ हो गईं। कुटिया में एक वृद्ध तांत्रिक बैठा था, जिसकी आँखों में गहरे अनुभव की छाया थी। वह चंद्रिका को देखते हुए बोला, "तुम आई हो, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए।"
चंद्रिका ने सिर झुका कर कहा, "जी हां, मेरे पास एक बहुत बड़ी इच्छा है। मैं संतान चाहती हूँ। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?"
तांत्रिक ने गहरी सांस ली और फिर उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा, "तुम्हारी इच्छा पूरी हो सकती है, लेकिन तुम्हें मेरे कुछ कदमों का पालन करना होगा। यह केवल एक साधारण उपाय नहीं है, यह एक गहरी साधना है। तुम्हें खुद को पूरी तरह से समर्पित करना होगा।"
चंद्रिका की आँखों में आशा का दीप जल उठा। वह तैयार थी, वह जो भी करना पड़े, अपनी चाहत को पूरा करने के लिए।
तांत्रिक ने उसे एक गहरे मंत्र के साथ साधना की प्रक्रिया समझाई, जो चंद्रिका को करनी थी। उसने बताया कि यह साधना उसे संतान की प्राप्ति दिला सकती है, लेकिन इसके लिए उसे अपनी आत्मा की गहराई से जुड़ना होगा और सबकुछ सही तरीके से करना होगा।
चंद्रिका ने सब कुछ पूरी श्रद्धा के साथ स्वीकार किया। उसे अब अपने भविष्य के लिए एक नई उम्मीद मिल गई थी, और वह यह जानती थी कि अगर यह रास्ता सही है, तो वह किसी भी कीमत पर इसे अपनाएगी।
अब, चंद्रिका का दिल भर आया था। उसे यकीन था कि तांत्रिक की मदद से वह अपनी सबसे बड़ी इच्छा संतान की प्राप्ति को पूरा कर सकेगी।
तांत्रिक ने चंद्रिका की बेचैनी को समझ लिया था। उसकी आँखों में गहरी चिंता और एक ताजगी थी, जिसे वह छुपाने की कोशिश कर रही थी। उसकी नज़रें अब चंद्रिका की बेचैनियों पर टिकी थीं। चंद्रिका की सांसें थोड़ी तेज़ हो गई थीं, वह लगातार अपने भीतर उठ रहे सवालों से जूझ रही थी। उसकी इच्छा, संतान की प्राप्ति की, अब उसके मन पर हावी हो गई थी, और तांत्रिक ने यह सब साफ़ समझ लिया था।
"तुम घबराई हुई हो," तांत्रिक ने अपनी आवाज में गहरी सहानुभूति के साथ कहा, "तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हें बेचैन कर रही हैं, लेकिन जान लो, हर इच्छा का रास्ता सरल नहीं होता।"
चंद्रिका ने सिर झुका लिया, उसकी आँखों में बसी हुई चाहत और अनिश्चितता को छुपाना अब मुश्किल हो रहा था। उसने धीरे से कहा, "मुझे कुछ करना होगा, कुछ ऐसा जो मेरी उम्मीदों को साकार कर सके।"
तांत्रिक ने अपनी दी हुई शांति को तोड़ा और अपनी से एक पुरानी और घिसी हुई किताब निकाली। किताब को उसके हाथों में देते हुए, उसने कहा, "यह तुम्हारी मदद कर सकती है, मालकिन। यह किताब तुम्हारी इच्छा को पूरी कर सकती है, तुम्हें अपने खून से लिखना होगा, तभी यह सक्रिय होगी। " लेकिन इसके बदले में तुम्हें इसके रास्ते पर चलना होगा।"
चंद्रिका ने किताब को हाथ में लिया, और उसकी छुअन ने उसे अजीब सा अहसास दिलाया। किताब की बनावट बहुत साधारण थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो उसके भीतर एक अजीब सी सिहरन पैदा कर रहा था, उसके मन में एक सवाल था, जिसे वह तुरंत पूछना चाहती थी। वह किताब को पलटते हुए तांत्रिक से बोली, "यह किताब क्या है? इसमें कुछ नहीं लिखा है, बस काले कागज के पन्ने हैं।" उसकी आवाज में उलझन और आशंका साफ झलक रही थी।
तांत्रिक ने चंद्रिका को अपनी गहरी आँखों से देखा और धीरे से बोला, "यह कोई साधारण किताब नहीं है, मालकिन। यह एक शापित पुस्तक है।" उसकी आवाज में एक रहस्यमय और गंभीर लहजा था।
"शापित पुस्तक?" चंद्रिका ने आश्चर्य से पूछा, "लेकिन इसमें कुछ भी नहीं लिखा है, तो यह कैसे शापित हो सकती है?"
तांत्रिक की मुस्कान हल्की थी, लेकिन उसमें कोई छिपा हुआ अर्थ था। उसने धीरे से किताब चंद्रिका के हाथों में रखते हुए कहा, "यह पुस्तक तुम्हारी सबसे गहरी इच्छा को जानती है। यह किसी भी इच्छा को पूरी करने की ताकत रखती है, लेकिन इसका एक और पहलू भी है। तुम्हें इस किताब के कहे हुए कार्यों को करना होगा, अगर तुम अपनी इच्छा पूरी चाहती हो।"
चंद्रिका की आँखें फैल गईं। "क्या मतलब है आपका? यह किताब मेरी इच्छा पूरी कर सकती है? लेकिन क्यों?"
तांत्रिक ने किताब की ओर इशारा करते हुए कहा, "यह किताब सिर्फ एक माध्यम है, यह तुम्हारी इच्छाओं को अपनी शर्तों पर पूरा करती है। अगर तुम इसमें अपनी इच्छा लिख देती हो, तो वह इच्छा पूरी हो सकती है, लेकिन इसके बदले में तुम्हें इसका पालन करना होगा।"
चंद्रिका ने हैरान होते हुए पूछा, "क्या शर्तें हैं? क्या मुझे यह किताब क्यों स्वीकार करनी चाहिए?"
तांत्रिक ने गहरी सांस ली और चंद्रिका के चेहरे की ओर देखता हुआ कहा, "यह किताब तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी मदद और सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है। अगर तुम अपनी इच्छा लिखोगी, तो यह तुम्हारी हर एक चाहत पूरी करेगी, लेकिन याद रखो, एक बार जब तुम इसमें अपनी इच्छा लिख दोगी, तो यह कभी भी नष्ट नहीं की जा सकती। जब तक तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं होती, यह किताब तुम्हारे साथ रहेगी, और तुम इसके कहे हुए कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य होगी।"
चंद्रिका की आँखों में उलझन और जिज्ञासा थी, लेकिन उसके मन में एक उम्मीद की किरण भी जल रही थी। उसने किताब को ध्यान से देखा और फिर तांत्रिक से पूछा, "क्या इस किताब का कोई नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है?"
तांत्रिक ने सिर हिलाया और फिर बोला, "हर इच्छा का अपना मूल्य होता है। यह किताब तुम्हारी इच्छा पूरी तो करेगी, लेकिन इसके बदले तुम्हें कुछ और भी करना होगा। अगर तुम इस रास्ते पर चलने का निर्णय लेती हो, तो तुम्हें इसके परिणामों के लिए भी तैयार रहना होगा।"
चंद्रिका ने किताब को अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया, और उसके मन में संतान प्राप्ति की इच्छा फिर से प्रबल हो उठी। "मैं तैयार हूं," उसने धीरे से कहा, "मैं अपनी इच्छा पूरी करने के लिए यह किताब स्वीकार करती हूँ।"
तांत्रिक ने संतोषजनक तरीके से सिर हिलाया, और फिर उसने चंद्रिका को किताब दी। "अब तुम्हारे हाथों में है वह ताकत, जो तुम्हारी जीवन की सबसे बड़ी इच्छा को पूरा कर सकती है। लेकिन याद रखो, यह किताब तुम्हारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी, और तुम्हें इसके साथ जीने का तरीका सीखना होगा।"
चंद्रिका ने किताब को अपने पास रखा और अपने भविष्य के बारे में सोचने लगी। वह जानती थी कि अब उसकी यात्रा एक नए रास्ते पर शुरू होने वाली थी, जो अनजाने खतरों और रहस्यों से भरा हुआ था।
चंद्रिका आधी रात को जंगल से लौट रही थी। उसके मन में कई तरह के विचार और भावनाएं उमड़ रही थीं। वह लगातार इस बात को सोच रही थी कि अगर किसी को इस किताब के बारे में पता चल गया, तो उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकेगी। इस डर के साथ उसने फैसला किया कि इस किताब को किसी के सामने नहीं लाएगी। वह तेजी से हवेली की तरफ बढ़ी, लेकिन उसके दिल में एक बेचैनी भी थी—क्या वह सही कर रही थी?
जैसे ही चंद्रिका हवेली के भीतर दाखिल हुई, उसे अपने किए गए वादे की याद आई। उसने सूरजभान से कहा था कि वह कभी उस बंद कमरे में कदम नहीं रखेगी, लेकिन आज रात, अपनी तमाम आशाओं और इच्छाओं को पूरा करने की उम्मीद में, उसने उस कमरे की तरफ बढ़ने का निर्णय लिया। कदम और तेजी से बढ़ रहे थे, जैसे किसी आंतरिक शक्ति ने उसे खींच लिया हो।
जब वह उस कमरे के पास पहुंची, तो अचानक उसका ध्यान एक कड़ी पर गया। रामदीन, सूरजभान के एक सेवक, जो हमेशा हवेली में काम करता था, चंद्रिका को देख रहा था। उसकी आँखों में शंका और उत्सुकता थी, लेकिन उसने चुप्पी साधे रखी। चंद्रिका ने उसकी ओर एक त्वरित नज़र डाली, लेकिन तुरंत ही वह आगे बढ़ गई। रामदीन ने कोई सवाल नहीं पूछा, और चुपचाप देखता रहा। वह जानता था कि यह एक रात की बात है, और वह भी चुप रहने का निर्णय ले चुका था।
चंद्रिका ने कमरे के दरवाजे तक पहुंचते हुए अपना हाथ दरवाजे पर रखा और फिर उसे खोल दिया। जैसे ही उसने दरवाजा खोला, एक ठंडी हवा का झोंका अंदर आया। उसने अंदर कदम रखा, और दरवाजे के बंद होने से कमरे का वातावरण और भी डरावना हो गया। कमरे के अंदर अंधेरा था, लेकिन एक अजीब सी चुप्प ने उसे और भी डराया।
अचानक, चंद्रिका ने महसूस किया कि उसके हाथ में दी हुई किताब कुछ अलग तरह से चमक रही थी। उसकी आँखें चौंधिया गईं, जब किताब से नीली रोशनी निकलने लगी। वह यह देखकर डर गई, उसकी धड़कन तेज़ हो गई और उसकी साँसें हल्की-सी रुकने लगीं। यह रोशनी विचित्र, रहस्यमयी और बहुत तीव्र थी। किताब के पन्ने जैसे स्वत: खुलने लगे थे, और उसके भीतर से एक अजीब सी ऊर्जा निकल रही थी।
"क्या यह सच में हो रहा है?" चंद्रिका ने घबराते हुए सोचा, लेकिन फिर उसने खुद को शांत किया।
उसने धीरे-धीरे किताब को अपने हाथ में पकड़ा और उसे अपनी छाती से लगा लिया। उसे ऐसा लगा जैसे यह किताब उसकी सारी इच्छाओं और दर्द को महसूस कर रही हो। नीली रोशनी अब और तेज़ हो गई थी, कमरे की दीवारों पर अजीब सी छायाएँ नाचने लगीं, जैसे किसी ने अंधेरे से खेलना शुरू कर दिया हो।
चंद्रिका ने धीरे से किताब को अलमारी की ओर बढ़ाया और अलमारी का दरवाजा खोला। वह घबराते हुए किताब को अलमारी के अंदर रख रही थी, लेकिन उसका मन लगातार उसे चेतावनी दे रहा था कि वह यह कदम नहीं उठाए।
कमरे का माहौल बहुत डरावना था। हर कोने से एक अजीब सी ठंडक आ रही थी, जैसे कमरे में किसी का अस्तित्व हो जो अभी भी जीवित हो। हवा में गहरी शांति थी, लेकिन वह शांति कुछ अजीब थी, एक भयावह शांति, जो चंद्रिका के दिल में गहरी दहशत छोड़ रही थी।
"क्या किया मैंने?" चंद्रिका ने हल्की आवाज में सोचा, लेकिन जैसे ही वह अलमारी के दरवाजे को बंद करने के लिए मुड़ी, उसने महसूस किया कि कोई और ताकत इस जगह पर मौजूद थी। वह तेजी से अलमारी का दरवाजा बंद करने को दौड़ी, और बाहर निकलने के लिए पलटी, लेकिन तभी कमरे की बत्ती अपने आप जल गई, और चंद्रिका के अंदर एक अजीब सी दहशत दौड़ गई।
कमरे की हवा का झोंका और भी ठंडा हो गया था। चंद्रिका ने घबराकर कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन वह अपने कदमों को तेज नहीं कर पा रही थी। उसे यह अहसास हो रहा था कि जैसे कोई उसे पीछे से देख रहा हो, कोई ताकत जो उसे महसूस कर सकती थी।
अलमारी में किताब रखने के बाद, चंद्रिका को ऐसा महसूस हुआ कि उसका दिल भारी हो गया था, जैसे उसने कोई बहुत बड़ा पाप कर लिया हो। उसे लगा जैसे वह कुछ ऐसी ताकत से जुड़ गई थी, जिसका परिणाम वह नहीं जानती।
चंद्रिका ने जैसे ही कमरे से बाहर कदम रखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। उसकी आँखों में वह जो नया आत्मविश्वास था, वह पहले कभी नहीं था। उसकी चाल में भी एक हल्का सा उत्साह था। उसने अपने कमरे वापस आकर धीरे से सूरजभान की ओर देखा, जो अभी भी सो रहा था, और एक ठंडी सांस ली। वो सूरजभान के बगल में ऐसे सो गई जैसी कहीं गई ही नहीं थी, वह जानती थी कि आज की रात उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ होगा।
जब सूरजभान सुबह उठकर चंद्रिका को देखा, तो उसकी आँखों में जो चमक थी, वह देख कर वह चौंक गया। सूरजभान, जो आमतौर पर चंद्रिका के हर छोटे बदलाव को समझा करता था, इस बार एक गहरी नज़र डालकर उससे पूछ बैठा, "तुम आज इतनी बदली-बदली क्यों लग रही हो? क्या कुछ खास है?"
चंद्रिका ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "बस कुछ समय की बात है, और फिर हमारे आंगन में भी खुशियों की किलकारियाँ गूंजेंगी।"
सूरजभान ने यह सुना और उसकी आँखों में एक उम्मीद की झलक देखी। उसे लगा कि शायद चंद्रिका को सच में किसी उम्मीद की किरण मिल गई है। वह थोड़ी देर तक सोचता रहा, फिर चुपचाप बोला, "तो अच्छा है। मैं खुश हूं कि तुम ठीक हो।"
चंद्रिका ने इसे बहुत ध्यान से सुना, लेकिन वह जानती थी कि सूरजभान की बातों में कोई गहरी बात नहीं थी। वह खुद ही अपने भीतर कुछ और उम्मीदें पाल चुकी थी। उसकी आँखों में जो चमक थी, वह सिर्फ उसके अंदर के उस नए साहस का परिणाम था, जो अब उसे अपने जीवन के सबसे बड़े फैसले की ओर ले जा रहा था।
थोड़ी देर बाद सूरजभान ने कहा, "मुझे इस बार के व्यापारिक मेले की व्यवस्था को देखना है। मैं आज शाम को शहर से बाहर जा रहा हूँ, और कल शाम तक वापस आऊँगा। तुम तब तक अपना ध्यान रखना।"
चंद्रिका ने यह सुना और सोचा कि यह समय सही है। सूरजभान का बाहर जाना उसे एक अवसर दे रहा था। अब वह पूरी तरह से स्वतंत्र थी, बिना किसी भय के, अपनी इच्छा को उस किताब में लिखने का।
"ठीक है, सूरजभान। तुम अपना काम अच्छे से करना," चंद्रिका ने कहा, और सूरजभान की ओर एक हल्की सी मुस्कान फेंकी। वह अंदर ही अंदर काफी हल्का महसूस कर रही थी।
जैसे ही सूरजभान बाहर जाने के लिए तैयार हुआ, चंद्रिका ने मन ही मन अपने अगले कदम की योजना बनाई। "आज रात सही मौका होगा," उसने खुद से कहा। "आज रात, वह किताब मेरी इच्छाओं से भर जाएगी।"
सूरजभान की विदाई के बाद, चंद्रिका ने अपने कामकाजी दिन की शुरुआत की, लेकिन उसकी सोच कहीं और ही थी। रात को एक पल भी सोचना नहीं था, क्योंकि यह रात उसकी पूरी जिंदगी को बदलने वाली थी। वह बार-बार उस किताब को सोच रही थी और उसके भीतर की ताकत को महसूस कर रही थी।
दिन भर चंद्रिका ने सूरजभान से कोई खास बात नहीं की, क्योंकि वह जानती थी कि अब उसे हर कदम बहुत सोच-समझ कर उठाना होगा। जब शाम हुई और सूरजभान घर से बाहर चला गया, तब चंद्रिका ने अपने सारे काम खत्म किए और अपने कमरे में चली गई।
आधी रात होने पर चंद्रिका धीरे-धीरे रात के अंधकार में उस रहस्यमयी एक चाकू अपने साथ लेकर कमरे की ओर बढ़ी। हवेली के बाकी हिस्सों में एक गहरी नीरवता छाई हुई थी, लेकिन उस कमरे के पास पहुँचते ही माहौल जैसे बदलने लगा। वहाँ हवा भारी लग रही थी, और कमरे के दरवाजे पर पहुँचते ही हल्की-हल्की सरसराहट की आवाजें सुनाई देने लगीं। चंद्रिका ने एक गहरी साँस ली, अपने भय को भीतर दबाया, और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
अंदर का माहौल अभी भी डरावना था। दीवारों पर पुरानी चित्रकारी झूल रही थी, और फर्श पर फैली धूल पर चंद्रिका के कदमों के निशान साफ दिख रहे थे। कमरे की खिड़कियाँ बंद थीं, लेकिन हवा जैसे भीतर ही घूम रही हो। चंद्रिका ने एक बार चारों ओर देखा, फिर सीधे उस अलमारी की ओर बढ़ी जहाँ उसने किताब रखी थी।
जैसे ही उसने अलमारी का दरवाजा खोला, उस किताब से नीली रोशनी की एक चमक निकली। किताब को देखकर ऐसा लगा जैसे वह जीवित हो, जैसे उसमें कोई शक्ति हो जो चंद्रिका को अपनी ओर खींच रही हो। उसने अपनी कांपती उँगलियों से किताब को उठाया, और उसके स्पर्श के साथ ही पूरी हवेली में हलचल मच गई। खिड़कियों पर लगे पुराने परदे फड़फड़ाने लगे, दीवारों पर टंगी तस्वीरें हल्की-हल्की हिलने लगीं, और कमरे की बत्तियाँ झपकने लगीं।
चंद्रिका अब डर तो रही थी, लेकिन उसका डर उसकी लालसा से छोटा था। उसने किताब को अपने हाथों में थामा और धीरे-धीरे उसका पहला पन्ना खोला। जैसे ही पन्ना खुला, कमरे की ठंडक बढ़ने लगी। हवाएँ और तेज हो गईं, मानो कोई अदृश्य शक्ति उसे देख रही हो।
चंद्रिका को तांत्रिक की कही हुई बातें याद आने लगीं:
"यह किताब तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकती है। लेकिन हर इच्छा की कीमत होती है। तुम्हें अपने खून से लिखना होगा, तभी यह सक्रिय होगी।"
यह याद करते ही चंद्रिका ने बिना देर किए धारदार चाकू उठाया और उसने अपनी बाईं हथेली पर एक गहरा चीरा लगाया। खून की पहली बूंद जैसे ही उसकी हथेली से गिरकर किताब के पन्ने पर गिरी, एक अजीब सी ऊर्जा कमरे में फैल गई। चंद्रिका ने दर्द को नजरअंदाज करते हुए अपने खून से पन्ने पर लिखना शुरू किया।
जैसे ही उसने अपनी इच्छा लिखी, कमरे का माहौल और भी भयानक हो गया। हवेली के बाहर घने बादल इकट्ठा होने लगे। बिजली की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी, और हवाएँ इतनी तेज हो गईं कि कमरे की खिड़कियाँ ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगीं। अचानक, किताब चंद्रिका के हाथों से निकलकर हवा में ऊपर उठ गई।
चंद्रिका ने घबराकर चारों ओर देखा। किताब हवा में चक्कर काटने लगी, और उसके पन्ने खुद-ब-खुद पलटने लगे। चंद्रिका असमंजस में खड़ी यह सब देख रही थी। तभी किताब के पन्नों पर लाल रंग के अजीब-अजीब शब्द उभरने लगे। पहले तो चंद्रिका उन शब्दों को पढ़ नहीं पाई, लेकिन धीरे-धीरे वे शब्द स्पष्ट होने लगे। किताब पर सिर्फ एक ही शब्द चमकने लगा:
"रक्तस्नान"
उस शब्द को देखकर चंद्रिका के शरीर में सिहरन दौड़ गई। वह समझ नहीं पा रही थी कि इसका क्या मतलब है। किताब की रोशनी तेज होती गई, और वह शब्द चमककर पूरे कमरे में प्रतिबिंबित हो गया। चंद्रिका के चेहरे पर डर और जिज्ञासा का अजीब सा मिश्रण था। उसने धीरे से फुसफुसाते हुए पूछा, "रक्तस्नान... इसका क्या मतलब है?"
लेकिन किताब ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह धीरे-धीरे फिर से अलमारी के पास जाकर गिर गई। कमरे का माहौल शांत हो गया, लेकिन चंद्रिका के भीतर एक तूफान उठ चुका था। उसने किताब को अलमारी में वापस रखा और कमरे से बाहर निकल आई।
उस रात, उसने पहली बार महसूस किया कि उसने एक ऐसा रास्ता चुना है जो सामान्य नहीं है। अब वह खुद को बदलते हुए महसूस कर रही थी, लेकिन यह बदलाव डरावना और रहस्यमयी था।
आगे की कहानी अगले भाग में जारी है.....