यह कहानी आज से दो सौ साल पहले की जब दिल्ली दौलताबाद के नाम से जाना जाता था, तब दौलताबाद एक गाँव था, वह गांव जो कभी व्यापार और समृद्धि का प्रतीक था, अपनी धूमधाम में था। यह गाँव अपनी हरियाली, शानदार हवेलियों और समृद्ध बाजारों के लिए प्रसिद्ध था। दौलताबाद के गलियारे में हर कदम पर ऐश्वर्य और ऐतिहासिक वैभव की छाप महसूस होती थी। यह बड़े-बड़े व्यापारियों, सामंतों और शाही परिवारों का गढ़ था, और यहां के लोग शाही ठाठ-बाठ में रहते थे। घरों में सजे हुए बगिचे, विशाल हवेलियाँ, आंगन में झरने और हर दीवार पर स्वर्णिम चित्रकारी, यह सब दौलताबाद की पहचान थे।
सूरजभान की हवेली, जो उस समय अपनी पूरी धूमधाम में थी, दौलताबाद की सबसे भव्य और सम्मानित हवेलियों में से एक मानी जाती थी। यह हवेली विशाल और शानदार थी, जिसमें हर तरफ का ऐश्वर्य बिखरा हुआ था। हवेली के मुख्य द्वार पर दो ऊँची सीढ़ियाँ थीं, जिनके दोनों ओर खूबसूरत संगमरमर की मूर्तियाँ स्थापित थीं, जो राजसी ठाठ-बाठ की ओर इशारा करती थीं। हवेली के आँगन में एक खूबसूरत बगीचा था, जिसमें रंग-बिरंगे फूल और घास के मैदान हर वक्त ताजगी से भरे रहते थे। आँगन में एक बड़ा सा फव्वारा था, जिसकी ठंडी और शांति देती आवाज़ हवेली की समृद्धि की तरह सुनाई देती थी।
हवेली के अंदर लकड़ी की नक्काशी और कांच के रंग-बिरंगे झरोखों से रोशनी आती थी, और इसके विशाल कमरे पुराने राजाओं और रानियों के महल जैसा अनुभव कराते थे। हर दीवार पर रंगीन चित्रकारी थी, जो दौलताबाद के ऐतिहासिक गौरव को दर्शाती थी। हवेली के भीतर का वातावरण भव्यता और शांति से लदा हुआ था।
सूरजभान के पिता, रणजीत, इस हवेली के मालिक और व्यवसायी थे। वे दौलताबाद के सबसे प्रभावशाली व्यापारियों में से एक थे और उनके निधन के बाद भी उनका नाम इस इलाके में बड़े सम्मान से लिया जाता था। उनकी हवेली का हर कोना उनके जीवन की सफलता और धरोहर का गवाह था। वे हमेशा अपने कामों में व्यस्त रहते थे, लेकिन जब भी परिवार के साथ होते, तो हवेली का माहौल और भी गर्म और सजीव हो जाता था।
सूरजभान की मां जो सूरज को उसके बचपन में ही इस दुनिया को छोड़कर चली गई थी, सूरजभान को अपनी मां का चेहरा भी सही से याद नहीं था, उसके बाद उसके पिता ने अपने आपको गांव के विकास में समर्पित कर दिया, सूरजभान के यूं तो बहुत सारे रिश्तेदार थे लेकिन अपना कहने को कोई नहीं था, थे तो बस हवेली में काम करने वाले कुछ सेवक जिन्होंने उसको बचपन से पाला था।
जब सूरजभान युवा था, तो उसकी आँखों में हवेली और दौलताबाद का गौरव छिपा हुआ था। वह हमेशा हवेली के बगीचे में घूमते हुए सोचता था कि इस इमारत और इस गांव ने उसके परिवार को कितनी खुशियाँ दी हैं। उसकी जवानी का हर दिन हवेली के आलीशान कमरों, बड़े-बड़े आँगनों और सुंदर बगिचों में बितता था।
सूरजभान के दोस्तों और रिश्तेदारों का आना-जाना हवेली में एक सामान्य बात थी। हवेली में बड़े आयोजन होते, जहां दौलताबाद के धनी और प्रभावशाली लोग इकट्ठे होते। सूरजभान हमेशा अपने दोस्तों के साथ हवेली के विशाल आंगन में खेलता, और जब वह इन आयोजनों में भाग लेता, तो उसे लगता कि वह किसी राजा की तरह है। उसे यह भी अच्छा लगता था कि उसके पिता रणजीत के नाम से हवेली की प्रतिष्ठा और ताकत जुड़ी हुई थी।
वह अपने पिता से बहुत प्रेरित था और हमेशा यही चाहता था कि वह भी अपने पिता की तरह इस हवेली और गांव का नेतृत्व करे। लेकिन फिर भी, सूरजभान के मन में एक अजीब सा सवाल था—यह हवेली और इसका ऐश्वर्य सिर्फ समृद्धि का प्रतीक क्यों था? क्या इसमें कोई और गहरी कहानी थी, जिसे अब तक वह नहीं समझ पाया था?
दौलताबाद का भव्य मेला
हर साल दौलताबाद में एक विशाल मेला लगता था, जो गांव की समृद्धि और ऐतिहासिक महत्व को प्रदर्शित करता था। यह मेला पूरे दो सप्ताह तक चलता था और पूरे गांव में एक नई हलचल सी मच जाती थी। हर गली, हर मोड़ पर रंग-बिरंगे झंडे लहराते, और मेले में चारों ओर खुशियों और उल्लास का माहौल होता। यहाँ आने वाले लोग दूर-दूर से आते थे, और मेला गांव के हर कोने को रंगीन बना देता था।
दौलताबाद का मेला सिर्फ व्यापार और खरीदारी का स्थान नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक था। यहाँ पर तरह-तरह के लोक नृत्य, गीत, और विशेष आयोजन होते थे। और उस दिन तो जैसे सब कुछ खास था। बाजारों में रौनक थी, सड़कों पर चलते लोग हंसी-खुशी में झूम रहे थे। बाज़ार में दूर-दूर से लोग आते थे और हर कोई इस अद्भुत उत्सव का हिस्सा बनता था।
सूरजभान और चंद्रिका की पहली मुलाकात
सूरजभान उस दिन अपने कुछ दोस्तों के साथ मेले की सैर पर निकला था। मेले में पूरी ताजगी और जीवंतता थी, लेकिन सूरजभान को कुछ अलग ही महसूस हो रहा था। जैसे कुछ छिपा हुआ था, कुछ नया जो उसकी सामान्य दिनचर्या से बाहर था। वह इस सच्चाई से अनजान था कि उस दिन उसकी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आने वाला था, जो उसे हमेशा के लिए बदल देगा।
सूरजभान की निगाहें एक लड़की पर पड़ीं, जो मेले के एक कोने में खड़ी हुई थी। वह लड़की, चंद्रिका, एक झूले पर बैठी हुई थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह कहीं दूर की सोच में खोई हुई हो। उसके चेहरे पर एक रहस्यमय मुस्कान थी, जो सूरजभान को एक खिंचाव सा महसूस करवा रही थी।
चंद्रिका की उपस्थिति में कुछ ऐसा था, जो सूरजभान को अपनी ओर आकर्षित करता था। वह न केवल सुंदर थी, बल्कि उसकी आँखों में एक गहरी सोच और शांति भी थी, जैसे वह इस मेला और इस दुनियादारी से परे किसी अन्य स्थान पर खोई हुई हो।
सूरजभान धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा, और फिर एक साहसिक कदम उठाते हुए उसने बात शुरू की:
सूरजभान : "नमस्ते, क्या आप यहाँ अकेली हैं?"
चंद्रिका ने धीरे से सिर उठाया और उसे देखा। उसकी आँखों में एक जिज्ञासा और मीठी मुस्कान थी।
चंद्रिका: "नमस्ते! नहीं, मेरे साथ कुछ दोस्त हैं, लेकिन मुझे यहाँ की हलचल से कुछ शांति चाहिए थी।"
सूरजभान थोड़ी देर चुप रहा, फिर उसने फिर से पूछा:
सूरजभान : "यह मेला बहुत खास है, है न?"
चंद्रिका ने हलके से मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, यहाँ की रौनक तो बहुत खास है, लेकिन कभी-कभी ये सब बहुत हंगामेदार लगता है। मैं थोड़ी शांति चाहती थी, बस इसी कारण यहां आई हूं।"
सूरजभान चुप रहा और उसकी बातों पर ध्यान से विचार किया। उसने देखा, चंद्रिका की आँखों में एक गहरी थाह थी, जैसे वह सिर्फ मेला ही नहीं, बल्कि कुछ और समझने की कोशिश कर रही हो। वह महसूस कर रहा था कि चंद्रिका का दिल शायद कुछ और ही कह रहा हो, लेकिन वह शब्दों में उसे व्यक्त नहीं कर रही थी।
सूरजभान : "क्या आप यहाँ पहली बार आई हैं?"
चंद्रिका ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "हाँ, पहली बार ही आई हूँ। लेकिन यह गांव मुझे बहुत आकर्षित करता है। यहाँ कुछ अलग सा है, एक रहस्य छिपा हुआ सा।"
यह सुनकर सूरजभान और भी ज्यादा आकर्षित हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे चंद्रिका का हर शब्द एक गहरी समझ को छुपाए हुए है।
सूरजभान : "क्या आप चाहें तो हम थोड़ी देर बगीचे में चल सकते हैं। वहाँ थोड़ा शांति का अनुभव किया जा सकता है।"
चंद्रिका ने उसे देखा, और फिर अपनी आँखों में एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, क्यों नहीं?"
दोनों धीरे-धीरे मेले से बाहर बढ़े और बगीचे की ओर चल पड़े। बगीचे में पहुंचकर, वहाँ की शांतिपूर्ण वातावरण ने जैसे एक नई दुनिया में प्रवेश करा दिया। दोनों के कदम धीरे-धीरे बढ़ते रहे, और सूरजभान को लगा जैसे चंद्रिका उसकी आँखों में कुछ कहने वाली हो, लेकिन वह मौन रही।
सूरजभान : "क्या आपको कभी लगता है कि इस गांव के हर कोने में एक कहानी छिपी हुई है?"
चंद्रिका ने उसकी ओर देखा, और फिर हल्के से सिर हिलाया। "शायद, सूरजभान । शायद यहाँ एक गहरी कहानी है, जिसे हम समझने से चूक जाते हैं।"
इस बात पर सूरजभान कुछ देर चुप रहा, और फिर कहा, "क्या आप जानते हैं, मुझे लगता है कि हम दोनों इस कहानी को कभी न कभी समझ पाएंगे।"
चंद्रिका ने हल्की सी मुस्कान दी और फिर बगीचे से बाहर निकलते हुए कहा, "कभी-कभी जीवन में कुछ चीज़ें हमें आसानी से नहीं मिलतीं। हमें उन्हें तलाशने की जरूरत होती है।"
सूरजभान को यह सब सुनकर ऐसा लगा जैसे वह चंद्रिका के शब्दों के भीतर एक रहस्य महसूस कर पा रहा हो। उसकी आँखें उसे कुछ और ही बताने की कोशिश कर रही थीं। वह जानता था कि यह मुलाकात सिर्फ एक सामान्य मुलाकात नहीं थी। यह कुछ विशेष था, कुछ ऐसा जो उसे हमेशा के लिए चंद्रिका के पास खींचे रखेगा।
पहली मुलाकात के बाद, सूरजभान और चंद्रिका की जीवन में एक अदृश्य तार जुड़ गया था, जो दिन-ब-दिन मजबूत होता गया। दोनों के बीच धीरे-धीरे एक गहरी समझ और संबंध का निर्माण होने लगा था। चंद्रिका की शांतिपूर्ण और रहस्यमय प्रकृति ने सूरजभान को प्रभावित किया, और वह उसे हर दिन और अधिक जानने की कोशिश करता। हालांकि, चंद्रिका हमेशा एक खामोशी में लिपटी रहती थी, उसके दिल के भाव और विचार सूरजभान के लिए पहेली बने रहते थे।
कुछ दिनों बाद, सूरजभान फिर से चंद्रिका से मिलने के लिए बगीचे में गया। उस दिन का मौसम खास था। हल्की सी ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान में बादल तैर रहे थे। सूरजभान ने चंद्रिका को वहीं बैठा हुआ देखा, जैसे वह कुछ सोच रही हो।
सूरजभान : "तुम हमेशा इतनी शांत क्यों रहती हो, चंद्रिका? क्या तुम्हारे मन में कुछ है, जो तुम मुझसे कह नहीं पा रही हो?"
चंद्रिका ने सिर उठाया और उसे देखा। उसकी आँखों में एक अनजानी सी गहराई थी।
चंद्रिका: "कभी-कभी, सूरजभान , शब्दों से ज्यादा खामोशी बहुत कुछ कह देती है। क्या तुमने कभी सोचा है कि जीवन के कई राज़ हमें अपनी चुप्पी से समझ में आते हैं?"
सूरजभान को चंद्रिका के शब्दों में एक ऐसी थाह महसूस हुई, जैसे वह किसी गहरे समुद्र में गोता लगा रहे हों। उसने महसूस किया कि चंद्रिका का मन बहुत बड़ा है, और वह केवल बाहरी दुनिया से नहीं, बल्कि अपनी अंतरात्मा से भी जुड़ी हुई है।
सूरजभान : "मुझे लगता है कि तुम्हारे अंदर एक गहरी शक्ति है, चंद्रिका। मैं तुमसे और अधिक जानना चाहता हूँ।"
चंद्रिका मुस्कुराई और हल्के से कहा, "कभी-कभी कुछ बातें बिना कहे ही समझी जाती हैं, सूरजभान ।"
इस दिन के बाद, सूरजभान और चंद्रिका की मुलाकातें और भी गहरी होती चली गईं। हर मुलाकात के साथ दोनों के दिलों में एक अनकहा प्यार पनपने लगा, लेकिन चंद्रिका अपनी सीमाओं के भीतर रहती थी, और सूरजभान उसे जानने और समझने के लिए और भी कोशिश करता।
बगीचा उन दोनों के लिए एक शरणस्थल बन चुका था, जहाँ वे बिना किसी घबराहट के एक-दूसरे से अपने दिल की बात कर सकते थे। उस दिन चाँद पूरी रात आकाश में चमक रहा था और चंद्रिका का चेहरा उस चाँद की रोशनी में और भी निखर रहा था।
सूरजभान : "चंद्रिका, मैं तुमसे कुछ बहुत जरूरी बात करना चाहता हूँ।"
चंद्रिका ने उसकी ओर देखा और धीरे से कहा, "क्या बात है, सूरजभान ?"
सूरजभान : "मुझे लगता है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ। यह एक ऐसा अहसास है, जो शब्दों से बाहर है। क्या तुम भी मुझे वैसे ही महसूस करती हो?"
चंद्रिका ने कुछ देर चुप रहकर उसकी आँखों में देखा। फिर उसने हल्की सी मुस्कान दी और कहा, "तुमने कहा तो, लेकिन मेरे मन में भी एक अनकहा सा रिश्ता पनप रहा है।"
सूरजभान का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। चंद्रिका के शब्दों में एक अनजानी सी मिठास और गहराई थी, जो उसकी आत्मा तक को छू गई थी। यह वह क्षण था, जब सूरजभान ने महसूस किया कि चंद्रिका के दिल में भी वही भावनाएँ हैं जो उसके अपने दिल में थीं।
एक दिन, सूरजभान ने चंद्रिका से फिर से बगीचे में मिलने का समय तय किया। वह इस दिन को खास बनाना चाहता था। उसने उसे शादी का प्रस्ताव देने का मन बना लिया था, क्योंकि उसे अब यह महसूस हो रहा था कि चंद्रिका के बिना उसकी ज़िन्दगी अधूरी है।
सूरजभान (गंभीर स्वर में): "चंद्रिका, तुम्हारे बिना मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी अधूरा सा लगता है। क्या तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी? क्या तुम मेरे साथ अपना भविष्य बिताना चाहोगी?"
चंद्रिका ने उसकी ओर देखा, और उसके चेहरे पर एक गहरी मुस्कान फैल गई। "तुमने यह सवाल मुझसे पूछा, और मुझे यह जवाब देने में कोई संकोच नहीं है। मैं तुमसे हमेशा के लिए जुड़ना चाहती हूँ, सूरजभान ।"
सूरजभान ने चंद्रिका के हाथों को पकड़ा और दोनों के दिलों में एक नई शुरुआत की धड़कन गूंज उठी। उस दिन, चंद्रिका और सूरजभान का प्यार और उनका रिश्ता एक नए मोड़ पर था, और दोनों ने एक-दूसरे से अपनी ज़िन्दगी साथ बिताने का वचन लिया।
कहानी अगले भाग में जारी है.....