बहुत जरूरी
आज खुशी के परिवार में बेहद ही खुशी का माहौल था। उसकी माँ तो फूले न समा रही थी। वह विद्यालय आकर सभी शिक्षकों से मिलकर उनके द्वारा किये गए सहयोग के लिए नतमस्तक हो आभार व्यक्त कर रही थी, क्योंकि उसकी बेटी शिक्षकों के निर्देशन और सहयोग से डाॅक्टर जो बन गयी थी।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। खुशी का स्कूल में दाखिला बङी ही मुश्किल से शिक्षकों के कारण हो पाया था, क्योंकि उसके पिता जी बहुत ही पुराने विचारों के थे, जो लङकी का पढ़ना-लिखना जरुरी नही समझते थे। वे कहते थे कि लङकी तो पराया धन होती है। पढ-लिख कर क्या करेगी? उसे तो दूसरे के घर जाना है। शिक्षकों के बहुत समझाने पर खुशी की पढ़ाई के लिए वे राजी हुए थे।
खुशी बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि की बालिका थी। उसने पढाई के साथ ही साथ विद्यालय की खेलकूद सहित अन्य गतिविधियों में भी भाग लिया। वह विद्यालय में लङकियों के लिए बने मंच "मीना मंच" की पावर एंजेल गर्ल थी। उसकी माँ तो उसकी पढ़ाई की शुरुआत से पक्षधर थी। धीरे-धीरे उसके पिताजी तथा दादा-दादी सभी उसकी प्रतिभा के कायल हो रहे थे। शिक्षकों के सहयोग से वह हर बाधा पार करके आगे बढ़ती गयी। आज खुशी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डाॅक्टर के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही है। उसके माता-पिता परिवार के साथ उसके शिक्षक भी गदगद हैं। उसके शिक्षक सभी को समझाने में भी सफल रहे हैं कि बहुत जरूरी है शिक्षा बालिका के लिए भी।
संस्कार सन्देश
शिक्षा जीवन का है उजियारा।
सबको मिले इसका अवसर न्यारा।।