सोनल परी
एक परी थी। उसका नाम सोनल था। वह बहुत सुंदर थी। उसके पास एक जादुई छड़ी थी। उस छड़ी से सोनल परी मनचाहा काम कर सकती थी। सोनल परी को बच्चे बहुत अच्छे लगते थे। वह बच्चो के साथ खेलती और मदद भी करती थी।
एक दिन सोनल परी उड़ते हुए एक झील के किनारे पहुँचीं। वहाँ एक अकेला बच्चा उदास बैठा हुआ था। सोनल परी उसके पास गईं। उसने बच्चे से उसका नाम व उदासी का कारण पूछा। बच्चे ने कहा “मेरा नाम नीशू है, मै अपने भाई - बहनों के साथ यहाँ आया था। वे घूमते हुए आगे निकल गए और मै पीछे रह गया। मुझे अपने घर का रास्ता भी पता नहीं है।
यह सुनकर सोनल परी ने नीशू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “तुम मेरा बाया हाथ पकड़ लो। चलो, पहले तुम्हारे भाई - बहन को ढूढेंगे। फिर तम्हारे घर चलेगे।
नीशू ने तुरंत सोनल परी का हाथ पकड़ लिया। सोनल परी नीशू को लेकर उड़ चली। कुछ दूर उड़ने पर जंगल में एक बड़े पत्थर के ऊपर नीशू के भाई - बहन बैठे हुए दिखाई दिए। वे दोनों वही उतर गए। नीशू अपने भाई - बहनों से मिलकर बहुत खुश था। वे सभी भूखे और प्यासे थे। सोनल परी ने अपनी जादुई छड़ी घूमाई। ऐसा करते ही वहां पर अनेक स्वादिष्ट पकवान जैसे - मिठाइयां, चोकलेट, फल व जूस आदि आ गए। सभी बच्चों ने छककर खाया। फिर सोनल परी के साथ छुपम - छुपाई खेलने लगे।
शाम होने लगी थी। अतः सोनल परी ने अपनी छड़ी एक बार फिर हवा में घुमाई। वहां पर एक उडनखटोला आ गया। सभी उसमें बैठ गए। परी का आदेश पाते ही उडनखटोला नीशू के घर की चल दिया। कुछ ही देर में वे घर पहुँच गए। परी ने बच्चों को घर के आंगन में उतार दिया। घर पहुँचने पर सभी बच्चे बहुत खूश थे। उन्होंने सोनल परी को धन्यवाद दिया। परी ने सभी बच्चों को उपहार में एक- एक चोकलेट दी और वहां से उड़ चली।