दो सिर वाला हारड्डा
प्राचीन समय की बात है। हारड्डा (एक अजीब - सा, बड़ा - सा पक्षी) नामक एक विचित्र पक्षी रहता था जिसके सिर दो थे किंतु घड़ एक ही था। दोनों सिर के अंदर कोई एकता नहीं थी। दो दिमाग होने की वजह से वे दो दिशाओं में सोचते थे। यदि एक दिमाग एक दिशा की ओर जाने की सोचता था तो दूसरा दूसरी दिशा की ओर जाने की सोचता था। दोनों सिर का एक - दूसरे से दुश्मनी थी। एक दिन हारड्डा भोजन की खोज के लिए निकला। उसे एक फल गिरा दिखा तो उसने चोंच मारी और बोला - वाह क्या मस्त फल है, इसको तो मैं ही बडे़ चाव से खाऊंगा! मैं भी चखकर देख लेता हूं, ऐसा कहकर उसके दूसरे सिर ने जैसे ही चोंच मार कर फल को खाना चाहा, दूसरे सिर ने उसे रोक लिया और बोला - अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर रख, इसको मैंने ढूंढा है तो इसको खाऊंगा भी मैं ही! अरे हम दोनों एक ही शरीर के दो भाग है और इसलिए खाने - पीने की चीजें तो हमें कम - से कम मिल - बांट कर खानी चाहिए। सिर बोला, खाने का मतलब सिर्फ पेट भरना ही नहीं होता है भाई। जीभ का स्वाद भी कोई चीज होती है! जीभ के स्वाद से ही तो पेट को संतुष्टि मिलती है। मैंने तेरी जीभ के स्वाद का कोई ठेका नहीं ले रखा है। पहले आराम से फल खाने दे, उसके बाद डकार आएगी, तब मजा आएगा। उसके बाद वह फल खाने लगा। अपने अपमान का बदला लेने की अब दूसरा सिर ठान चुका था। एक दिन हारड्डा भोजन की तलाश में घूम रहा था। उसे एक फल दिखा दूसरे सिर ने उस फल को उठा लिया और खाने ही वाला था कि पहला सिर जोर से चिल्लाकर बोला - अरे इस फल को मत खाना, यह जहरीला फल है , जिससे हमारी मौत हो सकती है। दूसरा सिर हंस कर बोला तू चुपचाप अपना काम देख, मैं क्या खा रहा हूं और क्या नहीं खा रहा, उससे तुम्हें क्या मतलब? भूल गया उस दिन की बात? पहले सिर ने उसको समझाने की कोशिश की किंतु वह नहीं माना और अंत में सारा फल खा लिया और हारड्डा तड़प - तड़प कर मर गया।
सीख - आपस की फूट ले डूबती है...।