राजा की समझदारी
एक दिन एक किसान अपने खेत के लिए पानी की तलाश कर रहा था, तभी उसने अपने पड़ोसी से एक कुआँ खरीदा। हालांकि पड़ोसी बहुत चालाक था। अगले दिन जैसे ही किसान अपने कुएँ से पानी खींचने आया, तो पड़ोसी ने उसे पानी लेने से मना कर दिया। जब किसान ने पूछा कि - " क्यों?" तो पड़ोसी ने जवाब दिया- “मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है, इसका पानी नहीं।” और कहकर चला गया। दु:खी होकर किसान न्याय मांगने के लिए राजा के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई।
राजा ने उस किसान के पडोसी को भी बुलवा लिया। राजा ने पड़ोसी से सवाल किया - " जब तुमने किसान को अपना कुआँ बेच दिया है तो फिर तुम किसान को कुएँ से पानी क्यों नहीं लेने देते? पड़ोसी ने जवाब दिया- "महाराज! मैंने किसान को कुआँ बेचा लेकिन उसके भीतर का पानी नहीं। उसे कुएँ से पानी खींचने का कोई अधिकार नहीं है।" राजा उस धूर्त पड़ोसी की चालाकी समझ गए। राजा उसे आदेश भी दे सकते थे, पर यह राजा का इंसाफ नहीं माना जाता।
राजा ने उस पडोसी से कहा- "देखो! जब से तुमने कुँआ बेचा है, तुम्हें किसान के कुएँ में पानी रखने का कोई अधिकार नहीं है।’ या तो तुम किसान को किराया देते रहो, या अपने पानी को तुरंत निकाल लो।" यह जानकर कि उसकी योजना विफल हो गई, पड़ोसी ने माफी माँगी। उस दिन से किसान ख़ुशी - ख़ुशी अपने खेतों को पानी देने लगा।
संस्कार संदेश :- कभी किसी के साथ धोखेबाजी नहीं करनी चाहिए।