शुभ प्रभात
कितना अपनापन लिए लगती थी प्रातः काल की वह बेला, जब सूर्योदय से पूर्व ही नित्य मेहरू का सुदूर गाँव से शुभ प्रभात सन्देश सुबह-सुबह शहर में सुरेश को मिल जाता। उसे लगता कि वह चाहे तन से शहर में है लेकिन मन से अब भी अपने उन साथियों के साथ ही गाँव में है, जिनके संग खेलकर उसका यादगार बचपन बीता था। वो लमकटिया की धार, गरुड़िया गधेरा और लुटाणी के बंजर खेत सहज ही मानस पटल पर छा जाते। जहाँ वे दोनों निश्छल दोस्त जानवर चराते हुए मस्ती किया करते। हर छ: महीने में ग्वाल देवी पूजा करते और प्रसाद रूप में बनी टिन के डिब्बे में पकायी खीर तिमुल के पत्तों में परोसकर एक साथ चाटकर खाते। लीसे के खाली गमले में घूँट-घूँट पानी पिया करते। सब सहज ही दिलो-दिमाग पर उभर आता और उन सुहानी यादों के सहारे सारा दिन शुभ-शुभ बीत जाता।
मगर कुछ समय पूर्व से मेहरू शुभ प्रभात सन्देश के साथ रूपयों की माँग करने लगा। कभी पत्नी का इलाज करने, कभी गाँव में मन्दिर की मरम्मत आदि-आदि। सुरेश उसके खाते में राशि डाल दिया करता, जिसे वह झटपट ए० टी० एम० से निकाल लेता। अब मेहरू की डिमाण्ड सुरसा के मुँह की तरह खुलने लगी। वह अब अधिक रूपयों की माँग करते हुए दोपहर-शाम हो या रात, शुभ प्रभात सन्देशों को भेजने लगा। उसके व्यवहार में हुए परिवर्तन पर सन्देह होकर सुरेश ने गाँव के नरू चाचा से मेहरू की जानकारी चाही तो उन्होंने बताया-, "अरे वो तो अब भयंकर शराबी हो गया है। लोगों को ठगकर रूपये ऐंठता है। फिर दिन-भर भुत्त हो सारे गाँव को गाली बकता है। तुम उसके झाँसे में मत आना। वो तुम्हें भी ठग लेगा।" कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया। सुरेश को काटो तो खून नहीं। वह नरू चाचा की बातें सुनकर सन्न रह गया। उधर उसके मोबाइल पर मेहरू का बार-बार शुभ प्रभात मैसेज धपधपा रहा है।
संस्कार सन्देश
हमें शराबी-कबाड़ी लोगों से सदैव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए।