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ब्लैकमेल से आत्मरक्षा

कलावत के. एल.

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ब्लैकमेल का नाम सुनते ही गहन अंधकार से काले कपड़े पहने काले पुरूष की परछाई प्रकट होती है। क्या? यह गहन अंधेरा हमारे आस-पास है। शायद हमारे पास ही है। यह अंधेरा कब प्रकट हो जाये कहा नहीं जा सकता है। अंधेरे से लड़ने हेतु प्रकाश अवश्य चाहिए। प्रकाश के रूप में चाहे छोटा सा दीपक ही क्यों न हो। अंधेरे को चीर कर रख देगा। इसी दीपक की झिलमिलाती छोटी सी लौ को इस पुस्तक के माध्यम से सुरक्षा के रूप में लेकर आये है। इस लौ में कई प्रकार की सतर्कता, सजगता, स्फूर्ति, बुद्धिमानी एवं ज्ञान का मिश्रण होगा। पुरूष और महिला ब्लैकमेल के शिकार तभी होते है जब दोनों विचारों पर अडिग नहीं रहते। जीवन भर पंूजी की तरफ दौड़ लगाते है। सजगता और सतर्कता पर ध्यान नहीं जाता है। आगे जाकर ऐसा विकट मोड़ आता है जिसका पता भी नहीं चलता और मानसिक, शारीरिक अथवा आर्थिक रूप से ब्लैकमेल के शिकार हो जाते है। भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बड़ी विकट स्थिति है। इस जंजाल से मुक्ति पाने की होड़ लगी है परन्तु कोई भी इस क्षेत्र में अनुसंधान नहीं कर रहा है। जिस प्रकार तकनीकी युग में सुविधाएं बढ़ती जा रही है उसी प्रकार तकनीकों के माध्यम से महिला, पुरूष ब्लैकमेल के शिकार हो रहे है। सम्मान, प्राइवेसी, काम, सम्पत्ति एवं धन चले जाने के भय से भावनात्मक होकर ब्लैकमेल का शिकार हो रहे है। ब्लैकमेल का शिकार होने में मुख्य कारण लापरवाही, डर एवं असतर्कता है।  

blackmel se aatmaraksha

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