अजय अकेला बैठा है और बहुत दुखी हो रहा है अपने मन की बात किससे कहें अपनी अपनी पत्नी को बार-बार याद कर रहा है और आजकल की आधुनिक बच्चों को देख रहा है कि एक पिता ने अपना पूरा जीवन अपने बच्चों के लिए लगा दिया पढ़ाया लिखाया शादी की उसके बाद भी आज बच्चे अपने घर से बाहर निकाल रहे हैं और आज मैं उनकी नजर में बेकार हूं मैं किसी काम का नहीं हूं लेकिन यह गलत है अगर ऐसे ही सब बच्चे सोचने लगे तो इस संसार में कोई पिता अपने बच्चों को पढ़ायेगा नहीं ना किसी लाइक बनाएगा. तभी बड़े वाले बेटे की बहू आ जाती है और कहती है "पिताजी क्या सोच रहे हो मेहमान आने वाले होंगे आप जल्दी से अपना बिस्तर लें और अपनी खाट को बाहर मंदिर पर ले जाएं वहां पर सो जाएं."
अजय वहां से अपना बिस्तर उठाता है और खाट को लेकर बाहर मंदिर के पास पहुंच जाता है और मंदिर पर कुछ लोग बैठे हुए हैं उनमें से एक आदमी बोलता है "अरे बाऊ जी आप अपनी खाट ले कर आ गए अच्छा किया हमारे परिवार में 1 सदस्य और बढ़ गया हम सब बैठ के बातें करके समय काट लेंगे"
अजय मुस्कुरा के रह जाता है और अपना बिस्तर अपनी खाट दे कर कहता है" आप इस पर सो जाना मैं अपने दोस्त के यहां जा रहा हूं "यह कहकर वहां से चलने लगता है और वहां से धीरे-धीरे सोचता हुआ जा रहा है. अजय सोच रहा है ऐसे जीवन जीने से तो अच्छा है मरना ही अच्छा है क्योंकि हमें अपने बच्चों की नज़र में बेकार हो गया मेरे यहां तीन कमरे थे तीनों कमरे तीनों बच्चों को दे दिया इसका मतलब मेरी उनके अब जरूरत नहीं है इसलिए मेरा मरना जरूरी है यह सोचकर जंगल जाने लगा और जंगल में चला जा रहा है. अजय बिना सोचे समझ चला जा रहा है अजय दिल से अपनी पत्नी को बहुत याद कर रहा है बहुत याद आ रही है "आज मेरी सरिता जिंदा होती तो शायद मेरी स्थिति ना होती"