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चार दिन की ज़िंदगी

19 नवम्बर 2021

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      माना   चार   दिन   की    है...ज़िन्दगी
      इसे    हंसकर  ...बिताना   है

चाहे    किसी   भी ....बड़ी   समस्या   आये
उसका    हल .... खोजकर   निकालना   है

      खोजकर  अपने जीवन  को  और बेहतर बनाना है
      इसे   रोकर  नही , हंसकर , गाकर , मुस्कुराकर
       बिताना  है 

आसान  नहीं   कुछ भी  जीवन मे...
हों   भले   ही....कितनी  भी उलझनें

       फिर   भी   इसे   आसान  बनाना   है
       इसे    सुलझाते   रहना   है

इसे   गुलाब   नही  ,   कमल  का फूल बनाना  है
इसे    गुलाब नहीं  ,    कमल  का  फूल  बनाना है

   स्वरचित मौलिक रचना   अनीता   अरोड़ा

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