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मीठी यादें

22 नवम्बर 2021

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मेरे   घर  के सामने  ही  एक  बहुत  बड़ा सा ग्राउंड  था
जहां   पर  रामलीला...हुआ  करती थी... हर साल ।
        उन दिनो  हमारा  नया घर बन रहा था और हम
लोग उसी मैदान के सामने ही... एक कमरा लेकर रहने
लग गए थे...उसका कारण  पापा जी के ऑफिस से ये घर  पास पड़ता था।   अतः  परेशानी से बचने के लिए
यहीं पर  आकर  रहने लग गए थे ।
       पापाजी  ऑफिस  चले जाते ... मम्मी पीछे से मजदूरों  से  घर बनवाती ।
     इधर   रामलीला  निकट  आ गई थी और उसकी तैयारियां भी  ज़ोर  पकड़ रही थीं ।  किसी को राम , किसी को रावण ,  सीता माता   सभी किरदारो का चुनाव हो चुका था... बाकी रह गया था तो केवल सूर्पनखा का... और वो  कोई करने के लिए तैयार न था।    शायद  इसी  वजह से ही वो मेरे हिस्से में आ गया था... लेकिन मैंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया था।इसका कारण मुझे ऐसे क्रियाकलापों में बहुत मजा आता  था जबकि मैं बेहद शर्मीली , चुप्पी सी स्वभाव की  थी ।  
      खैर... प्रैक्टिस  होने लगी रोज  अब वो भी दिन आ गया जिसने रामलीला होनी थी ।  शाम हो गई... सभी किरदारों ने अपने अपने कॉस्टयूम पहन लिए ..  मैने भी
         मुझे  नाक के आगे .. काले रंग की छोटी सी टोपी पहना दी गई.. आप लोगो को पढ़कर बहुत हंसी आ रही है...चलिए हंस लीजिए... बात भी हंसी की है
तो हां.. दोस्तो.. मैं कह रही थीं कि मुझे वैसे नाक में पहनकर और साड़ी बांधकर अपनी छोटी सी नाक को
पकड़कर  नीचे की तरफ झटकते हुए उस ग्राउंड के चारो ओर  गोल चक्कर काटते हुए ..एक्शन के साथ साथ  बोलते हुए.. हाय कटगई. ..., हाय  कट गई   बस   ऐसे   ही   बोलते बोलते  रावण के पास जाना था ।  
        फिर   क्या ... चक्कर  काटते हुए  मैने वैसा ही किया... बोलते हुए.. हाय कट गई.. हाय  कट गई...
बस   इसी प्रकार मैने अपना किरदार निभाया ।  किरदार  भले ही छोटा था... मगर जानदार था ।  सबको पसंद भी आया ।  जिन्होंने उसे अस्वीकार किया था.. उन्हे  अफसोस भी हुआ ।
         आज भी  घर.... कोई बात छिड़ती है... तो सब मुझे   छेड़ते है... हाय कट गई.... हाय कट गई ... बस फिर   क्या.... मैं भी   आगे से मुस्कुरा पड़ती हूं ।

स्वरचित मौलिक रचना.. अनीता अरोड़ा

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