जब वाक्युद्ध हो रहा था ,
अपशब्दों का बाज़ार गर्म था ,
हर तरफ़ बस शोर ही शोर था ,
ऐसे में दिल पर काबू रखना बहुत मुश्किल था ,
एक दूसरे को नीचा दिखाना ही उद्देश्य था ,
आज एक अकेली औरत की इज्ज़त की धज्जियाँ
जो उड़ाई जा रही थीं ।
कुछ देर वाक्युद्ध चलता रहा । सब मिलकर एक
अकेली औरत को व्यंग्यरूपी नश्तर से चुभो चुभोकर
घायल करने की कोशिश कर रहे थे ।
वो अकेली ज़रूर थी पर बेचारी न थी ।
वो तो एक सबला नारी थी , वो मन ही मन हॅंस
रही थी उन लोगों पर....
आज उसे दुनिया ने अपना असली चेहरा दिखा दिया था पर वह तो एक शिला थी जो
तटस्थ रहती है....अपने स्थान पर ।
कुछ देर बाद भीड़ छॅंट गई थी ... इधर उधर
लेकिन शिला तो अपनी जगह पर ही रहती है....
तटस्थ सी । दुनिया ने आज उसे गमों में भी खुश
रहना सिखा दिया था.।
उसका मन बिलकुल शांत था । उसे तो अपना तन भी स्वस्थ रखना था और मन भी । आज वो सबसे जीत गई थी क्योंकि आज उसे जीने की कला जो आ गई थी ।
वो ज़ोर ज़ोर से खिलखिला रही थी , उसकी
खिलखिलाहट की गूॅंज चहुॅं ओर गूॅंज रही थी ।
लेकिन जो भीड़ थी .... वो बहुत ही अशाॅंत
थी ।
स्वरचित मौलिक रचना .. अनीता अरोड़ा
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