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जब वाक्युद्ध हो रहा था

6 दिसम्बर 2021

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जब   वाक्युद्ध   हो रहा   था ,
अपशब्दों   का   बाज़ार   गर्म   था ,
       हर   तरफ़  बस   शोर   ही   शोर  था ,
ऐसे   में   दिल पर  काबू  रखना  बहुत  मुश्किल था ,
एक   दूसरे  को   नीचा  दिखाना  ही  उद्देश्य  था ,
     आज एक अकेली औरत की इज्ज़त की धज्जियाँ
जो  उड़ाई   जा   रही   थीं ।   
   कुछ   देर  वाक्युद्ध  चलता रहा ।  सब मिलकर एक
अकेली  औरत  को व्यंग्यरूपी  नश्तर  से चुभो चुभोकर
घायल  करने  की कोशिश कर रहे थे ।
        वो    अकेली  ज़रूर   थी  पर  बेचारी  न  थी ।
वो  तो  एक सबला  नारी थी  ,  वो   मन  ही मन  हॅंस
रही  थी उन  लोगों  पर....
       आज   उसे   दुनिया  ने   अपना असली चेहरा दिखा  दिया  था  पर  वह  तो  एक  शिला  थी   जो
तटस्थ  रहती   है....अपने  स्थान  पर ।
    कुछ   देर   बाद  भीड़  छॅंट  गई  थी  ... इधर  उधर
लेकिन   शिला   तो अपनी  जगह  पर  ही रहती है....
तटस्थ  सी ।  दुनिया  ने  आज उसे  गमों  में  भी  खुश
रहना   सिखा   दिया  था.।
          उसका   मन   बिलकुल  शांत  था ।  उसे तो अपना  तन भी  स्वस्थ  रखना  था और मन  भी । आज वो   सबसे   जीत  गई थी क्योंकि  आज उसे  जीने की कला  जो  आ गई थी ।
         वो ज़ोर ज़ोर से  खिलखिला  रही   थी ,  उसकी
खिलखिलाहट  की  गूॅंज चहुॅं ओर  गूॅंज   रही  थी ।
      लेकिन   जो   भीड़   थी  .... वो   बहुत  ही अशाॅंत
थी  ।


स्वरचित मौलिक रचना   .. अनीता अरोड़ा
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