लाड़ली बेचकर सौदागरों के हाथों ,
बड़ी भूल की पिताओं ने,
रोये पछताये बड़े ,
धुँधले किये जब उनके नेत्र ,
जलती हुई चिताओं ने,
हाय सताकर कलेजे के टुकड़े को ,
कलेजा मुँह को आया ,
देकर जन्म अभागिन कन्या को ,
माता ने बड़ा कष्ट पाया ,
करूँ विवाह अथवा न करूँ ,
सोचकर यह मन सहमाया ,
कुँवारी कन्या घर में बैठे ,
यह भी तो न सहन हो पाया ,
लाड़ से पली , स्नेह पिता के घर पाया
बड़ी हुई , अभागिन हुई
जो गयी ससुराल
तो दुर्भाग्य पाया,
नश्तर चुभो चुभोकर सास ने जब
बहू को लेने घर भेज
गरीब माँ बाप के घर जाकर जब बेटी ने हाथ फैलाया
धन से लाचार होकर जब उन्होंने बेटी को वापिस
लौटाया
बनकर अँधेरा जब हुआ सवेरा उनका
जब लाडली के संस्कार का संदेश पाया
फट गया हृदय माँ का तब ,
जब बच्ची का धुँआ सामने आया ,
जाने के थे हमारे दिन ,
यह क्या किया तूने भगवन ,
बहुत बेबस व्याकुल है मन ,
बस यही कह पाया ,
कितना कष्ट दिया परायी बेटी को ,
पर हाय...धन के लोभियों को चैन न आया ,
अब तो धन भी गया हाथ से ,
यह सोच लोभी मन पछताया ,
प्रज्वलित चिताएं राख हुईं
पर किसी को रहम न आया
पूर्व जन्मों के कर्मों का है फल
बस यही इंसान कह पाया
जाने कब शमशान घाट रिक्त होगा ,
जाने कब होगा सवेरा इनका ,
सोचती हूँ...अँधियारा मिटेगा तब ,
जब ज़ुबां पर उनकी नाम दहेज का न होगा
स्वरचित मैलिक अनीता अरोड़ा