जब वक्त आए कुछ ऐसा ,
लोग उठाने लगें उंगलियां ,
तो शिकायत मत करना किसी से ,
बस देखना व्योम में और मुस्कुराना ,
धन्यवाद करना उसका ,
सफलता की तरफ बढ़ता पहला कदम ,
जब हंसे दुनिया तुम पर ,
तो शर्मिंदा मत होना खुद पर ,
बस मंद मंद मुस्कुराना और ,
गाते रहना ,
लोग नीचा दिखाएंगे , ताने भी कसेंगे ,
न रोना , न ही आंसू लाना ,
अपने कोमल नैनों में ,
बस चुपचाप पी जाना ,
एक हलाहल को शिव की भांति ,
जब कट जाएं लोग तुमसे ,
तो मलाल न लाना अपने हृदय में ,
क्योंकि कुछ लोगों का बात न ही करना बेहतर ,
कोई उखाड़ना चाहे तुम्हें जड़ से ,
बस अपने पैर जमाए रखना ,
तटस्थ रहना धरती पर ,
एक शिला की भांति ,
लोग बिछाएंगे कांटे राहों में तुम्हारी ,
मगर तुम अपना रास्ता बदल लेना ,
रुकना नहीं बस चलते जाना मंजिल पर अपनी ,
तुम्हें पत्थर भी पड़ेंगे मगर ...जख्मों पर ,
मलहम अपनी बस मुस्कान के लगाते जाना ,
गिराना भी चाहेंगे लोग तुम्हें ,
सबकी निगाहों में ,
बस तुम अपनी नज़रों से गिरना नहीं ,
स्वयं को और उठाते जाना ,
तुम्हें दाग़दार करे भले ही कोई ,
चांद से पूछ लेना उसकी मुस्कुराहट का राज़ ,
दाग़ तो तुझमें भी मगर मुस्कुराता क्यों है ...?
आज वक्त उनका तो कल तुम्हारा ,
होने वाला है ,
बस अपने होठों की मुस्कान को ,
कभी भी न छोड़ना ,
सवाल उठेंगे बहुत मगर खामोश रहना ,
बस मनोबल व आत्मविश्वास को अपने ,
और बढ़ा लेना ,
कुछ बातों के जवाब देना जरूरी नहीं होता ,
उन्हें वक्त पर ही छोड़ देना चाहिए ,
वो खुद ही जवाब दे देगा ,
जब तुम ऊंचाईयां छू रहे होगे ,
तुम्हारा कद भी ऊंचा हो जायेगा ,
और दुनिया को जवाब मिल जायेगा ,
बस उसी पल का तो इंतज़ार करना है ,
तुम्हें तब तक कमल की भांति ,
निर्लेेप रहना है ,
तुम्हें तब तक कमल की भांति ,
निर्लेप रहना है ।।
स्वरचित मौलिक रचना
अनीता अरोड़ा