आज भी सीता हैं.......धरती पर
जो देती हैं.........अग्नि परीक्षा
एक बार नहीं.....वो तो ताउम्र देती हैं...
अग्नि परीक्षा
वो धरती में नहीं समाती
ना ही करती हैं.......वो आत्मदाह
वो तो करती हैं मुकाबला
जीवन के संघर्ष का
अकेले ही झुलसती हैं....अंगारों से
तब भी वो मुस्कुराती हैं
अंगारों से तपकर अग्नि से निकलना
वो तो बनती हैं....तपा खरा सोना
सीता ने तो काटा १४ वर्ष वनवास
आज की सीता तो काटती है..ताउम्र वनवास
आज ना राम उसके साथ , ना लक्ष्मण
बस है....तो केवल उसका मनोबल और आत्मविश्वास
आज रक्षक नहीं उसके आस पास
मंडराते हैं.... भक्षक उसके आस पास
सभी से वो अपनी अस्मिता को बचाती है
आज भी सीता हैं....धरती पर
जो देती हैं.... अग्नि परीक्षा
एक बार नहीं....वो तो ताउम्र देती है
. अग्नि परीक्षा
एक बार नहीं....वो तो ताउम्र देती
हैं.....अग्नि परीक्षा
स्वरचित मौलिक रचना...अनीता अरोड़ा