सिस्कियों को ऐसे ही सिसकने दो ,
इनका तो काम ही है सिसकना ,
जब दर्द उभरे तो मुख से उजागर करना,
क्योंकि ये सिसकियां हैं.. जनाब,
इनका तो काम ही हैं.... सिसकना,
अति दर्द होने पर उजागर होना,
दर्द के बिना ये कभी न रोये,
दर्द बढे तो ये भी बढ़ जाये,
अपनी आवाज़ सुना सुनाकर और जोर से रोये,
इन्हें तो बड़ा ही मुश्किल है,
काबू में रखना,
जब आंसू आये आंखों में ,
तभी है इनका आना ,
आंसुओं के बगैर तो इनका नहीं ठिकाना,
जब कोई सताये, मन दुखाये,
तो इनका आना तय है,
क्योंकि ये सिसकियां हैं.... जनाब ,
बस इन्हें ऐसे ही सिसकने दो,
बस इन्हें ऐसे ही रो लेने दो।।
स्वरचित मौलिक रचना अनीता अरोड़ा