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छठ पर्व

31 अक्टूबर 2022

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आस्था का महान पर्व छठ  ....

    जब विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की स्त्रियां अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ सज-धज कर अपने आँचल में फल ले कर निकलती हैं तो लगता है जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो, "देखो! तुम्हारे असँख्य झंझावातों को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है, हम सनातन हैं, हम भारत हैं। हम तबसे हैं जबसे तुम हो, और जब तक तुम रहोगे तब तक हम भी रहेंगे।"
      
  छठ के दिन नाक से माथे तक सिंदूर लगा कर घाट पर बैठी स्त्री अपनी हजारों पीढ़ी की अजिया सास ननिया सास की छाया में होती है, बल्कि वह उन्ही का स्वरूप होती है। उसके दउरे में केवल फल नहीं होते, समूची प्रकृति होती है। वह एक सामान्य स्त्री सी नहीं, अन्नपूर्णा सी दिखाई देती है। ध्यान से देखिये! आपको उनमें कौशल्या दिखेंगी, उनमें मैत्रेयी दिखेगी, उनमें सीता दिखेगी, उनमें अनुसुइया दिखेगी, सावित्री दिखेगी... उनमें पद्मावती दिखेगी, उनमें लक्ष्मीबाई दिखेगी, उनमें भारत माता दिखेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके आँचल में बंध कर ही यह सभ्यता अगले हजारों वर्षों का सफर तय कर लेगी।
   
      मेरे देश की माताओं! जब आदित्य आपकी सिपुलि में उतरें, तो उनसे कहिएगा कि इस देश, इस संस्कृति पर अपनी कृपा बनाये रखें, ताकि हजारों वर्ष बाद भी हमारी पुत्रवधुएँ यूँ ही सज-धज कर गंगा के जल में खड़ी हों और कहें- "उगs हो सुरुज देव, भइले अरघ के बेर..."
जय हो....

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सशक्त लेखन शैली बेहद खूबसूरत 👌 आप मेरी कहानी पढ़कर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

12 अगस्त 2023

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