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घर वापसी

14 अक्टूबर 2022

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विक्रम लालजी उपाध्याय की जय हो !
‘ धरती का लाल! ऊँचा है भाल! हमारा अपना विक्रम लाल! ‘
‘जीत उसी की होती है, पीछे जिसके जनता होती है ‘
‘ जिसकी झोली खाली है, वोट उसी में भारी है ’
‘साबित कर दिखलाया है, पैसा पटकी खाया है, पटरी वाला आया है ‘
सड़क पर ड्रम और ढोल बजाते नौजवान–बच्चे, गली–गली में घूम रहे थेI लालजी को उन्होंने कंधे पर उठा रखा थाI करने के लिए सबके पास बहुत बातें थीं, बेलगाम जुबान थी और खुले पंख उड़ान थी, किसी के लिए जीत, जाति समीकरण की थी, तो किसी के लिए दलील थी, कि दलित दल ने ब्राह्मण को प्रत्याशी बनाया था, कोई मान रहे थे कि जीत अमीर के विरुद्ध गरीब की थी, जीत नेता के विरुद्ध आम आदमी की थीI शायद इसी कारण आम आदमी में उत्साह ज्यादा था, लालजी के जीतने से ज्यादा, भ्रष्ट नेता मैकू मोहन को हारने का थाI जीत उतने मायने नहीं रख रही थी जितनी मैकू मोहन की हार मायने रख रही थी ,विक्रम लाल क्या करेंगे, मुद्दा नही था, उनहोंने कोई राजनैतिक वादा किसी से किया ही नही था, लेकिन मैकू मोहन अब नुकसान नहीं पहुँचा पाएँगे, दबंगई नही कर पाएँगे, ये खुशी लोगों में समाये नहीं सम रही थीI ये चुनाव राजनैतिक ताकतों के बीच नहीं थाI
सब खुश थे लेकिन सबसे ज्यादा कोई खुश थे तो विनायक भईया-सेजल भाभी, जिनको गाँव वाले ठीक से जानते भी नहीं थे, जानते कैसे, वे न तो लालजी के रिश्तेदार थे, न उस गाँव के रहने वाले थे, बस प्रेम पगे, जिनकी कोशिश और सहयोग से लालजी अपने गाव पंद्रह साल बाद लौटे थेI
विनायक भैया–भाभी की मुलाक़ात लालजी से मुंबई में हुई थीI विनायक भैय्या के लिए जो टैक्सी आयी थी, उसके मालिक–ड्राइवर विक्रम लालजी थेI लालजी की टैक्सी जो एक बार आयी, तो फिर दूसरी कोई टैक्सी विनायक भैया ने मंगाई ही नहींI पूरे मुंबई भ्रमण के दौरान बस लालजी उनके साथ रहेI लालजी उनके जिले गोंडा के पास के ही गाँव के तो थेI टैक्सी को देखकर पहली बार तो भाभी ने एकबार मना कर दिया, काफी पुरानी थी, रख-रखाव अच्छा नहीं था, सीट कवर बस मैले से थोड़े ही बेहतर थे लेकिन लाल जी के व्यवहार ने उस कमी पर धूल डाल दीI वो टैक्सी उन्हें बी.एम्.डब्ल्यू का मजा देने लगीI मुंबई देखने से ज्यादा मजा उन्हें मुंबई वालों की बातें सुनने में आने लगा, लालजी ने उन्हें मुंबई दिखाया ही नहीं, वहाँ के लोगों से मानों मिला भी दियाI लालजी के साथ बैठना लगता ,, टैक्सी में नहीं थियेटर में बैठ कर, मुंबई की पटरी किनारे की जिन्दगी की किस्सागोई सुन रहे होंI
“ पेट यहाँ भरता हो या न भरता हो, लेकिन भूखे पेट यहाँ कोई नही मरता साब जी ! मुंबई मजदूरों का शरणगाह हैI रोजी–रोटी के लिए यू.पी. ,बिहार, मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र, देश भर के मजदूर मुंबई भर में फैले हैं, जहाँ रहने के लिए इंच–इंच जमीन की किल्लत है, वहाँ लाखों की संख्या में लोग, चूहों की तरह कहाँ बिल में समा जाते हैं, कोई नही समझ सकताI लालजी बताते, अपने गाँव से ऐसे ही आये थे, न ठौर न ठिकाना, बस गाड़ी चलाने का लाइसेंस था और दो जोडी कपड़ेI गाँव का रिश्ते का एक भाई आ रहा था, उसने भरोसा दिया, मुम्बई का भरोसा सबसे भरोसे वाला हैI भरोसे पर लोग बिना कागज की लिखा-पढ़ी के कैसा भी भरोसा कर लेते हैंI लाल जी कहते, अपने गाँव से दूर, बस ये अपने लोग ही तो अपने होते हैं, बाक़ी तो माया नगरी है, साब, मेरे गाड़ी में बैठने वाले हर कस्टमर ने भी मुझ पर कम भरोसा नहीं किया, और उसी की बदौलत आज यहाँ हूँ और हिम्मत करके ये टैक्सी लोन पर उठा लीI भाई की खोली में बराबर की साझेदारी थी, चारपाई बस एक ही है, गुजर बसर हो जाती है, दूसरी चारपाई की खोली में जगह भी कहाँ है... सबके पास अपना–अपना बाथरूम है ... मेरा मुँह खुला था, हमारे चेहरे को पढ़कर हा ..हा .. हा.. हँसने लगा, ‘ सरजी सोच रहे होंगे, चारपाई अपनी है नही, बाथरूम कहाँ से आ गया, सर जी जो हैण्ड पाइप पे नहाता है, वो जगह उतनी देर उसी की तो हो जाती है, वो नहायेगा तो कोई दूसरा थोड़ी आयेगा ,कपडे पूरे भी उतारलो कोई देखेगा भी नही आँख उठाकर, चौबीसों घंटे का बाथरूम है, सबके अपने–अपने समय हैंI घर-परिवार है, सब मिल–जुल कर ही रह सकते हैं ‘ लाल जी हमारा चेहरा देख कर फिर जोर से हँस पड़ा, ’ साब जी सोच रहे होंगे ,साझे की खोली, साझे कि चारपाई, ये परिवार कहाँ से आ गया, साब जी जब वो घरवाली को लाता है, तो मै बाहर सोता हूँ और आज कल मेरी घरवाली आई है तो वो बाहर सोता हैI सालों साल निकाल दिए, कितनी सुविधा व्यवस्था हैI एक घरवाली यहाँ होती है तो दूसरे भाई की घरवाली वहां गाँव में दोनों के बच्चों को संभालती है ..अब तक लालजी की कहानी काफी कुछ समझ आ गई थी मैंने पूछ ही लिया फिर ये टैक्सी तुमने शो रूम से नयी उठाई है तो इतनी खराब कैसे हो गई, लालजी कुछ मायूस थे, बोले, साहब बहुत शर्मिंदगी है मैं माफी चाहता हूँ, ‘अरे भई ! ऐसा कुछ नहीं है, हमने तो ऐसे ही पूछा, क्यों कि तुमने बताया नई गाड़ी है, लाल जी बोले, बस साब कुछ ऐसा हो ही गयाI रोजी–रोटी के लिए यहाँ पड़े हैं, लेकिन जब छुट्टियों में गाँव जाता, मन करता है कि अपने गाँव वापस आ जाएँ, कितना कुछ गाँव वालों के लिए कर सकते हैं, लेकिन करेंगे क्या गाँव में, नौकरी कौन देगा, घर –परिवार कैसे पालेंगे ? मन मारकर हर बार पेट पालने वापस आ जातेI
गाँव में मेरी यारी–दोस्ती बहुत है, पहचान भी अच्छी है, गाँव प्रधान के चुनाव थे ,सबने बहुत हिम्मत दी, नेताजी साथ थे, दलित दल से टिकट मिल गया, सोचा अगर एक बार चुनाव जीत गए, तो बस ठिकाना हो जाएगाI साहब कान पकड़ते हैं बस वो पहली और आखिरी भूल थी! चुनाव में बाहुबल कैसे-कैसे हथकंडे अपनाता है, उसके बाबजूद कुल बारह वोटों से हारा, जबकि दबंगई में सब तरह की गुण्डागर्दी हुईI चार लाख रु का कर्ज हो गया, तीस हजार प्रति माह गाड़ी का लोन अलग से, चुनाव के लिए गाड़ी यहाँ से चलाकर ले गया था और चुनाव में उसका बुरा हाल तो होना ही थाI
खाली गाड़ी लाना था तो घरवाली और दो महीने के बेटे को भी साथ ले आया ऐसा लगता है, यहाँ जिन्दगी ख़त्म हो जाती है लेकिन समस्याएँ ख़त्म नहीं होतींI बच्चा थोडा बीमार तो था, लेकिन यहाँ वो तबियत और बिगडती गई, उसे अस्पताल में भर्ती किया, डॉक्टर ने बताया उसे निमोनिया हो गया, उसे काँच के बन्द बक्से में रख कर आक्सीज़न देते थे, छह हजाररूपये रोज का खर्चा, दवा–दारु डाक्टर की फीस अलग, एक लाख से ऊपर रुपया लग गया, शुकर है बेटा बच गयाI बस अब गाड़ी को सर्विसिंग के लिए अगले हफ्ते लेकर जाना है, यात्रा ख़त्म हो जाती ,लेकिन लाल जी की कहानी छूट ही जातीI
सजल की तो आँखों में हर बार जल भर आता था, मुंबई तो छूट गया, लेकिन लालजी यादों से नही छूटेI कितने लालजी इस मुम्बई में ऐसे ही सपनों के साथ गुमनामी के अँधेरे में सो जाते होंगे ..
विनायक भैया को बस एक धुन थी, भले ही लाल जी ने चुनाव से तौबा की हो ,कान पकडे हों, लेकिन लालजी को उनके गाँव वापस जरूर लायेंगेI लालजी में छुपे नेता को बाहर तो लाना हैI आज उनका सपना पूरा हो गयाI पूरा चुनाव विनायक भैय्या ने सम्भाला थाI
लाल जी को चुनाव में वापस लाना आसान नहीं थाI विनायक भैय्या को समझाने में समय लगा, लेकिन समझ गए की टैक्सी चलानी है या गाड़ी ही चलानी है तो अपनी सड़कें कौन बुरी हैं, अरे खोली –किराया और मुंबई की महँगाई से पीछा छूटेगा, घर तो वहाँ कभी बन नही सकता तो फिर चार पैसे कम, अपने घर में क्या बुरे हैं अब उनके पास खोने के लिए कुछ नही था, कोई जोखिम उठाने की हिम्मत पहले ही टूट चुकी थी, फिर भी विनायक भैया पर उन्होंने भरोसा किया .लाल जी को उन्होंने अपने नेता मित्र की गाड़ी का ड्राइवर–कम –बौडी गार्ड बनवा दिया थाI लालजी वो लोग थे, जो एक बार जिसके हो लिए, जिन्दगी भर साथ देंगे ,जान पर खेलने की हिम्मत न होती तो क्यों सब कुछ दाँव पर लगातेI ऐसे हौसले टूटने के लिए नहीं होते, बस यही बात विनायक भैय्या ने समझ ली थीI नौकरी–वेतन से जब घर की रोजी–रोटी सुरक्षित हो गई, फिर लाल जी के क्या कहनेI नेताजी का ड्राइवर क्या मामूली बात हैI उसके बाद का संभालना तो लालजी को आता था, अब भाई बंदी की क्या कमी थी, छोटे–मोटे काम तो खुद ही करा लेते थेI टैक्सी को सरकारी दफ्तर के साथ अटैच करा लिया था, सो लोन की समस्या भी सुलझ गईI लाल जी को ईमानदारी कि इतनी मिल गई थी कि उन्हें अपने लोगों से बेईमानी करने की जरूरत नहीं थी, और वही उनकी ताकत बन गई I मैकू मोहन को काटने की तलवार बन गईI
नेता जी के लिए ये बाहुबल प्रदर्शन था, गाँव के लोगों के लिए आम आदमी की विजय थी, लाल जी और विनायक भैय्या–भाभी खुश थे कि लाल जी की घर वापसी हो गई थीI लाल जी का घर वापसी का सपना पूरा हो चुका थाI
समिधा–समाधि
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रचनाएँ
सास का बेटा
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कहानी संग्रह सास का बेटा, 15 कहानियों का संग्रह है। जीवन की आपाधापी, तो कुछ जीवन के कडुवे सच की कहानियाँ हैं। कहीं हौसले की उड़ान तो कहीं रोजी-रोटी के लिए महानगरों में बसी आबादी की घर वापसी की आस, खोये हुए गुफ्रान की घर की तलाश, रिश्तों के मनोविज्ञान, कोरोना की मार, पैर से ज्यादा पहला जूता पहनने की ख़ुशी, अनब्याहे वैधव्य की लम्बी यात्रा, तो विवाह के नाम पर वेश्यावृत्ति में फँसी एक बेटी की कहानी है, बिना माँ बाप की बच्ची के लालची काका, मां से अधिक प्यार देने वाली रानी साहिबा, संस्कार के नाम पर मृत देह का अपमान, देहदान की रोचक कहानी मनोरंजन के साथ अपनी संवेदनाओं से ये कहानियाँ अपनी सहज-भाषा में न केवल पढने की भूख को संतुष्ट करती हैं, बल्कि बाहर के सच से बहुत कुछ रूबरू करातीं हैं, हर कहानी के किरदार, अपने से लगते हैं, कहानी तो ख़त्म हो जाती है, लेकिन अन्दर बहुत कुछ मथ के जाती है।
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आभार

14 अक्टूबर 2022
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आभार स्वभाव की बहुत प्राकृतिक एवम व्याव्हारिक प्रतिक्रिया हैI शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावात्मक, भौतिक छोटी–बड़ी जरूरतों के लिए आँख खुलने से लेकर बंद होने तक, जीवन की पहली साँस लेने से लेकर अन्तिम साँ

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प्राक्कथन

14 अक्टूबर 2022
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कहानी कहते ही नानी याद आ जाती हैं, लेकिन कहानी तो दादी भी सुनाती हैं! ‘नानी’ शायद तुकबंदी के कारण चलती रहीI ये तो कोई तुक नहीं है, तुक हो या बेतुक, कुछ न कुछ बात तो कह कर जाती है, कुछ भी कहती है तो ब

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सास का बेटा

14 अक्टूबर 2022
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आज का दिन भी निकल गया ..कल तो शायद अजीत की चिठ्ठी आनी चाहिए ,चिट्ठी आये भी कैसे ? दस दिन से तो पोस्टल विभाग की हड़ताल चल रही है, डाकखाने में तो चिट्ठियों के अम्बार लगे होंगे, किसे समय हैं जो उन्हें निप

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ट्रेन फिर मिलेगी

14 अक्टूबर 2022
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जुहू बीच [समुद्र का रेतीला तट ] भोर की रश्मि ,तेजी से तट की ओर आती हुई समुद्र की लहरों का उफान। कितने उत्साह से न जाने कितने सपने संजोये अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ती सी नजर आती हैं, तट से मिलने की एक आस।

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घर वापसी

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विक्रम लालजी उपाध्याय की जय हो ! ‘ धरती का लाल! ऊँचा है भाल! हमारा अपना विक्रम लाल! ‘ ‘जीत उसी की होती है, पीछे जिसके जनता होती है ‘ ‘ जिसकी झोली खाली है, वोट उसी में भारी है ’ ‘साबित कर दिखलाया है,

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समिधा–समाधि

14 अक्टूबर 2022
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अभी बस फ्लाईट लैंड ही कर रही थी. जहाज के फैले पंख सिमट रहे थे ,पहिये जमीन पर उतर रहे थे ,घडघडाते हुए ,जमीन को छूते हुए अपने पैरों को जमीन पर जमाया ,और मोबाइल खनखनाने लगे . बेसब्री स्वभावगत है .चाहे दो

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देहदान

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“ तुम मुझे बता तो दो, की चाह्ते क्या हो ? अरे! इस गरीब को यहाँ क्यों लाये हो?हमें क्या समझकर लाये हो? क्या मेरा अपहरण किया है? मेरा अपहरण कोई क्यों करेगा?” “चुप कर औरत! तेरी बकवास सुनने के लिए यहाँ

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पगार की बेटी

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ललिता हमें बंगलौर में मिली थी। डायमंड डिस्ट्रिक्ट सोसायटी में बेटी रचना के पास गई थी। मेट्रो सिटी की ये सोसायटी अपने आप में एक पूरा शहर होती हैं। दो हजार फ्लैट, आठ ब्लॉक, २५ से ३० मंजिलें, हर मंजिल

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पहला जूता

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बाटा की दूकान में अन्दर घुसते ही, हैरानी में सात साल के सुल्लू की गोल–गोल आँखें और गोल हो रहीं थी, ” इतने सारे जूते! चप्पल ही चप्पल! बाप रे बाप! मैडम ! कितने जूते-चप्पल हैं इस दूकान में, हमने तो अपनी

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अनब्याहा वैधव्य

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जमीन पर बिछी सफ़ेद चादर पर शान्त, निर्जीव सोया बुआ का शरीर हिम शिला सा लग रहा था मानों गंगा की प्रस्तर मूर्ति मंदिर में प्रतिष्ठित कर रखी थीI चारो ओर अगरबत्तियाँ जल रहीं थींI. सन से सफेद बाल, सफ़ेद मर्

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रिश्तों के गणित

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‘ मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो मुझे विवेक के साथ जाने दो ! सुमेध ! तुम्हारा तो विवेक ने कुछ नहीं बिगाड़ा था, तुम तो हम लोगों को इतना प्यार करते हो? तुम क्यों विवेक के पास जाने से रोक रहे हो? मुझे---------

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अधूरे पूरे नाम

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कभी–कभी सर्दी के मौसम में मनचाही धूप भी कितनी बोझिल हो जाती है! कैसा विरोधाभास है, चाहय वस्तु ग्राह्य नही हो पातीI बोझ भरे नौकरी के दायित्व के लिए कितनी बार ऐसे हॉलि डे ब्रेक को चाहा था, लेकिन आज जब

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अभिशप्त नंबर तेरह

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आज उसका वार्ड बदला जा रहा थाI स्ट्रेचर पे लेट हुए रोगी की विवशता भी कितनी असाध्य होती हैI जिसकी जिन्दगी पिछले पाँच माह से एक पलंग के आसपास सीमित हैI उसे क्या फर्क पड़ता है कि वो किस वार्ड में शिफ्ट

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इस ब्याही से कुँआरी भली थी

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दीदी शादी के बाद पहली बार घर आ गई थीI औरों का नहीं मालूम, मैं सबसे ज्यादा खुश थीIदीदी के गले में बाँह डालकर लटक गई “ आप अब कितने दिन बाद जाओगी?” दीदी ने कुछ जबाब नहीं दिया, मुझे लगा मैंने कुछ गलत बोल

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छूटे हुए छोर

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मीनल सड़क के इस पार कार में अकेली बैठी है और उस पार शवदाह गृह में मयंक और मयूरी हमेशा के लिए राख हो जाएंगे I कैसा विचित्र–अद्दभुत संयोग है मयूरी–मयंक आज उस कहावत [विज्ञापन की यू.एस.पी. ] को ‘जीवन के सा

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विवशता न समझे ममता

14 अक्टूबर 2022
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शीना–टीना स्कूल जा चुकी थींI दो कप चाय बनाकर तसल्ली से चाय पीना और चाय के साथ अखबार पढ़ना एक दिनचर्या थी सौमिक और हम बाहर आकर लॉन में बैठ गए थेI सौमिक पहले अंग्रेजी का अखबार पढ़ते हैं, हम हिन्दी का ,

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अपने को तलाशती जिन्दगी

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ट्रेन की रफ्तार धीमी होनी शुरू होते ही अन्दर यात्रियों की हलचल तेज होने लगी थीI एक अजब सी धक्का मुक्की होती ही हैI सभी को उतरना है, ट्रेन में कितनी भी देर बैठ लें, लेकिन स्टेशन आने पर धैर्य से उतरने

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