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प्राक्कथन

14 अक्टूबर 2022

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कहानी कहते ही नानी याद आ जाती हैं, लेकिन कहानी तो दादी भी सुनाती हैं! ‘नानी’ शायद तुकबंदी के कारण चलती रहीI ये तो कोई तुक नहीं है, तुक हो या बेतुक, कुछ न कुछ बात तो कह कर जाती है, कुछ भी कहती है तो बात बन जाती हैI बात से बहुत सी बात बन जाती हैं, जो बात लात से नहीं बनती, बात से संभल जाती है, बात बिगड़ते भी देर नहीं लगतीI इसलिए बात को हलके से कभी मत लीजियेI बस ऐसे ही बात से बात निकलती जाती हैI बात, खाली बात नहीं होती, कारण-अकारण, बनती-बिगड़ती, फ़िज़ूल की हो या मुद्दे की, बातों में बड़ा दम होता हैI इन बातों से ही दुनियाभर की कहानी निकलती हैं I
हर कहानी दिल के बहुत नज़दीक होती है, क्योंकि वो एक संवेदनशील ह्रदय से निकली होती हैI कहानी का जन्म हमारे अवचेतन मन से होता है,लेकिन उसकी प्रयोगशाला, घर-परिवार-समाज, आसपास के परिवेश में होती हैI वो चरित्र घर के भीतर बहुत सी चाची-ताई, बुआ, जीजियों, बाहर की बैठक के मर्दों और चबूतरों की चौपाल से निकलकर आते हैं I बैठकों में बड़े मसले पर बातें, कहीं हॉकी-क्रिकेट,संगीत अधिवेशन के आयोजन की तैयारियाँ, तो कहीं चुनावी तैयारियाँ ,कहीं मुंशीजी, कहीं मास्टरसाब, चुनाव हो या सांस्कृतिक-सामाजिक आयोजन, सब अपना सर्वस्व लगाकर जुट जाते थेI न अपेक्षा न उपेक्षा, सब सीधा-साधा, हॉकी जादूगर ध्यान चन्द हों, या बड़े से बड़े कलाकार-संगीतकार, घरों की मेज़बानी में संतुष्ट हो जाते थेI घर के ही संसाधनों से सांसद तक के चुनाव लड़ लिए जाते थेI बड़े से अहाते या सड़क पर ही आपस में लगड़ते-झगड़ते-खेलते भाई-बहिन, दोस्तों के संग दिन निकालना, दोस्त वैसे, जिनके बीच न जाति थी न धर्म, न गरीबी थी न अमीरीI मिसरानी-बरेठिन सबके बच्चे शामिल थे, सखी नगमा, दीदी की शादी में घाट की साड़ी में गोटा लगा रहीं हैं, याकूब अंकल पंडाल संभाल रहे हैं, पौलक आंटी शादी के निमंत्रण नाम लिखवाकर भिजवा रहीं हैंI
संस्कारों से मजबूत घर और परिवार तो ठीक चलते रहे लेकिन समाज की संवेदनाएँ उद्वेलित करती रहींI घर की चहरदीवारी के किस्से बेशक पीछे छूटते गए लेकिन मन की परतों में वे दबे रहेI
गत दशकों की भ्रष्ट राजनीतिक सोच और बदलते सामाजिक माहौल में बहुत सहज नहीं हो पाएI आसपास जो कुछ घटता रहा है, अन्दर के भाव शब्द बनकर कहानी का ताना-बाना बुनते रहे, कहानियाँ लिखी जाती रहीं I
फिर लगा, आज उन कहानियों को किश्तों-किश्तों में समेटने का समय आ गया है और कहानी संग्रह ‘ सास का बेटा ‘ पैदा हो गया और अब आपके हाथों में पहुँचने को उतावला हैI आप इस बाबत कुछ पूछें कि संकलन में समाज से जुड़े इतने चेहरे, इतने पात्र हैं, विविध कथानक हैं, इतनी कहानियों में से शीर्षक कहानी इसे ही क्यों चुना? ये अपने ही नहीं, उस हर ’सास के बेटे‘ के प्रति आभार है, जो अपने बेटे से अधिक अपना है, लेकिन बेटे के लिए अपनी प्राथमिकताओं में अनजाने ही कहीं न कहीं वो पीछे छूट जाता है, अनजाने ही हम उसकी अनदेखी कर जाते हैंI
कोई भावुक होने की बात नहीं है सास की बेटी के साथ भी ऐसा ही होता रहता हैI ये होता ही हैI क्यों ? इस पर फिर कभी बात करेंगे I
आप यकीन मानिए कादम्बिनी में जब यह कहानी प्रकाशित हुई तो जितने पत्र इस कहानी के प्रशंसकों के आये, हमारी किसी कहानी के लिए नहीं, यहाँ तक लिखा कि आपने कहानी बहुत जल्दी ख़त्म कर दी, इस पर उपन्यास लिखिएI
अभी के लिए तो इतना ही पर्याप्त हैI शेष ऊपर वाले की मर्जीI
मधु चतुर्वेदी
सास का बेटा
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रचनाएँ
सास का बेटा
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कहानी संग्रह सास का बेटा, 15 कहानियों का संग्रह है। जीवन की आपाधापी, तो कुछ जीवन के कडुवे सच की कहानियाँ हैं। कहीं हौसले की उड़ान तो कहीं रोजी-रोटी के लिए महानगरों में बसी आबादी की घर वापसी की आस, खोये हुए गुफ्रान की घर की तलाश, रिश्तों के मनोविज्ञान, कोरोना की मार, पैर से ज्यादा पहला जूता पहनने की ख़ुशी, अनब्याहे वैधव्य की लम्बी यात्रा, तो विवाह के नाम पर वेश्यावृत्ति में फँसी एक बेटी की कहानी है, बिना माँ बाप की बच्ची के लालची काका, मां से अधिक प्यार देने वाली रानी साहिबा, संस्कार के नाम पर मृत देह का अपमान, देहदान की रोचक कहानी मनोरंजन के साथ अपनी संवेदनाओं से ये कहानियाँ अपनी सहज-भाषा में न केवल पढने की भूख को संतुष्ट करती हैं, बल्कि बाहर के सच से बहुत कुछ रूबरू करातीं हैं, हर कहानी के किरदार, अपने से लगते हैं, कहानी तो ख़त्म हो जाती है, लेकिन अन्दर बहुत कुछ मथ के जाती है।
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आभार

14 अक्टूबर 2022
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आभार स्वभाव की बहुत प्राकृतिक एवम व्याव्हारिक प्रतिक्रिया हैI शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावात्मक, भौतिक छोटी–बड़ी जरूरतों के लिए आँख खुलने से लेकर बंद होने तक, जीवन की पहली साँस लेने से लेकर अन्तिम साँ

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प्राक्कथन

14 अक्टूबर 2022
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कहानी कहते ही नानी याद आ जाती हैं, लेकिन कहानी तो दादी भी सुनाती हैं! ‘नानी’ शायद तुकबंदी के कारण चलती रहीI ये तो कोई तुक नहीं है, तुक हो या बेतुक, कुछ न कुछ बात तो कह कर जाती है, कुछ भी कहती है तो ब

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सास का बेटा

14 अक्टूबर 2022
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आज का दिन भी निकल गया ..कल तो शायद अजीत की चिठ्ठी आनी चाहिए ,चिट्ठी आये भी कैसे ? दस दिन से तो पोस्टल विभाग की हड़ताल चल रही है, डाकखाने में तो चिट्ठियों के अम्बार लगे होंगे, किसे समय हैं जो उन्हें निप

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ट्रेन फिर मिलेगी

14 अक्टूबर 2022
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जुहू बीच [समुद्र का रेतीला तट ] भोर की रश्मि ,तेजी से तट की ओर आती हुई समुद्र की लहरों का उफान। कितने उत्साह से न जाने कितने सपने संजोये अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ती सी नजर आती हैं, तट से मिलने की एक आस।

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घर वापसी

14 अक्टूबर 2022
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विक्रम लालजी उपाध्याय की जय हो ! ‘ धरती का लाल! ऊँचा है भाल! हमारा अपना विक्रम लाल! ‘ ‘जीत उसी की होती है, पीछे जिसके जनता होती है ‘ ‘ जिसकी झोली खाली है, वोट उसी में भारी है ’ ‘साबित कर दिखलाया है,

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समिधा–समाधि

14 अक्टूबर 2022
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अभी बस फ्लाईट लैंड ही कर रही थी. जहाज के फैले पंख सिमट रहे थे ,पहिये जमीन पर उतर रहे थे ,घडघडाते हुए ,जमीन को छूते हुए अपने पैरों को जमीन पर जमाया ,और मोबाइल खनखनाने लगे . बेसब्री स्वभावगत है .चाहे दो

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देहदान

14 अक्टूबर 2022
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“ तुम मुझे बता तो दो, की चाह्ते क्या हो ? अरे! इस गरीब को यहाँ क्यों लाये हो?हमें क्या समझकर लाये हो? क्या मेरा अपहरण किया है? मेरा अपहरण कोई क्यों करेगा?” “चुप कर औरत! तेरी बकवास सुनने के लिए यहाँ

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पगार की बेटी

14 अक्टूबर 2022
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ललिता हमें बंगलौर में मिली थी। डायमंड डिस्ट्रिक्ट सोसायटी में बेटी रचना के पास गई थी। मेट्रो सिटी की ये सोसायटी अपने आप में एक पूरा शहर होती हैं। दो हजार फ्लैट, आठ ब्लॉक, २५ से ३० मंजिलें, हर मंजिल

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पहला जूता

14 अक्टूबर 2022
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बाटा की दूकान में अन्दर घुसते ही, हैरानी में सात साल के सुल्लू की गोल–गोल आँखें और गोल हो रहीं थी, ” इतने सारे जूते! चप्पल ही चप्पल! बाप रे बाप! मैडम ! कितने जूते-चप्पल हैं इस दूकान में, हमने तो अपनी

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अनब्याहा वैधव्य

14 अक्टूबर 2022
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जमीन पर बिछी सफ़ेद चादर पर शान्त, निर्जीव सोया बुआ का शरीर हिम शिला सा लग रहा था मानों गंगा की प्रस्तर मूर्ति मंदिर में प्रतिष्ठित कर रखी थीI चारो ओर अगरबत्तियाँ जल रहीं थींI. सन से सफेद बाल, सफ़ेद मर्

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रिश्तों के गणित

14 अक्टूबर 2022
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‘ मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो मुझे विवेक के साथ जाने दो ! सुमेध ! तुम्हारा तो विवेक ने कुछ नहीं बिगाड़ा था, तुम तो हम लोगों को इतना प्यार करते हो? तुम क्यों विवेक के पास जाने से रोक रहे हो? मुझे---------

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अधूरे पूरे नाम

14 अक्टूबर 2022
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कभी–कभी सर्दी के मौसम में मनचाही धूप भी कितनी बोझिल हो जाती है! कैसा विरोधाभास है, चाहय वस्तु ग्राह्य नही हो पातीI बोझ भरे नौकरी के दायित्व के लिए कितनी बार ऐसे हॉलि डे ब्रेक को चाहा था, लेकिन आज जब

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अभिशप्त नंबर तेरह

14 अक्टूबर 2022
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आज उसका वार्ड बदला जा रहा थाI स्ट्रेचर पे लेट हुए रोगी की विवशता भी कितनी असाध्य होती हैI जिसकी जिन्दगी पिछले पाँच माह से एक पलंग के आसपास सीमित हैI उसे क्या फर्क पड़ता है कि वो किस वार्ड में शिफ्ट

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इस ब्याही से कुँआरी भली थी

14 अक्टूबर 2022
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दीदी शादी के बाद पहली बार घर आ गई थीI औरों का नहीं मालूम, मैं सबसे ज्यादा खुश थीIदीदी के गले में बाँह डालकर लटक गई “ आप अब कितने दिन बाद जाओगी?” दीदी ने कुछ जबाब नहीं दिया, मुझे लगा मैंने कुछ गलत बोल

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छूटे हुए छोर

14 अक्टूबर 2022
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मीनल सड़क के इस पार कार में अकेली बैठी है और उस पार शवदाह गृह में मयंक और मयूरी हमेशा के लिए राख हो जाएंगे I कैसा विचित्र–अद्दभुत संयोग है मयूरी–मयंक आज उस कहावत [विज्ञापन की यू.एस.पी. ] को ‘जीवन के सा

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विवशता न समझे ममता

14 अक्टूबर 2022
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शीना–टीना स्कूल जा चुकी थींI दो कप चाय बनाकर तसल्ली से चाय पीना और चाय के साथ अखबार पढ़ना एक दिनचर्या थी सौमिक और हम बाहर आकर लॉन में बैठ गए थेI सौमिक पहले अंग्रेजी का अखबार पढ़ते हैं, हम हिन्दी का ,

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अपने को तलाशती जिन्दगी

14 अक्टूबर 2022
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ट्रेन की रफ्तार धीमी होनी शुरू होते ही अन्दर यात्रियों की हलचल तेज होने लगी थीI एक अजब सी धक्का मुक्की होती ही हैI सभी को उतरना है, ट्रेन में कितनी भी देर बैठ लें, लेकिन स्टेशन आने पर धैर्य से उतरने

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