सिसकती हुई वो आवाजे
चीख चीख के ये कह रही
माँ आकर तू बचा ले
दहेज़ अग्नि में दाहक रही !!
जन्म लिया क्या गलती की
परयो को भी अपना लिया
चाँद कागज के टुकड़ो खातिर
मुझसे कैसा ये बदला लिया !!
कहाँ गए वो सात वचन
निभाने का जो वादा किया
वादे की थी वो साक्षी अग्नि
उसी के हवाले मुझे किया !!
करती थी मन से सेवा
न कभी मैंने कोई सिकवा किया
फिर क्यों लालच के भेड़ियों ने
मेरी ये हालत की !!
इसकी तुम भी हो दोषी माँ
जो चाही तुमने इन्हे दिया
और बढ़ता गया इनका लालच
तभी आज उन्होंने ऐसा किया !!
हाथ जोड़ के करती हूँ अब विनती
आओ मिलके ये कदम उठाये
करे ब्याह उन्ही से अपनी बेटी
जो बिन दहेज़ के ब्याह रचाएं !!