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डूबते सूरज { कविता }

3 जुलाई 2015

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featured imageडूबते सूरजको देखकर लोग घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं स्वयं को कमजोर साबित मत होने दें क्योंकि दुनियां हैं पत्थर की ये जज्बात नहीं समझती दिल में हैं जो छुपी वो बात नहीं समझती चाँद तन्हा हैं तारों की बारात में पर ये दर्द जालिम रत नहीं समझती दर्द के मौसम में यार नहीं होता दिल हो प्यासा तो पानी से गुजर नहीं होता कोई देखे तो हमरी बेबसी हम सब के हो जाते हैं पर कोई हमारा नहीं होता कहीं अंधेरा तो कहीं शाम होगी मेरी हर ख़ुशी तेरे नाम होगी कभी माँग कर तो देखें हमसे कोई होठों पर हँसी और हथेली पर जान होगी

सुमित कुमार शर्मा की अन्य किताबें

मंजीत सिंह

मंजीत सिंह

अच्छी रचना ... अपने मन से लिखी है

3 जुलाई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

बहुत सुन्दर रचना ! बधाई !

3 जुलाई 2015

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कहाँ गए { कविता }

18 जून 2015
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कहाँ गये वो खुशियों के दिन और रैन / लुट गये बचपन के आशियाने / किधर खो गये मेरे वो ठिकाने / क्या आ सकते है लौट के वो ज़माने / माँ बहुत याद आती है तेरा मुझे अपना लेना / जब भी तन्हाई में हम रोते / झटसे मुझे अप

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अंत

20 जून 2015
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आँसूओं की झील दर्द का सागर मौत की घाटी जीवन का अंत

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वो रिश्ते { कविता }

30 जून 2015
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कभी नजरे मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं , कभी नजरे चुराने में जमाने बीत जाते हैं | किसी ने आँखे भी खोली तो सोने की नगरी में , किसी को घर बनाने में जमाने बीत जाते हैं | कभी काली सियाह रातें हमें इक पल की लगाती हैं कभी इक पल बिताने में जमाने बी

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वक़्त नहीं { कविता }

24 जुलाई 2015
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हर ख़ुशी हैं लोगों के दामन में पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं दिन रात दौड़ती दुनिया में जिन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं माँ की लोरी का एहसास तो हैं पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं सारे रिश्तों को तो हम मार चुके अब उन्हें दफ़नाने का वक़्त नहीं

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माँ के अधूरे मिलान { कविता }

1 जुलाई 2015
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अधूरे मिलान की आस हैं जिन्दगी, सुख-दु:ख का एहसास हैं जन्दगी , फुरसत मिले तो ख्वाबो में आया करो , आप के बिना बड़ी उदास हैं जन्दगी , हमारी गलतियों से कही टूट न जाना , हमारी शरारत से कही रुठ न जाना , तुम्हरी चाहत ही हमारी जिन्दगी हैं ,

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ऐ मालिक { प्राथना }

25 जुलाई 2015
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ऐ भी एक दुआ हैं मालिक से, किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से, ऐ मालिक कर दे कुछ ऐसी इनायत मुझ पे, कि खुशियों ही मिले सब को मेरी वजह से, न कोई राह आसान चाहिए | न ही हमें कोई पहचान चाहिए | एक चीज मागते हैं मालिक से , अपनों

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माँ का केहना { कविता }

2 जुलाई 2015
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अगर जो दिल की सुनो तो हार जाओगे ... हम जैसा माँ का प्यार फिर कहाँ से पाओगे ... जान देने की बात तो हार कोई करता हैं ... जन्दगी बनाने वाली कहाँ से लाओगे ... जो इक नजर देखोगे ... हर तरफ हमको ही पाओगे ... यकीं अपनी चाहत का इतना हैं मुझे ...

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डूबते सूरज { कविता }

3 जुलाई 2015
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डूबते सूरजको देखकर लोग घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं स्वयं को कमजोर साबित मत होने दें क्योंकि दुनियां हैं पत्थर की ये जज्बात नहीं समझती दिल में हैं जो छुपी वो बात नहीं समझती चाँद तन्हा हैं तारों की बारात में पर ये दर्द जालिम रत नहीं समझती दर्द के मौसम में यार नहीं होता दिल हो प्यासा

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आँसु { कविता }

4 जुलाई 2015
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अगर रख सकों तो एक निशानी हूँ मैं, और खो दो तो एक कहानी हूँ मैं , रोक पाया ना जिसे ये जहान सारा | वो एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं , तुम्हारा हमारा रिस्ता हैं ही ऐसा | आँखों और पलकों से गहरा | अगर पलक कुछ देर झपके ,

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माँ का सहारा { गीत }

4 जुलाई 2015
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एक मेरा वजूद जो मेरे बहार मौजूद हैं एक मेरा अक्स जो मेरे भीतर मौजूद हैं यह अक्सर में जीने के वजह बन जाते हैं तू अगर मेरे साथ हैं जिंदगी भर तो मुझे मेरे जीने का मक्सद याद हैं अगर तू ही मेरे साथ नहीं तो जीने का कोई मेरा मतलब नहीं

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अत्याचार्य

8 जुलाई 2015
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क्या इसी को कहते हैं जिन्दगी कैसी हैं ये अत्याचार्य कि जन्दगी | कोई मरने से बचे तो मिलतीं हैं नई जिन्दगी वैसे तो नाम से तो मौत बदनाम हैं | जिन्दगी जीने से तो अच्छी हैं मौत ऐ मालिक ये इंसाफ कैसा हैं तेरा | किसी को अँधेरा किसी को उज्जला तड़पता हैं कोई हंसी के लिए | मिला है किसी को खुशीं का ख

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दोस्त बिछड़ गये दोस्ती नहीं |

25 जुलाई 2015
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बिछड़े दोस्त के याद से है मेरी जिन्दगी | उसके सुख-दुःख के ऐहसाश से है मेरी जिन्दगी उसके खुशियों में ही खुश है मेरी जिन्दगी | उसके लिए जो कुछ भी दे सकती है देदेगी मेरी जिन्दगी शीशा सा पिघलता पत्थर तो नहीं देखा | हर लम्हा गुजरता मंज़र तो नहीं देखा पढ़ ली रुख की लकीर तो क्या हुआ | दिल क्या चीज ह

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क्यों होता है ऐसा

11 जुलाई 2015
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क्यों हो जाते है अपने पराये | और पराये हो है जाते अपने क्यों अपनों से टूट जाता हूँ | और गैरों से जुट जाता हूँ जब कि हम अपनों के साथ रहते आ रहे है | वो भी कुछ कम दिनों से नहीं लगभग २०-२५ साल से रह रहे है | ईन दिनों में ह

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अपने सपनें

25 जुलाई 2015
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मेरे सपनो में रोज आते हो क्यों ? इस तरह मुझे सताते हो क्यों ? तुम मुझे अपना बनाते हो क्यों ? अपना बना के बेगना कर जाते हो क्यों ? इस तरह मुझे रुलाते हो क्यों ? मुझे रुला के तन्हा कर जाते हो क्यों ? तन्हाई से तन्हा हो जाते है क्यों ?

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मन का पंछी

14 जुलाई 2015
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सुख दुःख का ऐहसास है ये जिन्दगी तेरे लिए उदास रहता है ये जिन्दगी तेरे इंतजार के आश में है ये जिन्दगी तेरे ही प्यास के प्यासे है ये जिन्दगी इस दिल की जमी पर कब होगी बारिश उस सावन के बारिश के आश में जिन्दगी कैसा है ये मन का पंछी किसी के इंतजार में बैठे कहती है ये रत हस-हस के कोई ना आयेगा चल द

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ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ

15 जुलाई 2015
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शब्दनगरी संगठन एक ऐसा परिवार है जिसमें हम सभी मिलकर सनेह से रहते है यहाँ किसी से कोई जुदा नहीं होते है यहाँ तो हमलोग दूर हो कर भी बहुत पास होते है और हमलोग यहाँ हर वक़्त खुश ही खुश रहते है मैं ये बड़े एकिन के साथ कहता हूँ कि- हमलोगों कि तरह कोई सताये तो बता देना हमलोगों कि तरह हंसाये तो

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फर्क सिर्फ इतना

17 जुलाई 2015
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एक दिन सभी आते है इस जमीं पर एक दिन जाते है सभी इस जमीं पर से इक दिन सब जाने वाले जाएंगे कुछ अपनी सजा अपने साथ लाएंगे | वो वक़्त करीब आ पहुंचा है | अब टूट गिरेंगी वो जंजीर जिन्दिनीं की खेर नहीं जो उफाने झूम उठे है साहिलों से न तलेगें कुछ देर में ले जाने वाले ले जाएगें फूल हम पे भी होंगे जो मे

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हाथों कि लक़ीर पे यक़ीन नहीं

17 जुलाई 2015
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ऐ किस्मत भी क्या अजीब खेल खेलते है | कभी हमें हँसते है तो कभी रुलाते है | हमसे ऐ इंतहाँन लेकर हमें अजमाते है | और हम इन्हें इंतहाँन दिये जाते है | उलझन के इन धागों को जीवन भर सुलझना है | किस्मत पे ऐतवार किसको है | मिल जाये ख़ुशी तो इंकार किसको है | कुछ मजबूरियाँ है जिन्दगी में यार , वरना मेरी

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{$***आजादी के लिए वीरो ने दे दिए प्राण***$}

19 जुलाई 2015
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हमारे देश को आजादी पाने के लिए | ना जाने कितने वीरो ने अपने प्राण दे दिये | भारत माँ को जकड़े हुए जंजीर से आजाद करने के लिए | भारत माँ के उस बेटे ने हस्ते -हस्ते अपने जान दे दी | और फिर नजाने कितने माँओं ने अपने बेटे खों दी | वो माँ ऐ सोच कर नही रोती कि उनका मर गये | वल्कि ये सोच कर रोती थी कि

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तुम्हारी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है ,

24 जुलाई 2015
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वो आके जा चुकी है पर आशक़ी वही है हम उसे खो चुकें है पर दिवानगी वही है तुम्हरे साथ गुजरा लम्हा जब भी याद आयेगा इस जनम के बाद तुम्हारा ख्याल लायेगा अगर बख्शी ऊपर वाले ने जिन्दगी बार बार तो ये हर जनम में आपका साथ चाहेगा चाहे तो दिल से हमें मिटा देना चाहे तो हमे तुम भुला देना लेकिन ये वादा करो कि

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तुम हो दिल के करीब दूर आँखों से

24 जुलाई 2015
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तुम हो दिल के करीब दूर आँखों से पर गये दिल में छाले तेरी यादों से जीना मुश्किल है बिन तेरे सहारो के कोई कैसे तुझे मेरे दिल से निकले चाँद तारों का नूर आप पे बरसे हर कोई आप कि चाहत को तरसे आप कि जिन्दगी में इतनी खुशियाँ आये कि आप किसी गम के लिये तरसे ख़ुदा कि रहमत सारे संसार पे बरसे मेरे

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