दूसरा जन्म अधेड़ उम्र की औरत गांव से बाहर काफी दूर एक बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर चिल्ला-चिल्ला कर अपने आपको कोसती हुई रो रही थी, और कह रही थी - ये मेरी गलती थी भगवान, मैं अपनी जवानी में होने वाली उस गलती पर आज भी शर्मिंदा हूं । हे भगवान । मैं मानती हूं कि मैंने वह पाप किया है । जिसका मैं प्रायष्चित करके भी उस पाप से मुक्त नही हो सकती, पर मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप मेरी उस गलती को क्षमा करके दोबारा गलती ना करने का एक बार फिर से मौका दें । हे भगवान, मैं हमेषा के लिए ये प्रतिज्ञा करती हूं कि भविष्य में भी किसी ओर को ये गलती करने की सलाह नही दूंगी । मुझे मेरी गलती का ऐहसास हो गया है । अतः अब आप फिर से मेरी झोली में मेरी खुषियां वापिस डाल दें । पन्द्रह साल हो गये । मुझे वह गलती किए हुए । पन्द्रह साल से हर साल इसी दिन यहां आकर अपनी गलती का प्रायष्चित करती हूं । आप प्रभू इतने निष्ठूर कैसे हो सकते हैं । परिवार में सभी मुझे बांझ कह कर ताना मारते रहते हैं । मेरी सास के कहने पर मैंने अपनी एक दिन की बच्ची को यहीं इसी बरगद के पेड़ के नीचे रखा था । हे बरगद तु ही मेरे इन आंसूओं की परवाह करके मेरी बच्ची को मुझे वापिस लौटा दे । पहली बच्ची को मारने के लिए मेरे सास-ससुर और ननद ने बाध्य किया था । अब वही सास-ननद मुझे बांझ कहकर घर निकल जाने के लिए कहती हैं । आज मेरी बच्ची का ये पन्द्रहवां जन्म दिन है । आज वो जिंदा होती तो पन्द्रह साल की हो गई होती । और बच्चे ना सही मुझे मेरी वही बच्ची वापिस लौटा दो । मैं उसे ही अपना बेटा-बेटी समझ कर छाती से लगा लूंगा । कम-से-कम समाज का मुंह तोड़ जवाब तो मैं दे ही सकती हूं कि मैं बांझ नही । हे भगवान, आज आपको मेरी मनोकामना पूरी करनी होगी नही तो आज मैं भी यहां पर अपना सिर पटक-पटक अपनी जान दे दूंगी । यह कहकर वह बरगद के तने में अपना सिर पटक-पटक कर जोर-जोर से रोने लगी । उसके माथे से खून बहने लगा । आंखों के आंसू और सिर का खून दोनों मिल कर धार बन कर बहने लगी । तभी - “बस मां, अब ओर खून बहाने की जरूरत नही । मैं आ गई ।” यह आवाज सुनते ही वह औरत रूक गई, ओर ईधर-ऊधर पागलों की तरह देखने लगी तभी उसके पीछे से दो छोटे-छोटे नन्हें हाथों ने उसके कंधो को छुआ । वह पिछे मुड़ी तो एक सुन्दर-सी पन्द्रह साल की परियों जैसी मासूम लड़की खड़ी थी । उसने उस स्त्री के आंखों के आंसू पोंछे मस्तक पर लगे घावों को अपने नन्हें हाथों से सहलाया । उनका खून साफ किया । वह स्त्री इसे सपना समझ कर बेहोष हो गई । जब होंष आया तो उसका पति रमेष और वह लड़की दोनों उसकी सेवा में लगे हुए थे । रमेष की गोद में उसकीा सिंर रखा हुआ था । वह लड़की कभी अपनी मां के घावों को गीले कपडे़ से साफ कर रही थी तो कभी अपने आंचल से हल्की-हल्की हवा कर रही थी । उसे होंष आया तो रमेष से बोली - “आप, आप यहां कैसे ? “ “मैं तो यहां आपके आने से पहले ही आ गया था ।” “पर मुझे तो नही दिखाई दिये ।” “मुझे पता था कि हर साल आप इस दिन अर्थात हमारी बच्ची के जन्म दिन को यहां जरूर आती हो। सो मैं सुबह जल्दी ही तैयार हो कर ऑफिस जाने की बजाय यहां इस बरगद की शाखाओं पर बैठकर तुम्हारे प्रायष्चित को देखता था।” “और ये लड़की ?” “यही है हमारी बच्ची, जिसके लिए तुम कई साल से यहां प्रायश्चित के लिए आती हो (यह सुनते ही वह स्त्री उस बच्ची के गले से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी और बार-बार उससे माफी मांगने लगी) मुझे माफ कर दो मेरी बच्ची । मैं सास-ननद के चक्कर में फंसकर तुम्हें मरने के लिए यहां छोड़ गई। अब मैं अपनी बच्ची को जरा सा भी दुख नही होने दूंगी। इतने साल से मैं तुम्हारी सूरत देखने को भी तरस गई थी। तुम कहां रही मेरी बच्ची?” “पांच साल तक तो पापा ने मुझे अपने दोस्त के यहां रखा उसके बाद मुझे स्कूल में पढने के लिए भेज दिया । हर शनिवार को पापा मेरे स्कूल पहुंच जाता था । ढे़रों चीज और चॉकलेट खिलौने लेकर आता। पापा ने कभी मुझे आपकी कमी महसूस ही नही होने दी। पांच-छह साल से हर जन्म दिन पर पापा मुझे यहां लेकर आता है। पहले तो आप खाली रोकर ही प्रायश्चित करती थी, मगर आज जब आप अपने सिर को पटकने लगी तो मुझसे रहा नही गया। पापा के बार-बार मना करने पर भी मुझे बोलना पड़ा । नही पता, नही तो क्या हो जाता । मां मुझे एक बात बताओ । क्या लड़के ही सबकुछ होते हैं? हम लड़कियां कुछ भी नही। यदि हम ही इस संसार में नही होंगी तो बताओ लड़के कहां से होंगे। यदि एक औरत-ही-औरत की दुश्मन हो जायेगी तो कैसे काम चलेगा। संसार में वो दिन दूर नही जब पुरूष-ही-पुरूष होगें, और उनका भी वजूद जल्द ही समाप्त हो जायेगा । सृष्टि के विकास के लिए दोनों का ही होना जरूरी है । तुम जिनकी सीख से मुझे यहां छोड़कर गई थी वो भी तो औरत ही थी। उन्हें तो किसी ने भी नही मारा। तुम कैसे पागल हो गई हो जो उनकी सीख तुमने मान ली । भगवान की मर्जी के बिना पत्ता तक भी नही हिलता । मेरे यहां छोड़ने पर भगवान तुमसे रूष्ट हो गये और तुम्हें कोई अन्य औलाद भगवान ने नही दी । अन्यथा तुम अपना प्रायश्चित कैसे करती ? भगवान सब का हिसाब-किताब करता रहता है। मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी कि राखी बांधने के लिए एक भैया जरूर दे। “मां-बेटी का मिलन हो चुका हो तो अब घर चलें। मुझे बहुत भूख लगी है। खाना खाकर हम बाजार जायेंगे। अपनी गुडि़या का जन्म दिन मनाना है । बड़ी धूमधाम से इसका जन्म दिना मनायेंगे ।” “सूनो जी, तुमने अपनी गुडि़या का नाम क्या रखा है ।” “इसका नाम हमने ममता रखा है । चलो ममता घर चलते हैं ।” “यदि अब भी दादी और बुआ ने मुझे देखकर निकल जाने को कहा तो......?” “अब तो मैं ही पूरे घर वालों को देख लूंगा क्योंकि अब तुम्हारी मां मेरे साथ है । पहले तो यही उन्ही के कहे में थी । ये मेरे साथ है तो पूरे जहान में मैं अकेला ही लड़ने को तैयार हूं । “ तीनों घर पहुंचे तो घर को पूरी तरह से सजाया गया था । चारों तरफ रंग-बिरंगे रिबन-गुब्बारे लगे हुए थे । ममता की दादी और बुआ नए कपड़े पहने हुए थी। अन्दर चौक में गीत गाये जा रहे थे । ममता को दरवाजे पर रोक कर उसकी आरती उतारी गई। नजर उतारने के बाद दरवाजे के अन्दर उसकी बुआ और दादी लेकर आई । यह देख रमेश और उसकी पत्नी निर्मला को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगा । दोनों बाहर ही खडे़ रहे थे । ये क्या दोनों मां-बेटी को ये क्या हो गया ? “जो औरत घर में पौती के नाम से भी घुरती थी आज वही औरत अपनी पौती की आरती उतारकर गोद में उठाकर अन्दर लेकर गई ।” “पर इनको कैसे पता चला कि आज ममता घर आने वाली है ।” “इसका तो खैर मुझे भी नही पता, चलो अन्दर चलकर बात करते हैं।” दोनों अन्दर पहुंचते हैं । अन्दर पहुंचने पर देखा कि घर के बड़े से कमरे में एक मेज पर बहुत सारी मिठाईयां रखी हैं । औरतें शुभ गीत गा रही हैं । रमेश की बहन सभी से ममता का परिचय करा रही थी । ममता की दादी सभी औरतों को मिठाईयां बांट रही थी । चारों तरफ से ममता के आने की खुशी की आवाजें आ रही थी । यह देखकर रमेश ने कहा - “मां ये इतनी सारी मिठाईयां और ये औरते और गीत........? “ “ये सब हमने तैयार किये हैं, मैंने और तुम्हारी बहन रेनू ने । हमें सुबह ही तुम्हारे दोस्त से पता चल गया था कि आज मेरी पौती ममता यहां आने वाली है, पर उन्होंने ये नही बताया कि उसे लेने तुम दोनों ही गये हो । मैं तो सोच रही थी कि खुद तुम्हारा दोस्त राजू ही लेकर आयेगा । आज मैं बेहद खुश हूं । मेरी परियों सी पौती को सीने से लगाकर रखूंगी । मुझे पता लग गया है कि लड़के और लड़की में कोई अन्तर नही होता । मेरे लिए तो मेरी पौती ममता ही पौता है, और हां निर्मला तुम भी सुन लो खबरदार, मेरी पौती को कभी दुख दिया । सभी खुशी-खुशी रहने लगे ।” एक साल बाद उनके घर पुत्र ने जन्म लिया । सभी की खुशी का पार ना रहा । भगवान ने ममता को राखी बांधने के लिए एक भाई भी दे दिया और निर्मला और रमेष को एक पुत्र । -:-०-:-