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बगुला

नवलपाल प्रभाकर दिनकर

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बगुला आज सुबह ही मैंने सोचा था कि आज पम्प हाऊस पर चलना हैं क्योंकि मैं महीने में एक या दो बार हाऊस पर जरुर जाता हूँ। इस बार तो मुझे गये ही करीब डेढ़ दो महीने हो गये थे, वो इसलिए कि मेरे यहां स्कूल का काम कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। परन्तु आज मुझे किसी तरह से समय मिल ही गया। आज मुझे ऐसा मौका मिला तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। सुबह जल्द ही मैं पड़ोस में गया और वहां से करीब दो-तीन बच्चे जिनका नाम विजय, लाला और रविन्द्र था। इन तीनों की उम्र ही क्रमश दस साल की थी। हमारे पास 7 पशु थे जिनमें घोड़े और खच्चर थे। हम उन्हें चराने के लिए गांव के पास एक छोटी सी बणी में लेकर गये थे। उस बणी में चारों और झाड़-भौझड़े और छोटे–छोटे दो-तीन फुट ऊँचे पौधे अर्थात बनावटी घास थी। बणी में जाते हुए मन में विचार आया कि बाजरा भुनकर खाया जाए। बणी में एक हनुमान मंदिर था। वहां पर उस मंदिर के घेरे में मंदिर के पुजारी ने बाजरा बो रखा था। हम सभी ने पशुओं को छोड़कर उस बाजरे में घुस गए। वहां पहले तो हमने धरती पर फैली कचरियों की बेलों को देखा मगर वहां कचरी न मिलने पर, हमने डरते-डरते बाजरे की बलियां तोड़ी और जल्द ही चुपचाप निकल आए फिर मंदिर पर जाकर हनुमान के चरणों में प्रणाम करके वापिस आए और एक राहगीर से माचिस की तीन तिलियां ले कर एक जाल जो कि जंगली पेड़ था जिसकी प्रजातियां अब लुप्त होने की कगार पर हैं एक पेड़ के नीचे बैठकर हमने ईंधन एकत्रित कर उन्हें भुना और बाजरा निकालकर चबाने लगे। इस तरह से सारी बलियां समाप्त करके हम ने बणी के पूर्वी छोर पर गये वहां पर एक कुई थी जिसका पानी मीठा और ठंडा था वहां पानी पीकर मैंने उन तीनों से कहा अब हम खेतों में चलते हैं वहां पर बेलों पर लगी कचरी खायेंगे। वे तीनों भी मेरी इस बात से सहमत हुए हम तीनों वहां से चल पड़े। बणी के पश्चिम किनारे पर। जहां एक खेत था जिसमें बहुत सी कचरियां लगी थी। वे तीनों मुझसे बता रहे थे। मगर इतने में ही विजय को बणी के बीचों-बीच रास्ते पर जाते हुए एक कछुए पर नजर पड़ी। उसने कहा- कछुआ-कछुआ हम सभी उसकी तरफ दौड़ पड़े। हमारे पैरों की आहट सुनकर कछुए ने अपने पैरों और सिर को अपने मजबूत ढकोले-सी खोपड़ी के अन्दर समेट लिया। विजय ने उस पर पैर रखा और लगा दबाने तभी मैंने कहा ओ विजय या कै करै सै यो बेचारो मर ज्यागो। इतनी सुनते ही लाला बोला न्यू ना मरा करी कछुआ चाहे रेल चढ़ा ले तो भी ना मरै। क्यूंकि इनकी या खोपड़ी मजबूत हो सै। फिर रविन्द्र कह हैं क्यू ना हम इसकी खोपड़ी तार कै हेलमेट बणा ल्या। मैं फिर बोला बस रहण दो। हम इस कछुआ ने चाल कै किसे जोहड़ में छोड़ेंगे। सारा ने हामी मिलाई। मैंने उसे उठाया और हाथ के ऊपर उठाकर चल रहा था। डर मुझे भी लग रहा था कि कहीं चुपके से मुंह निकाल कर मेरे हाथ को न काट लें। इसलिए बार- बार उसके मुंह की ओर देख रहा था और चौकन्ना था। रास्ते में ख्याल आया कि ये जीव जलचर और स्थल दोनों पर रहने वाला हैं इसे छोड़ ही देता हूँ। मैंने उन तीनों से कहा कि अब हमारे पास समय नहीं हैं चलो हम पम्प हाऊस पर चलते हैं। मुझे प्रकृति और प्रकृति के जीवों से बड़ा लगाव हैं। इस लिए मैं वहां जाने के लिए उतावला हुए जा रहा था। हम चारों खेतों से होते हुए कचरी, बाजरे की बलियां और हरड़ की फलियां खाते हुए खेतों की मेंडो पर जा रहे थे। खेतों से निकलने पर थोड़ी दूर चलने पर ही पम्प हाऊस आ गया। पम्प हाऊस पर जाने पर मेरा मन प्रफुलित हो गया और गात रोमांच से भर गया। मैंने चारों और की छटा को आंखों के जरिए मस्तिष्क से होते हुए हृदय तक उतारा और मैं बड़ा खुश प्यारी सी हरियाली को देखते हुए भी मेरा हृदय भी छक नहीं रहा था। पम्प हाऊस पर घूमते हुए हम एक स्थान पर पहुँचे जहां से देखने पर चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही हैं बस इसी हरियाली को देखने के लिए मैं महीने में 2 या 3 बार जाया करता था। तभी एक बगुला कराहते हुए मिला वह एक झुरमुटे में बैठा था। सोचा शायद यह यहां पर फंसा हैं। मैंने रविन्द्र से कहा कि वह उसे निकाले रविन्द्र ने उसकी टांग पकड़ कर बाहर खींच लिया। देखा तो क्या देखा बेचारे की एक पैर की हड्डी टूटी हुई थी। वह उड़ नहीं सकता था तो मैंने सोचा कि मैं इसकी दवा का इंतजाम कर दूंगा इसलिए मैंने उसे गोद में उठा लिया गोद में उठाते ही वह जोर- जोर से चोंच ईधर-उधर मारने लगा। एक चोंच तो उसने मेरी आंख के थोड़ी ऊपर मारी ओर दूसरी मेरे होठ पर। मगर कुछ देर में ही वह शांत हो गया और मेरी गोद में आराम से बैठ गया। जैसे उसे कोई हमदर्द मिल गया हो। मुझे भी उसकी इस दशा पर बड़ा अफसोस हो रहा था। पम्प हाऊस देखने पर हम जल्द ही वापिस लौट आए और हम बणी में आ गए वह बगुला मेरे साथ मेरे हाथों में बहुत थक चुका था इसलिए मैं बगुले को अपने पास ही खड़ा करके सो गया। कुछ देर बाद करीब आधा घंटा सोने पर नींद से उठा तो बगुला ज्यों का त्यों आराम से मेरे पास ही बैठा था। अब एकाएक मेरी नजर उसके सौंदर्य पर गई तो देखा --- वह लम्बी गर्दन वाला श्वेत वर्ण गोल- गोल छोटी- छोटी आंखे चिकने पर कोमल देह और लम्बी- लम्बी टांगे जैसे किसी कारीगर ने लोहे के तारों को प्लास्टिक की रबड़ पहना दी हो। पूरी तरह से मानो वह एक सांचे में ढला प्रतीत हो रहा था। अनायास ही उसका रुप और सौंदर्य किसी को भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकता था। यहां पर बगुले का रुप सौंदर्य का तो वर्णन मैंने कर दिया और उसके स्वभाव की बात तो मैं ना करुं तो यह सरासर अन्याय और बगुले के स्वभाव के साथ ना इंसाफी वाली बात ही होगी। स्वभाव उसका कुछ नर्म था, मगर इतना नर्म भी नहीं की कोई उसे छू ले या उठा ले। एकाग्रचित दिमाग, बुद्धि लड़ाकर शत्रु को मात देना, अपने सौंदर्य से आकर्षित करना, मानों उसकी आंखो में तेज सम्मोहन था। देखने वाला बस देखता ही रह जाता। बिल्कुल सादगी संयम रखने वाला था वो बगुला। प्रकृति के जीव भी अपने तरीके से एक विचित्र सी खासियत लिए होते हैं। एक खासियत उस बगुले में भी थी और वह यह थी कि जब तक वह गोद में रहता न तो वह शौच आदि करता और न ही वह पंख फड़फड़ता। गोद से नीचे उतरते ही वह पंख भी फड़फड़ता और शौच भी करता। उसकी सारी खूबियां और स्वभाव देख कर उस पर मैं मोहित हो उठा और उसे अर्थात बगुले को हाथ में उठाकर बणी में घूमने लगा तभी दो पंछी और पहुँच गए घर से मेरे पास। उन दोनों के नाम क्रमश अनूप और अजीत थे। उन दोनों ने बताया कि जा नवल घर पर। तुम्हारी मां ने कहा हैं और मेरे हाथ से सफेद रंग का गोला-सा देखकर दूर से ही दौड़े चले आए वे दोनों मेरे पास। बगुले को देखकर अजीत बोला भाई कहां से लाया, मुझे दे दो। उसके हाथों में बगुला सौंपकर मैं कहने लगा इसे संभाल कर रखना और शाम को जब पशुओं को लेकर घर आते वक्त इसे भी साथ में ले आना अनूप ने और अजीत ने हामी भर दी। तब मैं बोला चलो तो इसने पानी और पिला दो। हम तीनों जोहड़ की तरफ पहुँच गए। जोहड़ पर पहुँच कर जोहड़ के एक किनारे पर पानी कम गहरा था। हमने बगुले को खड़ा किया तो उसने पानी पिया और थोड़ा-सा शौच भी किया। मैंने सोचा कि अब तो यह जाएगा और मैं उसको दोनों को सुपुर्द कर बणी से घर आने लगा। रास्ते में मैंने सोचा कि क्योंकि न मैं अपना राशन कार्ड लेकर चलूं तो मैं एक बणिए की दुकार में गया और उससे पूछा कि कार्ड बने या नही तो उसने कहा कि तुम्हारा कार्ड नहीं आया हैं तो तुम फोटो वगैरह ढूंड कर दो। मैंने वहां फोटो ढूंढी और फार्म भरवाया। इतने काम में ही मेरा करीब एक घंटा व्यय हो गया। एक घंटे बाद में घर पहुँचा तो अनूप और अजीत दोनों मेरे घर के सामने उन्होनें मेरी मां से पूछा कि मां नवल नहीं आया हैं तो मेरी मां ने कहा नहीं तो। उन दोनों ने कहा कि वो तो हम दोनों से पहले ही चल पड़ा था। अभी तक घर नहीं पहुँचा हैं। वे दोनों ये कहकर चले ही थे कि सामने से आता हुआ मैं दिखाई पड़ा। मैने उनसे पूछा कि वह बगुला कहां हैं तब उन्होने बड़े सहज भाव से जवाब दिया की वह तो मर गया। तब मैंने अनूप से कहा कि बगुला कहां हैं। इस पर अनूप ने भी वही जवाब दिया तब मैंने पूछा कि कैसे बगुले की मौत हुई तो अनूप ने सारांश में उतर देते हुए इस प्रकार कहा कि - चाचा चाँदराम भी बणी में चला गया। उसने वो बगुला जोहड़ में फेंकवा दिया और कहा कि जोहड़ में मछली पकड़ कर खा लेगा यह कई दिन से भूखा मरता होगा। तब मैंने बगुले को जोहड़ में छोड़ दिया था। यह अनूप ने मुझे बताया था। अनूप की यह बात सुनते ही मेरी आंखो के सामने अंधेरा सा गया तभी कुछ क्षणों के बाद तेजी के साथ प्रकाश सा फैल गया और उस बगुले की छवि आंखों के सामने आ गई। कुछ ही समय पश्चात वह भी धूमिल सी प्रतीत होती हुई मिट गई। मेरा मन करुणा से ओत-प्रोत हो रुदन करने लगा। मुझे बड़ा पष्चाताप हो रहा था कि यदि मैं उसे घर ले आता तो उसकी जान बच जाती। -:-०-:-  

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