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एक प्यार का नगमा है 1

5 अक्टूबर 2024

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" नगमा कहां दौड़ी जा रही है तेरा मेहंदी में जाने का समय होय लगेगा।" सिम्मी का स्वर उसके पीछे-पीछे आया। 

"बाईजी के यहां जाय रही अम्मा।" नगमा ने दौड़ते हुए ही उत्तर दिया और एक ही दीवार से लगे पास वाले घर में घूस गई। 

"कहां हो बाईजी? " नागमा ने घर में घुसते ही पूछा।

उत्तर में रसोई घर से एक अधेड़ स्वर आया,
" यहां हूं।"
तो नगमा रसोई घर की और बढ़ गई।

"आ गई टाबर" रवीना ने हंसकर उसका सत्कार किया।

" कैसी हो बाईजी?" नगमा ने भीतर प्रवेश करते हुए पूछा। 

" मैं ठीक हूं, तुम बताओ मेहंदी में नहीं गई आज?"
रवीना ने आटा गूंथते हुए पूछा।

" नहीं अभी उसमें समय है, वह आशिमा कह रही थी आज राधेय परदेस से वापस आए लगेगा?" उसने पुष्टि हेतु पूछा।

" हां सरोज उसे एयरपोर्ट लेने ही गए हैं अभी आते ही होंगे।" रवीना के प्रसन्न स्वर में दिये उत्तर से नगमा भी प्रसन्न हो गई।

"अच्छा, पूरे 3 वर्ष बाद लौटे लगेगा वह परदेस से, है ना। " नगमा ने पास पडी सलाद की प्लेट से एक खीरे का टुकड़ा उठाकर खाते हुए कहा। 

वह दूसरा टुकड़ा उठा ही रही थी कि रवीना ने उसके हाथ पर हाथ मारा, 
"रहने दे फिर मुझे वापस नया काटना पड़ेगा, फ्रिज में जो बिना कटा पड़ा है उसमें से खा ले।"

"रोज तो मैं इसमें से खाती हूं, रोज तो आपको परेशानी नय होती।" नगमा ने मुंह बनाकर कहा।

" आज राधेय के लिए विशेष रूप से तैयार कर रही हूं ना इसलिए।" रवीना के स्वर में अपने बेटे से मिलने का उत्साह झलक रहा था।

"लो, आपका बेटा परदेस से आए लगा है इसलिए अब इस बेटी को पराया कर दोगी!!" नगमा ने  रुष्ट होने का नाटक किया।

"ले, ऐसा कैसे आया तेरे दिमाग में तू तो मेरी प्यारी बेटी है तुझे कैसे पराया कर सकती हूं।" रविनाने आटे से सने हाथ से उसके गाल पर थपकी मारी।

"हाय बाईजी, मेरे रूप रूप के अंबार से चेहरे को भूतिया बना देय रही।" नगमा ने एक चम्मच में अपने प्रतिबिंब को देखते हुए कहा और अपनी चुन्नी से मुख पर लगा आटा पौंछने लगी तो रवीना हंसने लगी। 

" अच्छा यह बताओ क्या बनाय रही आज?" नगमा ने आटा साफ कर लेने के बाद पूछा।

" आज सब कुछ राधेय की पसंद का ही बना रही।"
उसने गैस पर कहाड़ी चढ़ाते हुए कहा।

" अच्छा और उसकी पसंद क्या है ये भी बताय.."
नगमाने गैस के पास आते हुए कहा।

"पुरणपोळी और घी उसका सबसे पसंदीदा है पर इसके अलावा मैं उसके लिए भरे आलू की सब्जी और रोटी भी बना रही हूं।" रवीना ने गोल पोळी में पुरण भरते हुए कहा। 

" और मीठे में क्या बनाय लगेगा?" नगमाने एक कहाडी का ढक्कन उठाकर भीतर देखते हुए पूछा।

" मोदक" 
रवीना ने उत्तर दिया तो ' अरे हांआआआआआ' कहते हुए नगमा ने अपने सिर पर हाथ मारा।

"मुझे स्मरण है बचपन में हम लोग उसे इसीलिए मूषक मूषक कहकर चिढ़ाया करते थे।"
उसने हंसते हुए कहा तो रविना भी हंसने लगी।

" बालपन में वह था भी तो मूषक जैसा बस हड्डी भर का दिखता था उसका शरीर, खाना इतना खाता था पर पता नहीं सब कहां जाता था..." बेटे के बालपन के संस्मरण याद कर वह मुस्कुराई। 

" चलो मेरे योग्य कोई काम हो तो बताओ मैं सहायता करुं।" नगमा ने अपने हाथ चुन्नी पर पौंछते हुए कहा।

" आज भोजन तो मैं पूरा अपने हाथों से बनाना चाहती हूं, बाकी सारे काम नौकर कर लेंगे.....हां एक काम है जो मैं तुझे दे सकती हूं।" रवीना ने कहा। 

" क्या है, बताओ तो तुरंत प्रारंभ कर दु, राधेय और भाई जी अभी आने लगेंगे।" नगमा ने तुरंत पूछा। 

"रुक...
कहते हुए रवीना ने गैस कम किया,
.. सांवली यहां आ तो" 
और घर की एक विश्वासु नौकरानी को बुलाया। 

जैसे ही वह आई उसे भोजन पर ध्यान रखने का कहकर वह दोनों ऊपरी तल(माले) पर चली आई।
ऊपर आकर रवीना ने एक कक्ष का दो पाट वाला सुंदर उत्कीर्णन किया गया द्वार खोला। 

"अरे वाह बाईजी! यह कक्ष तो किसी राजसी महल जैसा दिखता है।" नगमा ने कक्ष की प्रशंसा में कहा। 

" हां, राधेय को राजसी चीजें कुछ अधिक ही प्रिय है।"
रवीना ने स्मित करते हुए उत्तर दिया। 

" ये उस मूषक का कक्ष है?" नगमा ने आंखें फाड़ कर कहा। 
"पर पहले जब मैं आती थी तब तो उसका कक्ष अलग हुआ करता था।"

" हां तब वह छोटा था इसलिए सरोज उसे मनमानी करने की आदत नहीं डलवाना चाहते थे।"
उसने एक प्लास्टिक से आवरीत आसन्दी(कुर्शी) पर बैठते हुए कहा। 

" तो अब?" नगमा भी उसके सामने प्लास्टिक से आवृत एक विशाल वर्तुलाकार पलंग पर बैठ गई। 

" अब तो वो बड़ा होकर लौट रहा है ना, इसलिए उसके लिए हमारी ओर से यह सरप्राइज।"
उसने मुस्कुराते हुए कहा। 

"वाह बाईजी, ऐसे कक्ष में यदि मुझे रहने मिले ना तो मजा आ जाय।" नगमा ने अपनी बड़ी-बड़ी काली आंखों से पूरे कक्ष को देखते हुए कहा तो रवीना हंसने लगी।

"तो बताओ बाईजी अब यहां क्या करना है?" नगमाने कहा। 

"इस कक्ष को राधेय के रहने के लिए तैयार करना है।" रवीना ने खडे होते हुए कहा।

"पर बाईजी, यहां तो सब कुछ अपने-अपने स्थान पर रखा हुआ है फिर क्या तैयार करना है?"
नगमा अभी भी वहीं बैठी थी।

" उठो तो सही बताती हुं तुम्हें।"
रवीना ने उसे हाथ पकड़ कर उठाती हुई कहने लगी,
" तुम्हें लगता है कि सब कुछ स्थान पर है किंतु ऐसा नहीं है राधेय के यहां रहने के लिए कक्ष को उसके अनुरूप सजाना होगा।"

" अर्थात्?" नगमा ने जबरदस्ती खड़े होते पूछा।

"अर्थात यह कि हमें इस कक्ष को उसकी पसंद नापसंद और उसकी दैनिक आदतों के हिसाब से सजाना होगा।" रवीना ने उसे स्पष्ट किया।

" अच्छा तो मुझे क्या करना होगा?" नगमा ने अपने हाथों से धूल झाड़ने हुए पूछा। 

"जैसा मैं बताती हूं तुम वैसा वैसा करती जाओ।" रवीना ने कहा,
" सर्वप्रथम तो यहां जो प्रत्येक चीजों के ऊपर प्लास्टिक का आवरण चढ़ा है उसे उतारना है, पर ध्यान से आवरण के ऊपर की धूल अंदर की चीजों पर ना पड़े...और जमीन पर भी ना पड़े क्योंकि फिर सफाई का काम और बढ़ जाएगा।" 

" ठीक है तो फिर आवरण उठाकर कहां रखु?" नगमा ने पूछा।

" उठाकर सीधा बाहर जाने दो।" 
रवीना ने कहा और दोनों काम पर लग गई। 

कुछ ही देर में कक्ष की सारी चीजों से आवरण हट गया। आवरण के हट जाने से कक्ष भीतर से निखर गया और कक्ष के बाहर धूल और कचरा बिखर गया। 

सारे आवरण कक्ष के बाहर फेंकने के बाद नगमा और रवीना हाथ झाड़ती खड़ी रही।

" अब क्या करना है?" नगमा ने हाथ कमर पर टिकाते हुए पूछा।

"अब पहले सांवली को कहते हैं कि वह और दो-चार नौकरानी और मिलकर पूरे कक्ष पर झाड़ू फिरादे.... आगे का कार्य उसके बाद ही हो पाएगा।" रवीना ने भी हाथ झाडते हुए कहा। 

" ठीक है पर देखिएगा वह कहीं हमारे किए कराये पर भी झाड़ू ना फिरादे..." नगमा ने कहा तो रवीना हंसने लगी और उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए उसे कक्ष से बाहर ले गई।

फिर जब कुछ देर में सांवली ने पूरे कक्ष की सफाई करवा दी तो वह दोनों पुनः वहां पहुंच गई।

" अब बताइए अब कैसे सजाना है इसे?"
नगमाने कक्ष के भीतर आते हुए कहा।

" ठीक है तो सर्वप्रथम हम गलीचे से शुरुआत करते हैं यह गलीचा जो शय्या के आगे पड़ा है उसे पूर्व में कर दो।" रवीना ने नीचे बीछे बेल और पत्तों की डिजाइन वाले हरे गलीचे को दिखाते हुए कहा।

"पर क्यों यह ऐसे ही सुंदर लग रहा है?" नगमा ने कहा।

" वह इसलिए क्योंकि राधेय प्रातः उठने के बाद सबसे पहले पूर्व दिशा में मुख करके प्रार्थना करता है और फिर उसी दिशा में पहला कदम बढ़ाता है... अब तुम अधिक प्रश्न ना करो जैसा मैं कहती हूं वैसा करो।" 
रवीना ने कहा।

" अच्छा जी.....जैसा आप कहे राजमाता ।" नगमा ने चुटकी ली तो रवीना हंसने लगी। 

"बिल्कुल राजमाता के सिवा किसे पता होगा अपने राजकुमार की सटीक आदतों के विषय में।" उसने हंसते हुए उत्तर दिया और दोनों ने साथ मिलकर गलीचा उठाकर पूर्व दिशा में शय्या के पास रख दिया।

फिर नगमा बोली,
"जय हो राजमाता की" 
कहते हुए उसने हाथ ऊपर उठाकर जोड़ लिए। 

ऐसे ही हंसते मुस्कुराते और राधेय के संस्मरणों को स्मरण में लाते दोनों ने कक्ष की सजावट पूर्ण कर दी। 
सजावट पूर्ण करने के बाद जब वह थके हारे नीचे आए तो रविनाने पुनः सांवली को स्वर दीया,
" सांवली रसोई घर से कुछ नाश्ता और कल सरोज जो वह गन्ने का रस लेकर आए थे वह लेकर बैठक खंड में आ।"

"हाये बाईजी, उस गन्ने का रस छोड़ो आपने जो इस गन्नी का रस निकाल दिया है उसका करो।" नागमा ने सोफे पर लेटते हुए कहा।

"कौन गन्नी? रवीना ने हंसते हुए पूछा।

" मैं और कौन?... 
नगमाने तुरंत अपना चेहरा अपने हाथों में लिया।  

"यह देखिए आपने क्या हाल किया है मेरा, इस सुंदर, मीठी और रसभरी गन्नी का सारा रस निचोड़ के आपने गन्ने के रसहीन कूड़े जैसा बना दिया मुझे।" नगमा ने लेटे-लेटे ही सर पर से पसीना पौछने का नाटक करते हुए कहा। 

रवीना हंसने लगी, 
"वाह भई वाह, 18 डिग्री पर चल रहे ऐसी में काम करके भी इस गन्नी को पसीना आ रहा है।"

तब तक में सांवली भोजन लेकर आ गई थी। 

"तुम सब भी आ जाओ हमारे साथ ही नाश्ता कर लो, थक गए होंगे सब।"सांवली को इतना कहकर रवीना ने घड़ी की और दृष्टि घुमाई, 
"शाम के 6:30 बज गए सरोज राधिक को लेकर अब तक क्यों नहीं आए ?" उसने चिंता से कहा। 

अचानक नगमा सोफे से खड़ी हुई और उसने घड़ी की और देखा,
 "6:30 बज गए आपने बताया नहीं मुझे बाईजी।"

"क्यों, क्या हुआ?" रवीना ने दुविधा से पूछा। 

"अरे 6:30 को तो मुझे मेहंदी पर पहुंच जाना होता है ना।" नगमा ने झटपट अपनी चुनी गले में डाल ली। 

"अरे हां इन सब कामों के चक्कर में मेरे दिमाग से ही निकल गया, जा जा जल्दी जा।" रवीना ने तुरंत कहा परंतु फिर अचानक उसे रोकते हुए पीछे से स्वर दिया, 
"रुक यह रस पीते हुए जा, भोजन का नाम ले लिया है अब बिना खाए मत जा।"

उसकी बात सुनकर नगमा हड़बड़ाती हुई वापस आई, 
"क्या आप भी बाईजी।"

" ले ले वैसे भी काम करके थक गई होगी।" रवीना ने उसे तुरंत रस का प्याला पकड़ाया। वह लेकर नगमा जैसे ही वापस जाने को हुई उसने पुनः टोका,
"नहीं इस तरह भागते हुए भोजन नहीं करते अन्न देवता का अपमान होता है यहीं बैठकर पी ले पहले।"

"बाईजीईईईईईईई" जी पर अधिक भार देते हुए उसने चिड़चिड़ाते हुए कहा और पीने बैठ गई, जैसे ही प्याला खत्म हुआ वह तुरंत उठी और रवीना के पैर छूकर भागती हुई बोली,
" चलती हूं बाईजी।"

" ठीक है, राधे राधे, ध्यान से जाना।" रवीना ने पीछे से कहा। 

वह जैसी तूफान की तरह घर से निकली थी वैसी ही बिजली की तरह घर में वापस आई। उसे इस तरह हड़बड़ी में आता देख आंगन में चूल्हे पर खाना पकाती सिम्मी तुरंत खड़ी हुई, 
"क्या हुआ गिनी ऐसे क्यों भागते हुए आ रही है?"

" अरे क्या होना है अम्मा मेहंदी का समय हो गया है, और क्या।" नगमा आंगन की दीवार पर लटक रहे अपने झोले को उठाती हुई बोली। 

" अच्छा, मुझे तो लगा था बाईजी के प्यार में अंधी को आज स्मरण ही नहीं आएगा कि उसके बाप ने उसे मेहंदी सीखाने के लिए उस मुई शिक्षका को पैसे भी दिए हैं।" सिम्मी ने ताना मारते हुए कहा।

" अरे कैसे भूल सकती हूं कि बाबा ने तुम्हारे जेवर खरीदने के लिए बचाये गए पैसों से मेरी मेहंदी का शुल्क भरा है।" 

अपनी मां को उल्टा उत्तर देकर जैसे ही वह अपना झोला लेकर द्वारा की और भागी वैसे ही एक जलती हुई लकड़ी जो कुछ देर पहले तक चूल्हे में पड़ी थी उड़ती हुई आकर दीवार पर बिल्कुल उसी जगह लगी जहां पर कुछ देर पहले नगमा का सर था। 

" क्रुरता की इंतहाआआआ" इंतहा शब्द को नाटकीय स्वर में बोल कर हंसती हुई वह घर से भाग गई और पीछे सिम्मी को अपना पूरा क्रोध दीवार पर उतारने के लिए छोड़ गई। 

निरंतरम्~

हररोज एक भाग....
अगला भाग कल आएगा..
कहानी आगे जानने के लिए जुड़े रहीये।












RaamaRakshit Aadii Vartikaa

RaamaRakshit Aadii Vartikaa

बहुत सुंदर रचना है. बहुत बढ़िया लिखा है आपने परी.

6 अक्टूबर 2024

RaamaRakshit Aadii Vartikaa

RaamaRakshit Aadii Vartikaa

बहुत सुंदर लिखा है आपने परी.

6 अक्टूबर 2024

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रचनाएँ
एक प्यार का नगमा है
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शरदपर गांव में रहने वाले नगमा, आशिमा(बहने) और राधेय एक दूसरे के पड़ोसी और बचपन के मित्र है। बचपन में साथ खेल कर बड़े हुए और बड़े होने के बाद राधेय आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया था, वहीं आशिमा ने संस्कृत में बीए ऑनर्स करना चुना और नगमा जो इन दोनों से ही 2 साल छोटी है अब भी स्कूल में थी। यह कहानी शुरू होती है इस घटना के तीन वर्ष बाद जब आशिमा का बीए कंप्लीट हो गया था, राधेय अपना बीबीए करके विदेश से वापस आ रहा था और नगमा अब कॉलेज के पहले साल में थी। नगमा के लिए अशनील नाम के लड़के का रिश्ता आया था, वहीं राधेय के लिए प्यार उसके दिल में जगह बना रहा था। अब आगे क्या होगा? हर बार की तरह मां-बाप की इच्छा लड़की के दिल की इच्छा पर भारी पड़ जाएगी या फिर लड़की की इच्छा के अनुसार मिलन होगा नगमा और राधेय का जानने के लिए पढ़ते रहिए "एक प्यार का नगमा है"

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