कोई भी मनुष्य अपने जीवन को परिपूर्ण तथा महत्तम आनन्दमय बनाने लिए मनपसंद मार्ग चुनने के लिए स्वतंत्र है पर उस मार्ग की दशा और दिशा का पूर्णतः निर्धारण नियति ही करती है। उस मार्ग की अनुकूलता,प्रतिकूलता, उत्तेजक मोड, चोटी के चढाव एवं घाटी के उतराव सब अनिश्चितता के गर्भ में छिपे रहते हैं । अतः राह पर चलते चलते कहीं न कहीं उसके इच्छा के विपरीत क्षण आते है जिसको वह स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा, ऐसे में खुद को ठगा भी महसूस करता है और वह किसी मुकाम पर कसक बनकर सालता है। हमारे विचार से जीवन की परिपूर्णता एक ऐसी मृगमरीचिका है जिसको पाने के लिए वह जीवन भर यत्र तत्र भटकता रहता है पर प्राप्त नहीं कर पाता।जिसके कारण उसके मन में क्षोभ या मलाल रह जाता है और अवगुंठित होकर सोचता है कि यह वह जगह नहीं जिसे हमने सोचकर जीवन मार्ग में चलना प्रारम्भ किया था।यह तो मानव स्वभाव का दोष नहीं और न ही नियति का, बल्कि मार्ग पर चलते चलते जनित परिवर्तन से मनोरथों में बदलाव मुख्य कारण है।मानव की बुद्धि से कल्पना की उडान इतनी बृहद होती है जिसकी पार पाना मुश्किल है।
हम समझते है कि इसके चलते प्राणी समाज में कमोवेश हर एक दिल में कोई न कोई मलाल रह ही जाता है।अतः जीवन में अक्सर एक अधूरापन बना रहता है,जो बार बार उठकर टोकता है-यह वह राह नहीं जिस पर चलने की सोची थी।मतलब यही कि अंततः कुछ न कुछ अधूरा रह जाना है फिर अपूर्णता से परहेज को?
अवकाश प्राप्त व्याख्याता गणित
बी0आई0ओ0पी0सीनियर स्कूल, दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़
कविता और लघु लेख लिखने में रुचि।
कविता संग्रह " तिनके ,मेरे नीड़ के" प्रकाशित।
लघु कथा संग्रह "अतीत की पगडंडियां" प्रकाशित
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इस पुस्तक में अधिकांश ऐसे वर्ग के परिवारों की कहानियों का संग्रह है जो समाज की आर्थिक संरचना की दृष्टि में लगभग पेंदे पर है , सामान्य तौर पर लोगों की नज़र इनकी समस्याओं पर न तो पड़ती है और न ही तह तक जाकर समझना चाहती ।देश के कानून के अनुसार किसी वर्ग में नहीं आता क्योंकि राजनैतिक पार्टियों का मतलब केवल वोट बैंक से है जो धर्म,जाति या क्षेत्रवादिता पर आधारित है जो उनके शक्ति देने में सहायक है। यह अछूते हैं क्योंकि इनकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।आरक्षण का मूल आर्थिक न होने के कारण इनसे कोई हमदर्दी भी नहीं है।इस अनछुए वर्ग के लोगों की मानसिकता भी ऐसी है जिसमें आत्मविश्वास या विल पावर न के बराबर दिखती है ये समस्याओं में ही जीते और उसी में मर जाते हैं। इनमें इतनी भी कला नहीं होती कि किसी के समक्ष कुछ कह सके।इस पुस्तक के कहानियों के माध्यम से लेखक समाज को ठेकेदारों को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि देश का वास्तविक विकास इन अनछुए वर्ग को समस्याओं से निजात देने में निहित है।
कुछ विचारोत्तेजक लेख भी समाहित हैं जो सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम सब ,चाहे जितना सबल हों,नियति का हाथ हमेशा ऊपर रहता है,आखिर होनी ही तो है जो हर मनुष्य के किस्मत के साथ जुड़ी होती है, होनी और किस्मत मिलकर मनुष्य के सोच( विचार) का निर्माण करते हैं,सोच में ही तो सर्वशक्तिमान हर प्राणी में कुछ कमियां और खूबियां छोड़ देता है।वही मनुष्य के चाहे अथवा अनचाहे मन की विवशता से भवितव्यता की ओर ठेल ( धकिया)कर ले जाता है।चाहे मूक रूप से धर्मयुद्ध का शंखनाद हो या होनी के आगे कर्ण की विवशता।