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चल चला के बीच,लगाई दो घींच

25 अक्टूबर 2023

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            उन दिनों, जब पूस की ठंड अपने शबाब पर होती, गांव में हमारे घर के सामने चौपाल लगती,लगे भी क्यों न? वहीं पुरखों ने एक बरगद का पेड़ लगा रखा हैं। बुजुर्ग व्यक्ति रमऊ को पीठ पीछे कोई कोई "पुरनिया आदमी" कहते हैं। छत्तीसगढ़ के गांव में  ऐसे लोगों को "सयान " कहकर बड़ा इज्जत देते ।पर पूर्वांचल के हम सभी गांव के लोग उन्हें आदर के साथ "काका" कहते है। बातों बातों में रमऊ काका बताते हैं कि साव जी के घर के सामने जो बरगद का पेड़ लाग है न,उसे मामुली न समझ्यो,उसकी उमिर कौनों कम नाइ बाटै। हमारे बप्पा बतलावत रहें कि हमार चाचा इ पेड़ को जवान होत देखिन है तब सरजू नदी इसके नियरै बहत रहे। घाट के किनारे पेड़ होने के खातिर हम सबै कपड़ा यहि पै टांग देइत रहन और नदी मां मान के चलौ,घंटा भर के बाद निकरत रहिन। वहीं मां पैरत रहन,मस्तियाय के खूब नहात रहेन।।वै हिसाब से यहि कै उमिर डेढ़ सौ साल से कौनों कम ना बाटै।हम उनकी बात ध्यान से सुनते,पर आधी बात ही समझ में आती,आखिर ठहरे कनपुरिया आदमी।
              खैर जो भी हो,उस बरगद के चारों ओर गोल गोल ऊंचा ऐसा मिट्टी का चबूतरा बना है कि उसके ऊपर चारों ओर छः सात आदमी बैठ जाते हैं।उसी के नीचे दस बारह गांव के लोग  गोलाई के रूप में बैठ जाते हैं । यह चौपाल आज की नहीं,कई पीढ़ियों से लगती आ रही है। शाम होते ही साव जी के घर के पिछवाड़े बाग से पुराने पेड़ों की लकड़ियां इकट्ठी हो जाती थी कभी कभी दशरथ मांझी के घर से भी पेड़ का कुंदा आ जाता था। रामकेवल भी अपने खेत से ढेर सारी हरे मटर की छीमी ( फलियां)और हरे चने का साग और बदरू काका अपने अपने खेत से आलू खोद कर ले आते थे। काजल की माई हरी मिर्च , लहसुन, धनियां और नमक पत्थर की सिलौटी पर खूंदकर ( दरदरी ) घर से ले आती थी। अब लकड़ी जलाने में एक्सपर्ट सामने से दामोदर आता और अलाव तैयार करता। जलते अलाव की राख में आलू डाले जाते ।मटर की फलियों को पेड़ सहित आग में भूना जाता।इसमें लोग आपस के दुःख सुख,अपने अपने खेत के फसलों की पैदावार , सिंचाई और उसकी नीलगाय  एवं अन्य जंगली जानवरों से सुरक्षा की चिन्ता ,घर में कोई बीमार हो तो उसके इलाज की फ़िक्र इत्यादि की बातें होती हैं। किसी को कभी रुपये पैसे की दिक्कत होती थी तो मदद या उधार की चर्चा आपस में कर ली जाती है।
              अभी कुछ दिनों पहले लोग लकड़बग्घे के बारे में चर्चा कर रहे थे,डर डर के बातें कर रहे थे कि पास के गांव अलऊपुर में लकड़बग्घा आया है और रामलाल के साल के बच्चे को उठा ले गया है, बड़ा दहशत का माहौल गांव में है,सभी अपने अपने बच्चों को अकेले बाहर न निकलने की और घर में भी  सबके साथ रहने की साथ में  लाठी डंडा रखने और रात में आग जलाकर रखने की नसीहत दे रहें हैं। हो भी क्यों न? जान तो सबकी कीमती है। आज थोड़ी राहत भरीं ख़बर आई कि फारेस्ट वाले लकड़बग्घे को पकड़ लिये है और चिड़ियाघर (जू) में छोड़ दिया है।
              आज नये माहौल में लगी चौपाल  में बाबा गजोधर सबको एक किस्सा सुनाये,पास के राज्य के एक राजकुमार को  शिकार खेलने का शौक था ।आये दिन जंगल में कई कई दिन रात बाहर रह जाता था ।जंगल में कुटिया बनाकर निवास कर रहे ऋषि मुनियों के साथ वह रुक जाता था।दक्षिण दिशा को छोड़, बाकी सभी ओर घोड़े पर सवार होकर दूर दूर तक कई जानवरों का शिकार कर अपने महल आ जाता था। एक महंत के द्वारा उस राजकुमार को दक्षिण दिशा में जाने को मनाही भी थी।पास में हुक्का गुड़गुड़ा रहे सुकुरू भुनें हुए आलू और मटर की फली से गरमा गरम मटर के दाने निकाल खाते हुए जरा थम कर बोला ,अरे दक्खिन जाने को क्यों मना किया,बाबा ने। तभी रामनारायण मांझी बोला,काका, तुम तो जानत नहीं हो का? येहि ओर जंगल,पुराना किला, खंडहर औघड़ यानी तांत्रिक लोग ज्यादा मिलते हैं,अरे राम भगवान वनवास के समय दक्षिण की ओर गये थे, कितना मुश्किल रहा था उन लोगों की यात्रा। कहीं कोई राक्षस मिला,तो रूप बदल कर कोई प्रेत, कितने जहरीले सांप और खूंखार जानवर मिले।
               पर राजकुमार को बड़ी उत्सुकता थी कि अबकी बार दक्षिण की ओर जाकर ज़रा आजमाऊं । सो उसने ठाना ज़रा जोखिम उठाया जाये। उन्होंने अपने चाल में मशहूर और स्वामिभक्त एक घोड़े को तैयार किया और वह जरूरी हथियारों से लैस होकर घोड़े की लगाम साधकर उसकी पीठ पर बैठ गया। एक बार अपने को चुस्त-दुरुस्त सुनिश्चित किया। और लगाम हिलाकर घोड़े को चलने के लिए एलर्ट किया। उसने घोड़े के "चल चला के बीच ,लगाई दी घींच" और थोड़ी देर में वह उसी दिशा में तेज चाल से चलकर सरपट भागने लगा। बीच बीच में हुकारी भरने वाले कैलाश साव ने थोड़ा रुककर गजोधर से पूछा कि काका! चल,चला में क्या अंतर होता है? और इनके बीच 'घींच' का क्या रोल होता है? तभी गजोधर बोला कि कैलाश ! तुम भी 'कुल' वही हो। शुरुआत में घोड़े को चलने के लिए एलर्ट करना पड़ता है इसके लिए लगाम हिलानी पड़ती है इसे 'चल' कहते हैं और जब उसकी चाल थोड़ी सी तेज होती है तो उसे "चला" कहते हैं। इसके बीच उसकी लगाम अपनी ओर खींचने का बहुत महत्व होता है। इससे घोड़ा समझ जाता है कि सवार सावधान स्थिति में है और अब वह अपनी क्षमता से सरपट भाग सकता है।
              वह इशारा पाते ही चौकड़ी भरने लगा।"फिर जरा हवा से बाग हिली,लेकर सवार उड़ जाता।" वह देखते देखते दक्षिण की ओर वियावान जंगल में घुस गया। जैसे जैसे दिन ढलता ,वैसे वैसे घनघोर जंगल बढता जाता।सारा दिन कोई जानवर न दिखा,सो वह झुंझला रहा था ,तभी उसे एक जंगली सुअर दिखाई दिया। अब तो राजकुमार उसके पीछे लग गया और निशाना साधकर उस पर तीर चलाने लगा। सुअर कभी बायें तो कभी दायें हो जाता और अपनी जान बचा लेता। अंधेरे की झुटपुटाहट आहट दे रही थी। राजकुमार को जिद सवार हो गई। आखिरी तीर जैसे ही चलाया। वह सुअर तीर को देखकर जमीन में मिल गया और छिपते हुए ऐसी जगह चला गया जहां उसको ढूंढ पाना दुरूह था।अब राजकुमार हार मान घोड़े से नीचे उतर आया,उसका प्यास के मारे मुंह सूखा हुआ था। वह इधर उधर पानी की तलाश करने लगा। वह घोड़े की लगाम पकड़े आगे बढ़ता जा रहा था। ढूंढते ढूंढते उसे एक साधु की कुटिया दिखी।उस कुटिया की लम्बी चौड़ी बाउंड्री थी।उसके भीतर बाग के चारों ओर हरे भरे पेड़ थे, कहीं फल वाले पेड़ जैसे केला,अनार और अमरूद इत्यादि तो कहीं कहीं सुगन्धित फूल वाले पेड़ जैसे रातरानी, चम्पा और गुलाब इत्यादि। बाग के बीच गहरा तालाब था जिसमें छोटी छोटी मछलियां भी थीं।प्यासा  राजकुमार सबसे पहले कुटिया के अंदर जाकर साधु से तालाब से पानी पीने की आज्ञा मांगी साधु ने उसके अनुग्रह को स्वीकार कर लिया और अपना कमंडल भी दिया। राजकुमार तालाब के पास गया और कमंडल से पानी निकाल कर अपनी प्यास बूझआई बाद में घोड़े को भी तालाब के पास ले आया और उसकी भी प्यारा बुझाई। प्यास बुझाने के बाद राजकुमार अपने घोड़े के साथ फिर साधु के आया। दरअसल वह साधु वेष में औघड़ ( तांत्रिक) था। वह अपनी साधना विद्या से जान गया कि वह अमुक राज्य के राजा का बेटा है। उस साधु ने राजकुमार से काफी रात गये तक बात की। वह बातों से जान गया कि यह हमारे मित्र राजा के दुश्मन का बेटा है। राजकुमार काफी थका था उसे थकान के कारण नींद आ रही थी। तांत्रिक ने कहा कि हे राजकुमार! तुम्हारा राज्य बहुत दूरी पर है। हम तुम्हें अपनी योगमाया से सुबह घर पहुंचा देंगे। जाओ,तुम सो जाओ। वह जाकर विस्तार पर गहरी नींद में सो गया। उसके बाद माया से सुअर बना वह राक्षस आया जिसने शिकार बन कर राजकुमार को भुलावा दिया था। उन दोनो ने उस राजा के राज्य को समाप्त कर देने की योजना बनाई। सुबह होते ही पहले उस तांत्रिक ने राजकुमार को योगमाया से उसके घर पहूंचा दिया ,पर अपनी सम्मोहन विद्या से राजा की बुद्धि भ्रष्ट कर दी और लड़ाई में मारा गया।
              गजोधर के किस्से को सभी बूढ़े और बच्चे हुकारी भर ध्यान से सुन रहे थे। और आपस में कह रहे थे कि जब महात्मा ने दक्षिण ओर जाने को मना किया था तो क्यों गया।
              हमनें कहा कि होनी बड़ी प्रबल होती है वह जो चाहती, मनुष्य से वह सब करवाती है। आलमी चाहे जितनी होशियारी दिखाए,पर करता वही है जिसका रास्ता पहले से निश्चित है।
              किस्सा सुनते सुनते अब बहुत रात हो गई थी। सभी निंद्रा में लग रहे थे। किस्सा खत्म होते सब अपने अपने घर गये ,और कम्बल रजाई ओढ़कर लेट गये। सुबह उठकर सब अपने-अपने काम में लग गये।
              
 

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प्रभा मिश्रा 'नूतन'

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बहुत खूबसूरत लिखा है आपने पढें मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां 🙏🙏🙏

26 अक्टूबर 2023

ओमप्रकाश गुप्ता

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आपका हार्दिक आभार। हम आपकी कहानी पढ़कर समुचित प्रतिक्रिया अवश्य देंगे

ओमप्रकाश गुप्ता

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26 अक्टूबर 2023

सम्भव हो, तो 7089394682 पर कुछ introductory discussion कर लीजिएगा। मेरा परिचय ओमप्रकाश गुप्ता, अवकाश प्राप्त व्याख्याता, गणित, दन्तेवाड़ा, छत्तीसगढ़, जन्मभूमि, अयोध्या, फिलहाल थाने , महाराष्ट्र में बेटे के पास हूं।

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रचनाएँ
वक्त की रेत पर
5.0
इस पुस्तक में अधिकांश ऐसे वर्ग के परिवारों की कहानियों का संग्रह है जो समाज की आर्थिक संरचना की दृष्टि में लगभग पेंदे पर है , सामान्य तौर पर लोगों की नज़र इनकी समस्याओं पर न तो पड़ती है और न ही तह तक जाकर समझना चाहती ।देश के कानून के अनुसार किसी वर्ग में नहीं आता क्योंकि राजनैतिक पार्टियों का मतलब केवल वोट बैंक से है जो धर्म,जाति या क्षेत्रवादिता पर आधारित है जो उनके शक्ति देने में सहायक है। यह अछूते हैं क्योंकि इनकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है।आरक्षण का मूल आर्थिक न होने के कारण इनसे कोई हमदर्दी भी नहीं है।इस अनछुए वर्ग के लोगों की मानसिकता भी ऐसी है जिसमें आत्मविश्वास या विल पावर न के बराबर दिखती है ये समस्याओं में ही जीते और उसी में मर जाते हैं। इनमें इतनी भी कला नहीं होती कि किसी के समक्ष कुछ कह सके।इस पुस्तक के कहानियों के माध्यम से लेखक समाज को ठेकेदारों को यह समझाने का प्रयास कर रहा है कि देश का वास्तविक विकास इन अनछुए वर्ग को समस्याओं से निजात देने में निहित है। कुछ विचारोत्तेजक लेख भी समाहित हैं जो सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम सब ,चाहे जितना सबल हों,नियति का हाथ हमेशा ऊपर रहता है,आखिर होनी ही तो है जो हर मनुष्य के किस्मत के साथ जुड़ी होती है, होनी और किस्मत मिलकर मनुष्य के सोच( विचार) का निर्माण करते हैं,सोच में ही तो सर्वशक्तिमान हर प्राणी में कुछ कमियां और खूबियां छोड़ देता है।वही मनुष्य के चाहे अथवा अनचाहे मन की विवशता से भवितव्यता की ओर ठेल ( धकिया)कर ले जाता है।चाहे मूक रूप से धर्मयुद्ध का शंखनाद हो या होनी के आगे कर्ण की विवशता।
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